जितेन्द्र कुमार सिन्हा, (बेंगलुरु), 18 फरवरी ::महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया गया। शिव मन्दिरों में लोगों की लंबी कतारें देखी गई। लोगों का कहना था कि इस वर्ष महाशिवरात्रि पर शनि प्रदोष का अद्भुत संयोग है, क्योंकि शनि प्रदोष व्रत पुत्र की कामना के साथ रखा जाता है। महाशिवरात्रि के दिन शनि प्रदोष होने से भगवान शिव जल्द ही मनोकामना पूर्ण करते हैं। साथ ही यह व्रत शनि दोष दूर करने के लिए भी बहुत ही उत्तम माना गया है।जब देखा कि भगवान शिव पर कुछ लोग “मखाने की खीर”, तो कोई “लस्सी”, कोई “मालपुआ”, कोई “हलवा” और “ठंढई” चढ़ा रहे थे। इस संबंध में जब जानकारी ली तो लोगों ने बताया गया कि भगवान शिव को भोग में यदि “हलुआ” सुज्जी या कुट्टू के आटा का चढ़ाने हैं तो भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की इच्छाएं जल्द पूरी हो जाता है। कमोवेश सभी ने बताया कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह के चीज अर्पित किया जाता है ताकि प्रसन्न हो कर मनोकामना पूर्ण कर दे।प्रदोष व्रत के संबंध में यह कहा जाता है कि संध्या का वह समय जब सूर्य अस्त होता है और रात्रि का आगमन होता है यानि गोधूली बेला को प्रदोष काल कहा जाता है। इस समय समय शिव साक्षात प्रकट होते हैं और प्रदोष व्रत करने से चंद्रमा के अशुभ असर और दोषों से छुटकारा मिलता है। चंद्रमा मन का स्वामी होता है इसलिए चंद्रमा संबंधी दोष दूर होने से मानसिक शांति प्रसन्नता मिलती है। शरीर का ज्यादा हिस्सा जल है इसलिए चंद्रमा के प्रभाव से सेहत अच्छी होती है।महाशिवरात्रि के अवसर पर बेंगलोर के होसकोटे में और मैसुरू – बेंगलोर में “भजन संध्या” का आयोजन किया गया है, वहीं कर्नाटका की ओर से माचोहल्ली मागडी रोड स्थित अखिल भारतीय जाट समाज भवन में “जागरण” का आयोजन किया गया।विवाह उत्सव की जगह जगह शुक्रवार की रात से ही झांकियां निकाली जा रही है, जिसमें सैंकड़ों लोग उत्साह के साथ शामिल देखे जा रहे है।बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) द्वारा महाशिवरात्रि के दिन मांस की बिक्री और जानवरों की हत्या (पशु वध) पर प्रतिबंध लगाया है। बुचरखानों को भी बंद रखने का आदेश दिया गया है।ज्यादा भीड़ भाड़ वाले मंदिरों में बैरिकेड लगाया गया है और श्रद्धालु लोग उस बैरिकेड के माध्यम से कतारबध्य हो कर भगवान शिव के समक्ष नतमस्तक हो रहे हैं। सीसीटीवी कैमरे से निगरानी भी रखी जा रही है। जिन मंदिरों में चाक चौकंद रखा जा रहा है, उसमें चोलवंश के राजाओं द्वारा निर्मित नेलमंगला स्थित “मुक्ति नाथेश्वर मंदिर”, हलसुरु स्थित “सोमेश्वर मंदिर” एवम “मल्लेश्वर मंदिर”, वहीं हनुमंतनगर के नजदीक 16वीं शताब्दी में केम्पेगौड़ा द्वारा निर्मित “गवि गंगाधरेश्वर मंदिर”, बंनशंकरी स्थित “धर्मगिरी मंजुनाथ स्वामी मंदिर” प्रमुख है। ऐसे तो तमाम मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ और अधिकांश दुकानें बंद देखे जा रहें हैं।