CIN पटना /बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने राष्ट्रीय ध्वज का आरोहण किया। उन्होंने देशवासियों को बधाई देते हुए, सबसे भारत की उन्नति में योगदान हेतु निष्ठा का व्रत लेने का आह्वान किया ।उन्होंने कहा कि भारत कि स्वतंत्रता के आंदोलन में अमर क्रांतिकारियों के साथ भारत के कवियों साहित्यकारों ने भी अनेक बलिदान दिए। लोगों में बल और पराक्रम भरने का कार्य साहित्यकारों ने किया।जब जब भारतीय समाज अपने को असहज और असहाय समझा है, कवियों ने उनके मन से निराशा को भगा कर उनकी चेतना को ऊर्जा दी। साहित्य में ही समाज को बदलने की शक्ति है। डा सुलभ ने कहा कि भारत की कोई दूसरी समस्या नहीं है, सिवा इसके कि हमारे चरित्र का ह्रास हो रहा है। लोग स्वार्थी और निष्ठाहीन होते जा रहे हैं। यदि हम अपने चारित्रिक-ह्रास को रोक लें, तो संसार की कोई भी शक्ति हमे हरा नहीं सकती और न हमारी उन्नति के आड़े आ सकती है। हम अपने इन्ही गुणों के कारण विश्व-गुरु थे। यही एक मात्र गुण हमे पुनः वह स्थान दिलाने में समर्थ हो सकता है। इस हेतु आप केवल एक इसी साहित्यकार-समाज की ओर दृष्टि जाती है। इसलिए साहित्यकारों को तुलसी जैसे महाकवियों की भाँति ऋषि-तुल्य साधना करनी होगी, जिनके एक महाकाव्य “रामचरितमानस” ने भीषण हताशा और पराक्रम हीनता के काल से गुज़र रहे तत्कालीन भारतीय समाज को नूतन ऊर्जा से भरा था। आज यह दौर भी आ गया है, जब वैसे महान संत कवि और उसकी महान रचना “मानस” पर आज कुछ अज्ञानी लोग प्रश्न उठा रहे हैं, जिसने समस्त संसार को “सिया राम मय” माना था। उनके जिस महान ग्रंथ को रहीम ख़ान ख़ाना जैसे महान कवि ने, हिंदुओं का क़ुरआन कहा था, उस ग्रंथ को कुछ नादान लोग फेंकने की बात करते हैं। समाज में घर पकड़ रहे इस आत्मघाती विचार को समूल नष्ट करने हेतु एक बार पुनः कवियों को आगे आना होगा!इस अवसर पर कवियों ने देशभक्ति गीत गाकर अपने अमर बलिदानियों के प्रति श्रद्धांजलि दी।सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, पूनम आनन्द, जय प्रकाश पुजारी, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा शालिनी पाण्डेय, कृष्ण रंजन सिंह, डा आर प्रवेश, कुमार अनुपम, प्रवीर पंकज, अर्जुन प्रसाद सिंह, अजीत कुमार भारती, कुमारी मेनका, डौली कुमारी, सूबेदार नन्दन कुमार मीत, कुमारी उत्तरा, शंभुनाथ पाण्डेय, पूजा ऋतुराज, सत्य नारायण शर्मा, डा कुंदन लोहानी आदि साहित्यकार उपस्थित थे।