पटना, १३ मई। हिन्दी के सुप्रतिष्ठ साहित्यकार एवं समालोचक डा अवध विहारी जिज्ञासु नहीं रहे। शुक्रवार की संध्या ८५ वर्ष की आयु में उन्होंने राजा बाज़ार स्थित अपने आवास पर अपनी अंतिम सांस ली।उनके निधन से साहित्य समाज में गहरा शोक व्याप्त है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने अपने शोक-संदेश में उन्हें हिन्दी का अनन्य सेवक बताते हुए कहा है कि जिज्ञासु जी हिन्दी के एकांतिक साधक थे और लगभग दर्जन भर अपने ग्रंथों से, उन्होंने हिन्दी का भण्डार भरे । उन ग्रन्थों में “मेरा भारत महान” और “महा मना त्रै” को पर्याप्त प्रसिद्धि मिली। उनके। ईशान से हिन्दी साहित्य और विशेष रूप से आलोचना-साहित्य की बड़ी क्षति पहुँची है।आज प्रातः आठ बजे दीघा घाट पर उनके पार्थिव देह का अग्नि-संस्कार संपन्न हुआ।बड़े पुत्र राजीव नयन ने मुखाग्नि दी। चार पुत्र और एक पुत्री के साथ अपने पीछे वे एक भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं, जो आज शोक-संतप्त है।शोक-व्यक्त करने वालों में, सम्मेलन के प्रधान मंत्री डा शिववंश पांडेय, उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा मधु वर्मा, कृष्ण रंजन सिंह, डा पूनम आनन्द, प्रो सुशील कुमार झा, डा शालिनी पाण्डेय, सागरिका राय आदि के नाम सम्मिलित हैं!