पटना 27 मई 2023 ; नई संसद भवन का कल होने वाले उद्घाटन के दिन को भारतीय लोकतंत्र का काला दिन बताते हुए राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा कि देश में लोकशाही को राजशाही में बदलने की साजिश हो रही है।राजद प्रवक्ता ने कहा कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत नई संसद भवन के शिलान्यास और उद्घाटन से महामहिम राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को अलग रखा गया है। जबकि भारतीय संविधान के अनुसार राष्ट्रपति हीं विधायिका और कार्यपालिका का प्रधान होता है। संविधान में स्पष्ट उल्लेख है कि संसद का मुखिया राष्ट्रपति होता है और कार्यपालिका के सारे आदेश के साथ हीं सभी शासनादेश भी राष्ट्रपति के नाम से हीं जारी होता है। उपराष्ट्रपति उपरी सदन यानी राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। पर दोनों को इस ऐतिहासिक अवसर से वंचित कर प्रधानमंत्री द्वारा संसद भवन का उद्घाटन करना भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक मर्यादाओं को अपमानित करने के समान है।राजद प्रवक्ता ने कहा कि यह कोई सामान्य घटना नहीं है जिसे नजरंदाज किया जा सके। जिस प्रकार राजशाही का प्रतीक सेंगोल (राजदंड) को म्यूजियम से निकालकर उसे महिमा मंडित किया जा रहा है उससे तो यही लगता है कि इस देश में लोकशाही व्यवस्था को बदलकर राजशाही व्यवस्था लागू करने की रणनीति पर केन्द्र की भाजपा सरकार आगे बढ़ रही है। राजशाही व्यवस्था में यह परम्परा रही है कि नये राजा के राज्याभिषेक के समय सेंगोल (राजदंड) को राजपुरोहित मंत्रोच्चार के द्वारा राजा के हाथों सौंप कर विधिवत रूप से प्रजा पर शासन करने के लिए अधिकृत करता है। राजशाही व्यवस्था में ऐसे शुभ अवसर पर दलित और आदिवासी की उपस्थिति को निषिद्ध माना जाता है। कल नये संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर जो व्यवस्था की गई है उससे तो यही लगता है जैसे किसी का राज्याभिषेक होने जा रहा है।राजद प्रवक्ता ने कहा कि इस देश का शासन संविधान से चलता है सेंगोल से नहीं। इसीलिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू ने इस सेंगोल को म्यूजियम में रख दिया था। यह संविधान की ताकत है कि इस देश में दो-दो दलित राष्ट्रपति बन चुके हैं और आज एक आदिवासी महिला देश का राष्ट्रपति है। पर यह भाजपा का चरित्र है कि वह उन्हें केवल वोट लेने का माध्यम मानती है वह न तो संसद भवन का शिलान्यास कर सकता है और न उदधाटन।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि भाजपा द्वारा गलत को सही साबित करने के लिए तरह तरह के कुतर्क दिए जा रहे हैं। एक और पुराने संसद भवन को जिसके अन्दर और बाहर हजारों लोगों की उपस्थिति में 14 -15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि में आजादी की औपचारिक घोषणा हुई और जश मनाया गया और अबतक 17 प्रधानमंत्रियों के शासनकाल का साक्षी बना वह अंग्रेजों का बनाया हुआ है इसलिए वह ग्राह्य नहीं है। पर जिस सेंगोल को ब्रिटिश राजा द्वारा बगैर किसी समारोह और औपचारिकता के एक कमरे में मात्र चंद लोगों की उपस्थिति में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बताया जा रहा है उसका महिमा गान हो रहा है।