CIN पटना ब्यूरो , २० जनवरी। वरिष्ठ साहित्यसेवी डा शशु भूषण सिंह एक संवेदनशील, प्रतिभावान और लेखन में निरंतर तल्लीन निष्ठावान गद्यकार ही नहीं, पद्य में भी समान अधिकार रखनेवाले कवि भी हैं। प्रकृति और नारी के प्रति भारत की प्राचीन श्रद्धास्पद भाव रखने वाले कवि ने अपनी काव्य-पुस्तक में स्त्री-विमर्श को महत्तम ऊँचाई देते हुए, उसकी महिमा का महनीय गान किया है।यह बातें शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में ‘बिहार की गौरव गाथा’ पुस्तक के लिए विशेष चर्चा में आए डा सिंह के सद्य: प्रकाशित दो काव्य-संग्रह ‘कुछ सूरतें घर बाहर की’ तथा ‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो’ के लोकार्पण-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक के कवि काव्य-कर्म के प्रति सजग हैं और उन्होंने नारी-मन, प्रकृति, प्रेम, समाज की पीड़ा और संघर्ष समेत सभी मानवीय-पक्षों को अपनी कविता का विषय बनाया है।पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, राज्य सभा के पूर्व सदस्य एवं सुप्रसिद्ध समाजसेवी डा रवींद्र किशोर सिन्हा ने कहा कि हिन्दी भाषा के माध्यम से अपनी वृति चलाने वालों के लिए, हिन्दी की सेवा तो उनका कर्तव्य ही है, किंतु जिन्होंने हिन्दी को अपना जीवन-आधार नहीं बनाया हो, और वह हिन्दी-साहित्य की सेवा करे, यह अधिक महत्त्वपूर्ण और प्रशंसनीय है। कवि ने अपनी अभिव्यक्ति के लिए ‘शब्द-चित्र’ की विधा को भी चुना है, जो साहित्य में अत्यंत कठिन विधा है।समारोह के मुख्य अतिथि और उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि काव्य-संग्रह के कवि एक तकनीकी विशेषज्ञ हैं। इन्होंने एक कुशल अभियंता के रूप में देश की सेवा की है और अब हिन्दी की सेवा कर रहे हैं। यह प्रशंसा की बात है कि अभियंत्रण-सेवा में रहते हुए भी इन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य की सेवा की है।इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने दोनों कृतियों पर विस्तार से प्रकाश डाला तथा कहा कि साहित्य में स्त्री-विमर्श के इस युग में कवि ने इन पुस्तकों के रूप में अत्यंत मूल्यवान योगदान हुआ है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, रामयतन यादव, डा अरुण कुमार सिंह तथा ई मिथिलेश कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए तथा कवि को शुभकामनाएँ दी। अपने कृतज्ञता-ज्ञापन के क्रम में कवि ने कहा कि स्त्री-विमर्श को लेकर समाज में एक विकृत भ्रांति फैल रही है। आज स्त्री-पुरुषों के बीच किन्ही दो पहलवानों के बीच का युद्ध बनाया जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे नर-नारी अपने अहं के लिए टकरा रहे हों और परिवार एवं परिजन तालियाँ बजा-बजा कर इस युद्ध को प्रोत्साहित कर रहे हों। इससे समाज को जोड़ने की नहीं तोड़ने की स्थिति बनेगी। उन्होंने अपनी लोकार्पित पुस्तक से प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ भी किया।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, जय प्रकाश पुजारी, गीत के चर्चित कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय, कुमार संजय, कमल किशोर कमल, श्याम बिहारी प्रभाकर, अंकेश कुमार , डा मोहम्मद नसरल्लाह ‘निस्तवी’अर्जुन प्रसाद सिंह, सिद्धेश्वर, अशोक कुमार, नूतन सिन्हा, सदानंद प्रसाद, पूजा ऋतुराज, अजित कुमार भारती आदि कवियों ने विविध भावों और रंगों की रचनाओं का पाठ कर कवि-सम्मेलन को इंद्रधनुषी रूप दिया। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, ज्ञानेश्वर शर्मा, नरेंद्र कुमार झा, संजीव कुमार मिश्र, रामाशीष ठाकुर, विजय कुमार दिवाकर, दुःख दमन सिंह, संजय कुमार सिन्हा, आनंद प्रसाद, कुमार गौरव, संजय कुमार चित्रकार, सुनील त्रिवेदी, चंद्रशेखर आज़ाद, विनय चंद्र आदि प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।