कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट /दुनिया भर के देश और सरकारें अपनी योजनाओं, बजट आवंटन, विभिन्न विभागों, उनकी कार्यप्रणाली, मैनपावर, प्रशिक्षण इत्यादि को प्रभावी बनाने और व्यवस्थात्मक सुधार के लिए हर प्रकार के आँकड़े जुटाती है।इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि जाति भारतीय समाज की कड़वी सच्चाई है। चूँकि हमारे देश में आज भी लोग जाति के आधार पर व्यवसाय/रोजगार करते हैं, विवाह करते हैं, उँच-नीच और अपने-पराए की भावना रखते हैं अतः इसका लोगों की मानसिकता, शिक्षा, आय, सामाजिक अथवा आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।यह सब जानते है कि भारतीय समाज में एक व्यक्ति की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति व प्रगति में उसकी जाति का असर कमोबेश रहता है। अगर जाति के आधार पर पिछड़ापन आया तो पिछड़ेपन का निदान भी जाति के आधार पर आँकड़े जुटाकर ही किया जा सकता है। जाति आधारित जनगणना से विभिन्न वर्गों, गरीबों व समूहों की सटीक और समग्र जानकारी उपलब्ध होगी, सटीक योजनाओं को बनाया जा सकेगा, अनुचित व्यय, लीकेज या संसाधनों की बर्बादी को रोका जा सकेगा, वंचित वर्गों को चिन्हित करने से उनके उत्थान के लिए कदम उठाना पहले से कहीं अधिक आसान एवं व्यवस्थित होगा तथा लोगों तक कहीं अधिक प्रभावी ढंग से सरकारी योजनाओं का लाभ पहुँचाया जा सकेगा।पूर्वाग्रह त्याग अगर कोई जाति आधारित गणना से जुटाए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण आँकडों के इन लाभों पर चिंतन करेगा तो उसे निःसन्देह ही इसके सकारात्मक प्रभावों को समझने में देर नहीं लगेगी। भाजपा राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए ही इस जनहित के कदम के विषय में भ्रम पैदा कर रही है।हमारी पार्टी और आदरणीय राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद जी दशकों से जातीय जनगणना करवाने के पक्षधर रहे है वो लगातार सड़क से लेकर सदन पुरजोर तरीके से इस माँग को उठाते रहे है। राजद, जेडीयू और सपा ने संयुक्त रूप से तत्कालीन मनमोहन सरकार पर दबाव बनाकर जाति आधारित आँकड़े जुटवाए थे लेकिन बीजेपी सरकार ने उन आँकड़ो को प्रकाशित नहीं होने दिया। बिहार में माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में हमारी महागठबंधन सरकार जाति आधारित आँकड़े जुटा रही है तो बीजेपी को पेट में दर्द हो रहा है। क्यों हो रहा है यह आप सोचिए?