पटना, ७ मई। ‘एक राष्ट्र और एक राष्ट्रभाषा’ के लिए संघर्ष के संकल्प के साथ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का दो दिवसीय ४२वाँ महाधिवेशन भव्यता के साथ संपन्न हो गया। सृजन के नव-उत्साह, सम्मान और अलंकरण लेकर विदा हुए, प्रतिभागी साहित्यकार।समापन-सह-सम्मान समारोह के उद्घाटन कर्ता और बिहार विधान सभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी ने कहा कि अपनी संस्कृति और उसकी चेतना की रक्षा एवं विकास में साहित्य की सबसे बड़ी भूमिका है। भरत की स्वतंत्रता के आंदोलन में साहित्यकारों की बड़ी भूमिका रही। साहित्यकारों की महिमा महान है।उन्होंने कहा कि जिस तरह माता-पिता की सेवा से हमें संस्कार और आशीर्वाद प्राप्त होता है, उसी भावना के साथ हमें साहित्य की सेवा करनी चाहिए।इससे देश को मजबूती प्राप्त होगी। इस अवसर पर, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने, श्री चौधरी को, सम्मेलन की उच्च मानद उपाधि ‘विद्या-वाचस्पति’ से विभूषित किया। विधान सभाध्यक्ष ने सम्मेलन द्वारा महाधिवेशन में दिए जाने वाले नामित अलंकरणों से ४७ साहित्यिक विभूतियों को सम्मानित किया।श्री चौधरी ने सारण ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष महेश्वर ओझा “महेश” के काव्य-संग्रह काव्य कुसुमावली का लोकार्पण किया।समारोह के मुख्य अतिथि और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि साहित्य सम्मेलन ने उन हिंदी-सेवियों को आज सम्मानित किया है, जो पूरी तन्मयता से हिन्दी भाषा और साहित्य की सेवा कर रहे हैं। इससे अनय साहित्यकारों को प्रेरणा मिलेगी।पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री और विधान पार्षद डा संजय पासवान ने कहा कि महाधिवेशन के माध्यम से साहित्य सम्मेलन पूरे देश से जुड़ता है और देश को जोड़ता है। साहित्य को इसीलिए जोड़ने का मध्यम मानता है। साहित्य वही है जो सबको जोड़े, तोड़े नहीं।इस अवसर पर सम्मेलन की ओर से अध्यक्ष ने यह प्रस्ताव रखा कि “भारत की स्वतंत्रता के ७५ वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात भी देश की कोई एक भाषा का राष्ट्र-भाषा घोषित नहीं होना, समस्त भारतीयों के लिए वैश्विक-लज्जा का विषय है। इस हेतु यह महाधिवेशन ‘एक राष्ट्र, एक राष्ट्रभाषा और एक राष्ट्र-लिपि’ हो इसकी मांग भारत सरकार से करताहै। जब तक हिन्दी देश की राष्ट्र-भाषा और ‘देव नागरी’ राष्ट्र-लिपि नही घोषित होती, तबतक साहित्य सम्मेलन और देश के सभी हिन्दी-सेवी और हिन्दी-प्रेमी संघर्षरत रहेंगे।”अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कार्यसमिति और स्वागत समिति के सभी अधिकारियों और सदस्यों के प्रति आभार प्रकट किया, जिनके अथक और अनवरत श्रम से यह महाधिवेशन भव्य रूप में संपन्न हुआ। उन्होंने सभी प्रतिभागी साहित्यकारों से महाधिवेशन में लिए गए संकल्पों की पूर्ति हेतु, नई ऊर्जा के साथ सन्नद्ध होने का आह्वान किया।