पटना, २३ दिसम्बर। अंगिका भाषा और साहित्य के उद्धारकों में अंग-कोकिल डा परमानंद पाण्डेय का स्थान श्रेष्ठतम है। वे अंगिका के दधीचि समान साहित्यर्षि थे। अंगिका-कोश और व्याकरण का सृजन कर उन्होंने अंग प्रदेश की एक बोली को भाषा के रूप में परिवर्तित कर दिया।यह बातें आज यहाँ बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह और सर्वभाषा-कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि पाण्डेय जी ने सात सौ पृष्ठों में ‘अंगिका का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन’, जैसा महान ग्रंथ लिखकर एक ऐसा अतुल्य सारस्वत-कार्य किया है, जिसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। खड़ी बोली हिन्दी की प्रतिष्ठा में जो भूमिका भारतेंदु हरिशचन्द्र की थी, वही भूमिका अंगिका के लिए परमानंद पाण्डेय जी की थी। वे अंगिका-साहित्य के जनक माने जाते हैं। पाण्डेय जी संस्कृत और हिन्दी के भी मनीषी विद्वान थे। अंगिका तो उनकी मातृ-भाषा ही थी।इस अवसर पर, विद्वान प्राध्यापक डा धनश्याम पाण्डेय द्वारा संपादित ग्रंथ ‘अनमोल अंग-कोकिल परमानन्द पाण्डेय का मोल’ का लोकार्पण भी किया गया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, अंग-कोकिल के कवि-पुत्र ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, प्रो राज आनंद मूर्ति , सुनील कुमार सिन्हा तथा डा अंजनी राज ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित सर्वभाषा कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने मैथिली भाषा में वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, ब्रह्मानंद पाण्डेय तथा डा अर्चना त्रिपाठी (हिन्दी), शायरा तलत परवीन तथा मोईन गिरिडीहवी (ऊर्दू), जय प्रकाश पुजारी (भोजपुरी),डा प्रीति (अंगिका), अर्जुन प्रसाद सिंह (मगही), (ऊर्दू), नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ (बज्जिका), अर्जुन प्रसाद सिंह (मगही), अश्विनी कविराज (हिन्दी), अजित कुमार भारती (हिन्दी) आदि कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने किया।समारोह में, पुरुषोत्तम मिश्र , रामाशीष ठाकुर, राधा रानी, सर्वज्ञ सिद्धि, अमन वर्मा, वीरेंद्र कुमार, अमित जन , राजेश राज आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।