पटना, २३ जनवरी। राजनीति में शुचिता के आदर्श पुरुष और त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद एक महान राजनीतिक, साहित्यिक और आध्यात्मिक चिंतक भी थे। गांधीवाद को जीवन में उतारने वाली अंतिम पीढ़ी के प्रतिनिधि थे वे। राजनीति से अवकाश लेने के पश्चात उन्होंने साहित्यि की अमूल्य सेवा की। महकवि जयशंकर प्रसाद के विश्व विश्रुत महाकाव्य ‘कामायनी’ पर उन्होंने जो समालोचनात्मक ग्रंथ लिखा, हिन्दी साहित्य में उसकी व्यापक चर्चा हुई है। भारतीय दर्शन के साथ विश्व-साहित्य का उनका गहरा अध्ययन उनके व्याख्यानों से स्पष्ट होता था। उनकी विद्वता, मनीषा और स्मरण-शक्ति अद्भुत थी! उनके निधन से समाज की बहुआयामी क्षति पहुँची है।यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित शोक-सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि वे ज्ञान के भंडार थे। उनके साथ में बैठना और उन्हें सुनना एक सुखद उपलब्धि की तरह था। उनके साथ का प्रत्येक सत्संग ज्ञान के नए क्षितिज को खोलता था। विश्व राजनीति पर भी उनकी गहरी पकड़ थी। वे कहा करते थे कि भारत को पाकिस्तान से नहीं चीन से ख़तरा है। देश को चीन से मिलने वाली चुनौतियों के लिए तैयार होना चाहिए। वर्षों पूर्व कही गई उनकी बातें आज चरितार्थ हो रही है। साहित्य सम्मेलन को वो साहित्यकारों का तीर्थ मानते थे। एक अवर्चनीय प्रेम उन्हें सम्मेलन से था। संकट के प्रत्येक क्षण में उन्होंने मेरा उत्साह-वर्द्धन किया तथा उन्हें जब भी हमने स्मरण किया वे सम्मेलन में आते रहे और अपनी विचारिक तथा भावनात्मक ऊर्जा प्रदान की। बिहार के लिए यह एक उपलब्धि है कि हिन्दी समिति, वर्द्धा द्वारा, १० जनवरी, १९७५ को नागपुर में आयोजित किए गए प्रथम अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन की आयोजन समिति के महासचिव सिद्धेश्वर बाबू ही थे। उस समिति के अध्यक्ष भार्रत के तत्कालीन उप राष्ट्रपति बी डी जत्ती थे और देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सम्मेलन का उद्घाटन किया था। मौरिशस के तत्कालीन राष्ट्रपति सर शिवसागर रामगुलाम सम्मेलन के मुख्यअतिथि थे।शोकोदगार व्यक्त करने वालों में उनके शिष्य रहे सुप्रसिद्ध कवि एवं सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, अरविन्द कुमार सिंह, डा अशोक प्रियदर्शी, प्रो शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, डा लाड़ली कुमारी, कृष्ण रंजन सिंह, श्रीकांत व्यास, पूजा ऋतुराज, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, विशाल सक्सेना, चंदा मिश्र, दयानन्द जायसवाल, सूबेदार नन्दन कुमार मीत, डौली कुमारी, कुमारी मेनका आदि के नाम सम्मिलित हैं।त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद की अंतिम यात्रा ! गुल्बी घाट, पटना पर अग्नि संस्कार के लिए अपने पिता के पार्थिव देह को कंधा दे रहे उनके बड़े पुत्र ज्ञानेश्वर प्रसाद और छोटे पुत्र रत्नेश्वर प्रसाद ! साथ में साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ एवं अन्य शोकाकुल परिजन ! आज संध्या पाँच बजे राजकीय सम्मान के साथ प्रो प्रसाद के पार्थिव शरीर का अग्नि-संस्कार संपन्न हुआ। बड़े पुत्र ज्ञानेश्वर प्रसाद ने मुखाग्नि दी। बिहार के संसदीय कार्य मंत्री सरकार के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित थे।