समापन समारोह के पूर्व महाधिवेशन के दो वैचारिक-सत्र और एक विराट कवि-सम्मेलन भी संपन्न हुआ। आज का प्रथम और महाधिवेशन का तृतीय वैचारिक सत्र का विषय था- “एक राष्ट्र, एक राष्ट्र-भाषा और एक राष्ट्र-लिपि”। मुख्य वक्ता के रूप में अपना व्याख्यान देते हुए, भरत सरकार की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य वीरेंद्र कुमार यादव ने कहा कि भारत का मूल संविधान अंग्रेज़ी में लिखा गया। यही बड़ी भूल थी। हम आज भी हिन्दी की बात तो कर्ते हैं, किंतु हिंदी में बात नहीं करते। इस देश की एक राष्ट्रभाषा हो एक लिपि हो, यह तो आवश्यक है ही,किंतु इस हेतु हमें संघर्ष करना होगा। इसके पूर्व विषय प्रवेश करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री दा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, स्वतंत्रता की लदाई में हिन्दी की प्रमुख भूमिका थी। लेकिन संविधान-निर्माण के समय, वोट की राजनीति आरंभ हो गई।राणा अवधेश की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र में, डा सुमेधा पाठक तथा सागरिका राय ने भी अपना पत्र प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत पूर्व जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष प्रो बागेश्वरी नन्दन सिंह ने, धन्यवाद-ज्ञापन पुस्तकालय मंत्री ई अशोक कुमार तथा मंच-संचालन डा ध्रुव कुमार ने किया।आज के अंतिम और चौथे सत्र, जिसका विषय “‘भारत की वैश्विक दृष्टि और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा” थी, का उद्घाटन बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष डा विजय प्रकाश ने किया। उन्होंने कहा कि विश्व के अनय राष्ट्रों की दृष्टि अपने प्रभुत्व-विस्तार की रही है, जबकि भारत की दृष्टि प्रेम और सद्भाव के विस्तार की है। भारत में संबंधों का भी अपना विशाल-कोश है। हम मनुष्यों तो क्या पशु-पक्षियों, पेड़पौंधों, नदियों पर्वतों से भी संबंध जोड़ लेते हैं। भारत की यही वैश्विक दृष्टि उसकी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा का सूत्र है। यही दृष्ट, युद्ध की कगार पर खड़े विश्व को सन्मार्ग पर ला सकती है। ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट के कुलपति प्रो चक्रधर त्रिपाठी की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस सत्र में डा हेम राज मीणा, डा जंग बहादुर पाण्डेय, डा सीमा रानी तथा सारण जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष ब्रजेंद्र कुमार सिंहा ने भी अपने पत्र प्रस्तुत किए। अतिथियों का स्वागत संगठन मंत्री दा शालिनी पाण्डेय ने, धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने तथा मंच का संचालन कुमार अनुपम ने किया।सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ की अध्यक्षता में एक भव्य कवि-सम्मेलन का भी आयोजन हुआ, जिसका उद्घाटन ‘बिहार-गीत’ के रचनाकार और हिन्दी प्रगति समिति, बिहार के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण ने किया। चर्चित कवयित्री आराधना प्रसाद, डा विनोद कुमार सिंहा, डा नीलिमा वर्मा, पंकज कुमार वसंत, विद्या चौधरी, महेश कुमार मधुकर, आरपी घायल, दा सुरेश सिंह शौर्य, सावित्री सुमन,रंजना लता, शमा कौसर ‘शमा’, डा नीतू चौहान, प्रो छोटेलाल गुप्ता, डा सुनील कुमार उपाध्याय, राश दादा राश आदि कुल ७७ कवियों और कवयित्रियों ने इस विराट कवि सम्मेलन को यादगार बना दिया। कवियों का स्वागत वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन की लोकभाषा मंत्री डा पुष्पा जमुआर ने किया।
आज निम्नलिखित विदुषियों और विद्वानों को किया गया सम्मानित;-
क्रम संख्या एवं नाम : अलंकरण का नाम :संपर्क संख्या
श्री ज्वाला सांध्यपुष्प : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ स्मृति सम्मान
