पटना, ४ अक्टूबर । देश के महान स्वतंत्रता सेनानी, कवि और पत्रकार पं माखनलाल चतुर्वेदी सच्चे अर्थों में ‘भारतीय आत्मा’ थे, जिन्हें स्वतंत्रता के लिए वलिदान की प्रेरणा के आरंभिक काव्य-स्वर देने वाले कवियों में परिगणित किया जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने उन्हें’भारतीय आत्मा’ कहा था। वे जीवन-पर्यन्त राष्ट्र और राष्ट्र-भाषा के लिए संघर्षरत रहे। स्वतंत्रता-संग्राम में उन्होंने जेल की यातनाएँ भी भोगी और हिन्दी के प्रश्न पर भारत सरकार को ‘पद्म-भूषण सम्मान’ भी वापस कर दिया।यह बातें मंगलवार को, साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, वे एक वलिदानी राष्ट्र-प्रेमी थे। उनके विपुल साहित्य के मूल में, प्रेम, राष्ट्रभक्ति और उत्सर्ग की भावना है। उनकी विश्रुत काव्य-रचना ‘पुष्प की अभिलाषा’ की ये पंक्तियाँ- “चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,–मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक/ मातृभूमि पर शीश चढ़ानें जिस पथ जाएँ वीर अनेक”, देश और देश के लिए मर मिटनेवाले लाँखों वीर सपूतों की अशेष प्रेरणा है।चतुर्वेदी जी अद्भूत प्रतिभा के कवि, पत्रकार और लेखक थे। उनकी प्रथम काव्य-पुस्तक, ‘हिम किरीटिनी’ के लिए,१९४३ में, उन्हें तबके श्रेष्ठतम साहित्यिक सम्मान, ‘देव-पुरस्कार’ से अलंकृत किया गया था। साहित्य अकादमी की ओर से हिन्दी का प्रथम अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव भी उन्हें ही प्राप्त है। उनकी पुस्तक ‘हिमतरंगिनी’ के लिए यह पुरस्कार १९५५ में साहित्य अकादमी की स्थापना के ठीक अगले वर्ष दिया गया था।जयंती पर स्मृति-शेष लेखिका ललितांशुमयी को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि पिछली पीढ़ी में बिहार की जिन थोड़ी सी महिलाओं ने साहित्य की सेवा का व्रत लिया उनमे ललितांशु जी का नाम बहुत आदर से लिया जाता है। उन्होंने स्त्री-विमर्श को ही नहीं लेखन में महिलाओं की भागीदारी की भी प्रेरणा दी। वे सही अर्थों में एक साधवी साहित्यकार थीं।अतिथियों का स्वागत करते हुए,सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, हिन्दी भाषा से किसी भी प्रकार से संबंध रखने वाला कोई भी ऐसा व्यक्ति न होगा, जिसकी जिह्वा पर ‘पुष्प की अभिलाषा’ न आयी हो। इस गीत की असीम शक्ति से पूरा भारत परिचित रहा है।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, सुनील कुमार उपाध्याय, कुमार अनुपम, डा प्रतिभा रानी, मधु रानी लाल, अप्सरा रणधीर, शुभ चंद्र सिन्हा, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, सदानंद प्रसाद, अरुण कुमार श्रीवास्तव, डा वंदना मिश्र, कमल किशोर कमल, नेहाल कुमार सिंह निर्मल आदि कवियों ने अपनी रचनाओं से काव्यांजलि दी। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।समारोह में प्रो बी एन विश्वकर्मा, बाँके बिहारी साव, डा आशुतोष कुमार, डा रणधीर मिश्रा, डा चंद्रशेखर आज़ाद, अजित कुमार भारती, अमित कुमार सिंह, डा पंकज कुमार सिंह, रामाशीष ठाकुर, डा रामेश्वर पण्डित, अमीरनाथ शर्मा,दुःख दमन सिंह, मनोज कुमार झा समेत अनेक सुधीजन उपस्थित थे ।