मुख्य संपादक-जितेन्द्र कुमार सिन्हा के कलम से /कांग्रेस ने पहली चरण में “भारत जोड़ो” यात्रा चलाया और अब दूसरी चरण में “हाथ जोड़ो” चलायेगा। अभी तक किसी ने कांग्रेस वालों से यह नहीं पूछा कि भारत टूटा कब ? जो आप जोड़ने चले और अब कोई यह भी नहीं पूछेगा की हाथ छोड़ा कब जो हाथ जोड़ने जाएंगे।जबकि देखा जाय तो राहुल गांधी के संबंधी, जो पूर्व में सत्ता पाने के लिए आजादी से पहले ही भारत को तोड़ दिया, जिसका खामियाजा देश आजतक भुगत रहा है। “भारत जोड़ो” यात्रा से पहले भी देश में कई यात्रा निकला है लेकिन सभी का परिणाम शून्य रहा। इससे पहले 1998 से 2004 में सोनिया गांधी, 1983 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, 1990-1991 में लालकृष्ण आडवाणी, फिर वर्ष 2003 में वाई एस राजशेखर रेड्डी द्वारा यात्राएं निकाली गई थी चाहे वह जो भी यात्रा हो, परिणाम उस समय शून्य ही रहा। यूं तो भारतीय राजनीति में यात्रा का बड़ा महत्व रहा है। इसमें बिहार सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भीबिहार की राजनीति में सबसे पहले “विकास यात्रा”, उसके बाद से “धन्यवाद यात्रा”, “प्रवास यात्रा”, “विश्वास यात्रा”, “सेवा यात्रा”, “अधिकार यात्रा”, “संकल्प यात्रा”, “सम्पर्क यात्रा”, “निश्चय यात्रा”, “समीक्षा यात्रा”, “जल जीवन हरियाली यात्रा”, “समाज सुधार यात्रा” करने के बाद, अब “समाधान यात्रा” पर निकले हुए है। सभी यात्राओं का कोई परिणाम दिखा नहीं। उसी प्रकार “समाधान यात्रा” का परिणाम भी शून्य ही रहेगा।दुखद पहलू यह है कि राहुल गांधी अधिकतर चर्चित यात्राओं से कभी कुछ खास अर्जित नहीं किया है। अपनी राजनीतिक यात्रा में राहुल ने अपने साथ जिन विवादित सेलिब्रिटी को समय-समय पर शामिल किया है या यह कहें कि शामिल रहे हैं वे ज्यादातर विवादित लोग ही रहे, सर्वमान्य लोग नहीं। साथ ही राहुल गांधी मीडिया पर भी कवरेज नहीं दिखाने का आरोप लगाते रहे हैं, इससे तो यह लगता है कि महंगाई और बेरोजगारी के आंदोलन के बजाय खुद के प्रचार-प्रसार के लिए यह यात्रा निकाली गई थी।कांग्रेसी प्रवक्ताओं का ध्यान भी यात्रा के मुख्य मुद्दों के बजाय यात्रा की सफलता पर अधिक रहा, अक्सर यात्रा में उमड़ने वाली भीड़ पर, तो कुछ ने राहुल गांधी के दौड़ने की क्षमता पर और उनकी टी शर्ट पर चर्चा कर, राजनीतिक यात्रा को मुद्दे से भटका दिया है।कांग्रेस को चाहिए था कि पार्टी के पक्ष में अधिक सुरक्षा व्यवस्था न लेकर जन-जन तक अपना संपर्क बनाते। लेकिन कथनी और करनी के साथ ही साथ, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अमर्यादित टिप्पणी करने के कारण पार्टी का मान घटा है। इन्होंने और कांग्रेस के नेताओं ने “सेना के शौर्य” पर प्रश्न उठाया और “चीनी सेना से पिटने” की बात कहकर उनके मनोबल को गिराने जैसे घृणित काम किया है।राजनीति के एक खास समुदाय के पक्ष में झुकाव और हिन्दूओं के प्रति दुराभ ने तो इनके सभी मंसूबे को जगजाहिर कर दिया है और भारतीयता को शर्मशार किया है। वोट की राजनीति तो ठीक है लेकिन इसके चक्कर में यह भूल गए हैं कि किस समय क्या बोलना चाहिए। कांग्रेस के लम्बे शासन काल में किए गए कार्य और घटित घटनाओं का इनके पास कोई जवाब नहीं रहता है।कांग्रेस के लोग अक्सर इंसानियत को शर्मशार ही किया है। प्रियंका वाड्रा ने तो अपनी पेंटिंग “यश बैंक” के मालिक को अढ़ाई करोड़ में बेची, ए० के० एंटोनी अपनी पत्नी की पेंटिंग अठाईस् करोड़ में बेची। यह उदाहरण मात्र है, ऐसे न जाने कितने कुकर्मों का उजागर होना अभी बाकी हैं, जिसमें इन लुटेरों ने जनता के गाढ़ी कमाई का गबन किया है और काली कमाई के नाजायज तरीके से सफेद करने की कोशिश की और पकड़े भी गए। वर्ष 2014 के बाद जब कानून के शिकंजे कसने शुरु हुए तब ये सभी गुनाहगार फंसने लगे और सामने इनकी गुनाह दिखने लगे। आज सिर्फ कांग्रेसी ही नहीं बल्कि पूरी विपक्ष तिलमिलाया और घबराया हुआ है, क्योंकि सत्ता में रहकर धीरे-धीरे इनके जीतने गुप्त रास्ते थे वे सारे के सारे रास्ते बंद हो गए हैं और लम्बे अरसे तक सत्ता पर काबिज रहकर वंशवाद की राजनीति में मुखिया बनक भविष्य की कई पीढ़ियों का जुगाड़ लगा रहे सारे विपक्षी पार्टियों के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। एक तरफ तो उनकी कमाई का जरिय बाधित हो ही गया है, तो दूसरी तरफ ईडी, सीबीआई, इन्कमटैक्स जैसी स्वायत्त संस्थाओं की छापेमारी भी चल रही है और इस दरम्यान अकूट संपत्ति भी निकल रहा है जिस पर कानून के शिकंजे कसता भी जा रहा है। ऐसे में उनका सर्वस्व लूटता देख विपक्ष पार्टियां सरकार को संसद में जायज नाजायज मुद्दों पर घेरने में लगी रहती है।वर्ष 2024 के आम चुनाव में वर्तमान सरकार के पुनः आने की संभावनाओं को देखते हुए कांग्रेस ने राहुल गांधी की अगुवाई में भारत जोड़ो जैसी यात्र निकालना जरूरी समझा। लेकिन विडंबना है कि अपनी यात्र के दरम्यान इन्होंने हमारी सीमाओं की सुरक्षा में लगे जवानों के पीटे जाने की बात कहकर न सिर्फ उनके बहादुरी पर प्रश्न लगाया है बल्कि देश को भी शर्मशार भी किया है। चौथे स्तंभ मिडिया को भी पक्षपाती कहकर अपमानित किया है, कांग्रेस अपने वोट बैंक के लिए एक संप्रदाय का पक्ष लेती है और बाहुल्य हिंदूओं को तिरस्कृत करता है और तो और भरी मंच पर अपनी बहन से प्यार का ऐसा घिनौना इजहार जो कि भारतीय संस्कृति का परिचायक नहीं है बल्कि गंदी मानसिकता को दर्शाता है।