सीनियर एडिटर -जीतेन्द्र कुमार सिन्हा /भारत के गोवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सव (IFFI) के समापन समारोह में इजराइल मुल्क के फिल्म निर्माता नदव लैपिड ने फिल्म ”द कश्मीर फाइल्स” पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर, जो हिन्दू इस्लामिक आतंकवाद की क्रूरता का शिकार हुए थे उनके घावों पर नमक छिड़कने का काम किया है। जबकि नदव इस फिल्म उत्सव के निर्णायक मंडल का सदस्य था।फिल्म उत्सव के निर्णायक मंडल के सदस्य होने के नाते ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। लेकिन उन्होंने जिस शब्दावली का उपयोग किया है उससे ऐसा लगता है कि वह किसी खास विचार से प्रेरित है और उसने जानबूझकर ”द कश्मीर फाइल्स” पर इस तरह की टिप्पणी की है। टिप्पणी में उन्होंने कहा है कि फिल्म उत्सव में इस फिल्म की स्क्रीनिंग को देख कर वे परेशान हुए और उन्हें झटका लगा। यह फिल्म वल्गर और प्रोपेगेंडा है।यह सही है कि फिल्म देखकर नदव लैपिड को झटका लगा होगा। क्योंकि इसमें क्रूरता के दृश्य देखकर नदव लैपिड ही नहीं बल्कि कोई भी परेशान हो सकता है। ”द कश्मीर फाइल्स” के दृश्य परेशान करने वाले और दिल दिमाग को हिला देने वाले हीं है।भारत में पहली बार किसी फिल्म निर्माता ने अपनी साहस दिखाकर जम्मू-कश्मीर में हुए हिन्दुओं के नरसंहार के सच को सामने लाने का काम किया है। जब से यह फिल्म प्रदर्शित हुई है उसी दिन से भारत में रह रहे झूठों के समूह, टुकड़े-टुकड़े गिरोह, तथाकथित सेकुलरों के विरोध का सामना कर रही है। दरअसल, उन्होंने अपने इको-सिस्टम से जिस अकल्पनीय नरसंहार को छिपाने का प्रयास वर्षों से किया था, उसको यह फिल्म एक झटके में सामने ले आती है। साथ में उस इको-सिस्टम की धूर्तता को भी फिल्मों में दिखाया गया है।हिन्दुओं की हत्याएँ करने के बाद जिस तरह आज उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया जा रहा है, वैसा ही उस समय भी किया जा रहा होगा, तब तो रातों-रात हजारों की संख्या में कश्मीरी हिन्दू अपने घर छोड़ने के लिए क्यों मजबूर हुए? अपने घर-दुकान, बहन-बेटियों को छोड़कर कश्मीर से चले जाने के नारे लगाने वाले लोगों के अपराध को हमेशा छिपाने का काम किया गया। पीड़ित हिन्दुओं के प्रति संवेदनाएं रखने की जगह उन्हें ही कटघरे में खड़ा किया जाता रहा।याद रखना होगा कि यह फिल्म वल्गर और प्रोपेगेंडा नहीं है बल्कि हिंदुओं के दर्द, उनकी पीड़ा और आंसुओं को झुठलाने वाले लोगों की मानसिकता ही अश्लील और दूषित है। इस एक प्रकरण से भारत में एक बार फिर उन लोगों की पहचान उजागर हो गई जिनकी संवेदनाएं हिन्दुओं के प्रति नहीं है।कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित पत्रकार, लेखक, कलाकार एक ऐसे व्यक्ति की टिप्पणी पर लहालोट होने लगे, जिसे न तो जम्मू-कश्मीर की जानकारी है और न ही वहाँ हुए दर्दनाक नरसंहार से वह परिचित है। दुर्भाग्यजनक है की इस सब में कांग्रेस के नेता भी आनंदित होकर नदव लैपिड की टिप्पणी पर प्रसन्नता व्यक्त कर हिन्दुओं पर हुए अत्याचार की सच्ची तस्वीर दिखाने वाली फिल्म को वल्गर और प्रोपेगेंडा सिद्ध करने लगे।कांग्रेसी अभी कुछ दिनों पहले भी सेना पर हुई आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में भी सिने अभिनेत्री ऋचा चड्ढा के पाले में खड़े थे और सेना के साथ खड़े अक्षय कुमार को विदेशी नागरिक ठहराकर ऋचा चड्ढा को नसीहत नहीं देने की सलाह दे रहे थे।अजीब विडंबना है कि कांग्रेस और उसके समर्थक बुद्धिजीवियों के लिए भारतीय मूल के अक्षय कुमार को कोसते हैं और विदेशी फिल्मकार नदव लैपिड के आपत्तिजनक टिप्पणी को सत्य मानकर खुश होते है।भारत के नागरिक यह सब देख रहे हैं और यह समझ रहे हैं कि नदव लैपिड की टिप्पणी के साथ प्रसन्नता व्यक्त करने वाले सभी लोग हिंदुओं के घाव पर नमक छिड़कने का काम कर रहे है। जबकि इजराइल के राजदूत और वहाँ के अन्य प्रमुख राजनेताओं ने नदव लैपिड के दुर्व्यवहार के लिए खेद प्रकट कर भारत विरोधी सभी ताकतों को आईना दिखाया है।इजराइल के राजनेताओं की ओर से इस संबंध में आई टिप्पणियाँ देश को यह भी संदेश देती है कि भारत और इजराइल की मित्रता बहुत गहरी है। इस प्रकार दोनों देश एक-दूसरे के सुख-दुःख की गहरी अनुभूति रखते हैं।
——————