श्री सुरेश कुमार चौबे : गोपाल सिंह ‘नेपाली’ स्मृति सम्मान
डा राजू प्रसाद नीलोत्पल ऋतुकल्प : रामवृक्ष बेनीपुरी स्मृति सम्मान
श्री केशव मोहन पाण्डेय : केदार नाथ मिश्र ‘प्रभात’ सम्मान
श्री रवि रंजन : डा लक्ष्मी नारायण ‘सुधांशु’ स्मृति सम्मान
डा ऐनुल बरौलवी : पं मोहन लाल महतो ‘वियोगी’ सम्मान
श्री रवीन्द्र कुमार रतन : बाबा नागार्जुन सम्मान
श्री अमित कुमार दीक्षित : आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री सम्मान
डा पल्लवी कौशिक गुंजन : बच्चन देवी साहित्य साधना सम्मान
श्री श्यामल श्रीवास्तव : डा कुमार विमल सम्मान
डा हरेराम सिंह : कविवर पोद्दार रामावतार ‘अरुण’ सम्मान
श्री सुदर्शन प्रसाद राय : राम गोपाल शर्मा ‘रूद्र’ स्मृति सम्मान
डा अरविंद अंशुमान : महाकवि आरसी प्रसाद सिंह सम्मान
श्री ब्रज भूषण मिश्र : कलक्टर सिंह ‘केशरी’ स्मृति सम्मान
श्री ज़फ़र हबीबी : डा श्यामनंदन किशोर स्मृति सम्मान
डा राजीव सिंह : प्रो मथुरा प्रसाद दीक्षित स्मृति सम्मान
श्री देवेंद्र प्रसाद शर्मा : रामधारी प्रसाद विशारद सम्मान
डा नम्रता प्रकाश : कुमारी राधा स्मृति सम्मान
श्री हरि नारायण गुप्त : पं राम दयाल पांडेय सम्मान
डा ओम् प्रकाश पाण्डेय : अंगकोकिल डा परमानन्द पाण्डेय सम्मान
डा जनार्दन सिंह : आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव स्मृति सम्मान
श्री विनोद कुमार ‘विक्की’ : हास्य रसावतार पं जगन्नाथ प्र चतुर्वेदी सम्मान
डा गौरव रंजन : डा राम प्रसाद सिंह लोक-साहित्य सम्मान
श्री अरुण कुमार पासवान : पं प्रफुल्ल चंद्र ओझा ‘मुक्त’ सम्मान
श्रीमती निग़ार आरा : चतुर्वेदी प्रतिभा मिश्र साहित्य साधना सम्मान
श्री द्वारिका राय सुबोध : पं हंस कुमार तिवारी स्मृति सम्मान
श्री पप्पू मिश्र ‘पुष्प’ : पं रामचंद्र भारद्वाज स्मृति सम्मान
श्री रामनाथ सिंह ‘रमा’ : रामेश्वर सिंह काश्यप स्मृति सम्मान
डा विनोद कुमार सिन्हा : प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद सिन्हा स्मृति सम्मान
श्री राहूल राज : प्रो सीताराम सिंह ‘दीन’ स्मृति सम्मान
श्री नागेंद्र कुमार केशरी : डा शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव स्मृति सम्मान
श्री दिलशाद नज़मी : पीर मुहम्मद मुनिस स्मृति सम्मान
डा उमेश कुमार : महकवि काशीनाथ पाण्डेय स्मृति सम्मान
डा अजय कुमार : डा रवीन्द्र राजहँस स्मृति सम्मान
श्री बबन सिंह : पं छविनाथ पांडेय स्मृति सम्मान
श्री विकास सोलंकी : डा धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी शास्त्री स्मृति सम्मान
पं सत्यनारायण चतुर्वेदी : राष्ट्रभाषा प्रहरी नृपेंद्रनाथ गुप्त स्मृति सम्मान
डा सुनील चंपारणी : साहित्य-सारथी बलभद्र कल्याण स्मृति सम्मान
श्री अरविंद अकेला : डा नरेश पाण्डेय ‘चकोर’ स्मृति सम्मान
डा रत्ना पुरकायस्था : डा वीणा श्रीवास्तव स्मृति सम्मान
श्रीमती कश्मीरा सिंह : डा ललितांशुमयी स्मृति सम्मान
श्रीमती सुधा पाण्डेय : डा शांति जैन स्मृति सम्मान
डा पुष्पा कुमारी : विदुषी गिरिजा वर्णवाल स्मृति सम्मान
श्रीमती मिन्नी मिश्रा : विदुषी अनुपमानाथ स्मृति सम्मान
डा सोनम सिंह : साहित्य सम्मेलन हिन्दी सेवी सम्मान
श्रीमती राजकांता राज : साहित्य सम्मेलन हिन्दी सेवी सम्मान
श्री देवेंद्र नाथ शुक्ल : महकवि काशीनाथ पांडेय स्मृति सम्मान
श्री आलोक रंजन : साहित्य सम्मेलन युवा साहित्यकार सम्मान