पटना, २७ मई। मुंबई में अपनी गायिकी से धूम मचा रहे, सुविख्यात भजन और ग़ज़ल गायक सत्यम आनंदजी ने अपनी जादूई आवाज़ से, बिहार की सबसे बड़ी साहित्यिक संस्था बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में संगीत की पीयूष-वाहिनी सरिता बहा दी। उन्होंने अपने मधुर भजनों और दिलकश ग़ज़लों से साहित्याकारों और श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया। खचाखच भरे सभागार के सुधी श्रोता देर संध्या तक संगीत की दरिया में गोते लगाते रहे। साहित्य सम्मेलन में, शनिवार की संध्या आयोजित ‘आनंद संगीतोत्सव’ ने यह सिद्ध कर दिया कि साहित्य और संगीत में एक आंतरिक और अन्योनाश्रय संबंध है। किसी गायक के कंठ से जो शब्द सस्वर निकलते हैं, वे किसी कवि के ही हृदय के उद्गार होते हैं।संगीत और साधना की प्राचीन नगरी काशी (बनारस) से आए अपने संगत-कलाकारों के साथ सत्यम आनंदजी ने ‘राम नाम अति मीठा है’, ‘जग में सुंदर हैं दो नाम’, ‘पायो जी मैंने राम रतन धन पायो’, ‘अच्युतम केशवम’ आदि भजनों से भजन-सम्राट अनूप जलोटा को मंच पर उतार दिया। स्मरणीय है कि श्री सत्यम विगत १८ वर्षों से श्री जलोटा के साथ मंचों पर गाते रहे हैं। उन्होंने स्वयं से संगीतबद्ध की गईं ग़ज़लों ”फूल रस्मों की ख़ातिर नहीं लाइए/ फूल खिल जाएंग़े आप आ जाइए’, ‘जमाने का अगर डर था तो इक फ़ासला रखते’, ‘ये आँचल का मतला’ ,’बहुत ख़ूबसूरत हो तुम’ की भी सम्मोहक प्रस्तुति दी। उन्होंने सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की एक ग़ज़ल ‘दिल ही था तो ज़ख़्म भी था, कम न था/ तुम सा इक हकीम था तो ग़म न था’ को भी स्वर दिया।श्रोताओं के विशेष आग्रह पर उन्होंने ‘तुमको देखा तो ये ख़्याल आया’, ‘चौदवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो’, चाँदी जैसा रंग है तेरा, सोने जैसे बाल/ एक तु ही धनवान है गोरी/ बाँकी सब कंगाल’ , ‘चिट्ठी आयी है/ वतन से चिट्ठी आयी है’ आदि गीतों का भी गायन किया। बनारस से आए संगत कलाकारों में, राजेश मिश्र (तबला), मो इस्माइल (की-बोर्ड) तथा मनीष श्रीवास्तव (औकटोपैड) ने अपनी कलाकारी का शानदार प्रदर्शन किया।गत ६-७ मई को संपन्न हुए, सम्मेलन के ४२वें महाधिवेशन की देश-व्यापी सफलता के उपलक्ष्य में, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में आयोजित इस आनंद संगीतोत्सव का उद्घाटन पूर्व केंद्रीय मंत्री और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के चिकित्सक डा सी पी ठाकुर ने किया। उद्घाटन-समारोह में सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह, प्रो ललिता यादव, डा पूनम आनंद, आराधना प्रसाद, विभा रानी श्रीवास्तव,डा शालिनी पाण्डेय, दीपक ठाकुर, तलत परवीन, आनन्द मोहन झा आदि उपस्थित थे। डा ठाकुर ने सम्मेलन की ओर से श्री सत्यम को ‘संगीत-मार्तण्ड’ की उपाधि से विभूषित किया।अपने अध्यक्षीय उद्गार में डा सुलभ ने कहा कि सम्मेलन के ४२वें महाधिवेशन की सफलता पर एक बड़ा आनंदोत्सव मनाया जाना था। यह दो खंडों में संपन्न होगा। संगीतोत्सव के रूप में यह प्रथम खंड आज संपन्न हुआ है। दूसरा खंड सम्मानोत्सव के रूप में जून के दूसरे सप्ताह में आहूत किया जाएगा, जिसमें महाधिवेशन में योगदान देने वाले विद्वानो और विदुषियों तथा सम्मेलन कर्मियों को ‘सम्मेलन-शिरोमणि’, ‘सम्मेलन चूड़ामणि’ , ‘सम्मेलन रत्न’ और ‘सम्मेलन-सेवी’ अलंकरणों से विभूषित किया जाएगा।संगीत का आनंद लेने वाले प्रमुख श्रोताओं में विवेकानंद ठाकुर, डा सीमा रानी, तलत परवीन, कवि शंकर शरण मधुकर, जय प्रकाश पुजारी, डा सुषमा कुमारी, पंकज प्रियम, आभा गुप्ता, ज्ञानेश्वर शर्मा, अविनय काशीनाथ, लक्ष्मी प्रसाद साहू आदि सम्मिलित थे। मंच का संचालन सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।