पटना, ११ फरबरी। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में अप्रतिम अवदान देनेवाले मनीषी विद्वान, प्रकाशक और संपादक आचार्य रामलोचन शरण ‘बिहारी’, खड़ी बोली के अभिनव गद्य शैली के प्रवर्तक माने जाते हैं। आचार्य शिवपूजन सहाय ने उन्हें ‘बिहार का द्विवेदी’ कहा है। आधुनिक हिन्दी के नव-जागरण के उषा-काल के जिन मनीषी हिन्दी-सेवियों को अत्यंत श्रद्धा से स्मरण किया जाता है, शरण जी उनमे अग्र-पांक्तेय हैं। वहीं विद्वान साहित्यकार डा शिववंश पाण्डेय एक ऐसे पुरोधा साहित्यिक व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने आलोचना-साहित्य में अत्यंत विशिष्ट योगदान दिया है। वे इस समय देश के वरिष्ठतम समालोचक हैं। ९२ वर्ष की आयु में भी इनकी सक्रियता चकित करती है, और प्रेरणा भी देती है।यह बातें, शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित आचार्य रामलोचन शरण जयंती और ९२वें जन्म-दिवस पर डा शिववंश पाण्डेय के अभिनन्दन-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने पुष्प-हार एवं वंदन-वस्त्र प्रदान कर डा पाण्डेय का अभिनन्दन किया। डा सुलभ ने कहा कि बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के लिए सौभाग्य का विषय है कि आचार्यवर्य श्रीरंजन सूरिदेव के पश्चात डा पाण्डेय जैसे मनीषी विद्वान और निरंतर लेखन-शील साहित्यकार सम्मेलन के प्रधानमंत्री हैं।डा सुलभ ने कहा कि समाज में शिक्षा और साहित्य के प्रति अनुराग जगाने वाले शरण जी ने बालकों और प्रौढ़ों की शिक्षा के लिए जो कार्य किए, वे चकित करते हैं। उन्होंने बालकों की शिक्षा के लिए सौ से अधिक पुस्तिकाएँ लिखीं, जिनमें ‘मनोहर पोथी’ सम्मिलित है। निरक्षरता-निवारण और प्रौढ़ शिक्षा के लिए भी उन्होंने शताधिक लघु-पुस्तकें लिखीं । बाल-पत्रिका ‘बालक’ का प्रकाशन किया। प्रकाशन संस्था’पुस्तक-भण्डार’ की स्थापना की। इसके माध्यम से महावीर प्रसाद द्विवेदी, महाकवि जय शंकर प्रसाद, बेनीपुरी, दिनकर, हरिऔंध तथा महात्मा गांधी के साहित्य का प्रकाशन किया। हिन्दी के लिए जो कुछ भी उन्होंने किया वह हिन्दी-साहित्य के इतिहास का गौरवपूर्ण पक्ष है। ‘मास्टर साहेब’ और ‘बिहारी जी’ लोक-नाम से लोकप्रिय शरण जी ने ८१ वर्ष की अपनी आयु में १८१ वर्षों के कार्य कर, समाज, शिक्षा, साहित्य और हिन्दी-सेवा का अत्यंत दुर्लभ और अतुल्य उदाहरण प्रस्तुत किया।आचार्य शरण जी की पुत्री प्रो इंदिरा शरण ने कहा कि पिताश्री, जो पूर्णतः वैष्णव थे,ने हिन्दी भाषा के अध्यापन और उन्नयन के समक्ष उपस्थित अनेक अभावों की पूर्ति की। उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। सादा-जीवन और उच्च विचार के मूर्तिमान रूप थे। वे जीवन-मुक्त व्यक्ति थे। नारी-शिक्षा पर उनका विशेष बल था। उन्होंने ‘व्याकरण बोध’ शीर्षक से हिन्दी व्याकरण लिखा। उनकी इस पुस्तक पर युक्त-प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के शिक्षा विभाग ने वर्ष १९१५ में उन्हें पुरस्कृत किया था।आचार्य शरण जी के पुत्र सीताराम शरण ने पिता की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि आचार्य जी के प्रति महावीर प्रसाद द्विवेदी जी, दिनकर जी, बेनीपुरी जी, आचार्य शिवपूजन सहाय, कलक्टर सिंह केसरी, हरिऔंध जी आदि देश भर के बड़े साहित्यकर अत्यंत श्रद्धा रखते थे। गांधी जी भी उनकी हिन्दी-सेवा के प्रशंसक थे।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि बिहार में हिन्दी साहित्य की कोई भी चर्चा पूरी नही हो सकती, जब तक रामलोचन शरण जी के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा न हो। आधुनिक हिन्दी के उन्नयन में उनका योगदान अतुल्य है। सम्मेलन के उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, महिला चरखा समिति की अध्यक्ष प्रो तारा सिन्हा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा मधु वर्मा, डा किशोर सिन्हा, आचार्य शरण की पुत्रवधु और लेखिका उर्मिला सिंह, शंभुनाथ पाण्डेय, डा पूनम आनंद, डा पुष्पा जमुआर, डा मीना कुमारी परिहार, डा रमाकान्त पाण्डेय, डा शकुंतला अरुण, आनंद किशोर मिश्र, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, चंदा मिश्र, डा पंकज पाण्डेय, संजय शुक्ल, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा शालिनी पाण्डेय, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त, डा प्रतिभा रानी, अर्जुन प्रसाद सिंह, प्रेमलता सिंह राजपुत, श्रद्धा कुमारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।समारोह में वाणी लोचन, जयंती शरण, डा नरेंद्र कुमार तिवारी, अवधेश नारायण, मोहिनी प्रिया, रामाशीष ठाकुर, मिहिर लोचन शरण, नीलाभ लोचन, अमन वर्मा, प्रमोद आर्य, सुजाता सिन्हा, कृष्णा मणिश्री, बाँके बिहारी साव आदि प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।