पटना, १० जनवरी। हिन्दी पूरी दुनिया में फैल रही है। यह एक वैज्ञानिक भाषा है, इस कारण से। किंतु इसे अभी तक भारत में ही वह स्थान नहीं मिला, जो इसे दिया जाना निश्चित किया गया था। हमें इस बात की चेष्टा अवश्य करनी चाहिए कि यह भारत के ललाट की शोभा बने।यह बातें मंगलवार को विश्व हिन्दी दिवस पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह का उद्घाटन करते हुए, नागालैंड के पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार ने कही। श्री कुमार ने कहा कि, हिन्दी साहित्य सम्मेलन का बिहार के साहित्यिक और सांस्कृतिक उन्नयन में ऐतिहासिक योगदान रहा है। स्वतंत्रता-आंदोलन के काल में यह एक बड़ा वैचारिक-केंद्र रहा। उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि जिस निष्ठा के साथ साहित्य की सेवा पहले की जाती थी, उसमें अभाव हुआ है। अब पहले जैसी साहित्यिक पत्रिकाएँ भी प्रकाशित नहीं होती। साहित्य सम्मेलन को इन अभावों की पूर्ति हेतु प्रयास करना चाहिए।अपने अध्यक्षीय उद्गार में, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, विश्व हिन्दी दिवस पर, जो नागपुर में हुए प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन की स्मृति में, भारत सरकार द्वारा वर्ष २००६ से मनाया जाता है, हम इस बात पर अवश्य परितोष व्यक्त करते हैं कि, ‘हिन्दी’ संपूर्ण विश्व में अपने गुणों के कारण और संपूर्ण संसार में फैले भारत-वंशियों के प्रयास से तीव्र गति से विस्तार पा रही है, किंतु यह दिवस हमें यह भी स्मरण दिलाता है कि, अपनी हीं भूमि में उसे वह स्थान अब तक नहीं प्राप्त हुआ, जिसे देने का निर्णय भारत की संविधान सभा ने वर्ष १९४९ में किया था। लिया था। इसका परिमार्जन हिन्दी को देश की ‘राष्ट्र-भाषा’ घोषित कर ही किया जा सकता है। भारत की सरकार को अब विना और देरी किए, यह निर्णय लेना चाहिए। ‘राष्ट्र-भाषा’ घोषित होते ही, इसके समक्ष उत्पन्न सभी समस्याएँ स्वतः समाप्त हो जाएँगी।इस अवसर पर, पूर्व राज्यपाल ने बिहार के बीस विदुषियों और विद्वानों को ‘हिन्दी-रत्न’ के अलंकरण से विभूषित किया, जिनमें वरिष्ठ लेखक डा विनोद कुमार मंगलम, वीरेंद्र कुमार यादव, डा शशि भूषण सिंह, डा श्याम शरण, डा विनय कुमार शर्मा, प्रेम कुमार वर्मा, डा सुषमा कुमारी, कुसुम सिंह सुनैना, डा नीलू अग्रवाल, नवीन प्रसाद शर्मा, श्रुत कीर्ति अग्रवाल, अरविन्द कुमार सिंह, देवेंद्र कुमार, शशि भूषण कुमार, ज्ञानेश्वर शर्मा, अंकेश कुमार, नीरव समदर्शी, अश्मजा प्रियदर्शिनी, सीमा कुमारी तथा अमित कुमार मिश्र के नाम सम्मिलित हैं।सम्मेलन की दिन-पत्रिका का लोकार्पण न्यायमूर्ति संजय कुमार ने किया। उन्होंने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दी केवल एक देश की भाषा नहीं, बल्कि पूरे विश्व की भाषा बनती जा रही है। हम सबको मिलकर इसे और सुदृढ़ करना चाहिए। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह, वरिष्ठ नाटक्कार डा अशोक प्रियदर्शी तथा प्रो विनोद कुमार मंगलम ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष जियालाल आर्य ने, धन्यवाद-ज्ञापन डा मधु वर्मा ने तथा मंच का संचालन प्रो सुशील कुमार झा ने किया।इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डा बच्चा ठाकुर, डा पूनम आनंद, डा शालिनी पाण्डेय, डा सुषमा कुमारी, सागरिका राय, चंदा मिश्र, डा मीना कुमारी परिहार, शमा कौसर, चित रंजन भारती, मोईन गिरिडिहवी, जाय प्रकाश पुजारी, उदय नारायण सिंह, डा पूनम देवा, डा अमरनाथ प्रसाद, विभा रानी श्रीवास्तव, सुजाता मिश्र, प्रेम लता सिंह, डा विश्वनाथ वर्मा, सदानन्द प्रसाद, वीणा बेनीपुरी, निकहत आरा, बाँके बिहारी साव, वंदना प्रसाद, वीणा चौबे, डा नागेंद्र कुमार शर्मा, राजकांता राज, प्रीति रानी, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, डा बी एन विश्वकर्मा, अंशु कुमारी, डौली कुमारी, पुरुषोत्तम कुमार, रामाशीष ठाकुर, समेत बड़ी संख्या में हिन्दी-सेवी और प्रबुद्धजन उपस्थित थे।