पटना, १९ दिसम्बर। हिन्दी के महान सपूतों में से एक महाकवि रामचंद्र जायसवाल अनेकों महाकाव्यों के मनीषी सर्जक ही नहीं, एक बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिधर्मी महाकवि भी थे। उन्होंने हिन्दी साहित्य में प्रबंध-काव्य को नई ऊर्जा दी और ‘रामायण’ तथा ‘गीता’ जैसे स्तुत्य ग्रंथों को आधुनिक हिन्दी के नवल स्वर से गुंजित किया।यह बातें सोमवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में महाकवि की जयंती पर आओजित पुस्तक-लोकार्पण तथा कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि ‘राम’ शीर्षक से रचित उनका महाकाव्य आधुनिक हिन्दी का प्रथम रामायण माना जाता है। जायसवाल जी ने ‘नमः शिवाय’, ‘कृष्ण’, ‘महाभारत’ तथा ‘राष्ट्रपितायण’ नामक काव्य-ग्रंथों का भी सृजन किया। उनकी साहित्यिक प्रतिभा बहुआयामी थी। उन्होंने गीत, नाटक, पटकथा, संवाद समेत उपन्यास और कहानियाँ भी लिखीं। गीता पर लिखी उनकी पुस्तक ‘गीतायन’ को भी पर्याप्त प्रसिद्धि मिली।वरिष्ठ पत्रकार, कवि, गायक और योगाचार्य हृदय नारायण झा को इस वर्ष का ‘महकवि रामचंद्र जायसवाल स्मृति सम्मान’ प्रदान किया गया। उन्हें समारोह के उद्घाटन करता और पूर्व केंद्रीयमंत्री डा सी पी ठाकुर ने पाँच हज़ार एक सौ रूपए की सम्मान-राशि, सम्मान-पत्र, स्मृति-चिन्ह और वंदन-वस्त्र देकर सम्मानित किया।इस अवसर आरा की विदुषी लेखिका डा ममता मिश्र के कहानी-संग्रह ‘भव्या’ का लोकार्पण, मौरिशस से पधारीं, सुविख्यात संस्कृति-कर्मी,साहित्यकार और अंतर्राष्ट्रीय भोजपुरी संगठन की अध्यक्ष डा सरिता बंधु ने किया। डा बुधु को सम्मेलन अध्यक्ष डा सुलभ ने साहित्य सम्मेलन की उच्च उपाधि ‘विद्या-वारिधि’ से विभूषित किया।अपने उद्गार में डा बुधु ने कहा कि मौरिशस के कण-कण में लोक-साहित्य व्याप्त है। बिहार से हमारे पूर्वज अपनी लोक-संस्कृति और भोजपुरी लोक-साहित्य लेकर गए। तुलसी-रामायण लेकर गए और अपने बच्चों को भोजपुरी और हिन्दी सिखाई। मुझे गौरव है कि मेरे प्रयास से मौरिशस में हिन्दी सचिवालय की स्थापना हुई। उन्होंने मौरिशस में प्रचलित भोजपुरी गीत का सस्वर पाठ किया।इसके पूर्व अपने उद्घाटन संबोधन में डा सी पी ठाकुर ने कहा कि महाकवि रामचन्द्र जायसवाल जैसे तपस्वियों के कारण देश में हिन्दी की ऊन्नति हुई। साहित्य सम्मेलन इस दिशा में ऐतिहासिक कार्य कर रहा है। साहित्याकारों को विचार करना चाहिए कि बिहार और देश की ऊन्नति में साहित्य की क्या भूमिका हो सकती है?सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा जंग बहादुर पाण्डेय, आरा ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा बलराज ठाकुर, डा जितेंद्र कुमार, सत्यनारायण उपाध्याय, वैशाली ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष शशि भूषण कुमार तथा विश्वनाथ शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, आचार्य विजय गुंजन, ब्रह्मानंद पाण्डेय, डा राशदादा राश, डा पुष्पा गुप्ता, डा अर्चना त्रिपाठी, डा पूनम आनंद, शायरा तलत परवीन, शमा कौसर ‘शमा’, मोईन गिरीडीहवी, जय प्रकाश पुजारी, इन्दु उपाध्याय, अर्जुन प्रसाद सिंह, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘बदनाम’, अश्मजा प्रियदर्शिनी, श्रीकांत व्यास, कमल किशोर ‘कमल’, पंकज प्रियम, डा रेणु मिश्र, मो शादाब, अमित सिंह आदभांत, अजित कुमार भारती, अश्विनी कविराज आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर, डा अमरनाथ प्रसाद, डा रविंद्र कुमार शर्मा, प्रो सुखित वर्मा, डा राजीव रंजन तिवारी, बाँके बिहारी साव, अमन वर्मा, चंद्रशेखर आज़ाद, प्रो सुखित वर्मा, अनिता सिंह, रामाशीष ठाकुर, डा सैयद नेहाल अहमद, जीतन शर्मा, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ बसंत गोयल, जीतन शर्मा आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।