पटना, ३ जून। “हृदय तरल ही चाहिए, इसकी बड़ी बिसात/ हृदय-शून्य जग हो रहा, करें हृदय की बात” —– “तरल तरल ही मन रहे, तरल तरल सब लोग/ हमें तरलता जोड़ती, सूखापन है रोग”– “कलुष नहीं मन में रहे, ऐसा हो उपचार/ निर्मल होकर बहेगी, तभी प्रेम की धार।” —— “ये तो भारी दोष हैं; द्वेष, ईर्ष्या, बैर/ मन इनसे हो मुक्त तो, सदा रहेगी ख़ैर।” ——बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, अपनी दो काव्य-पुस्तकों ‘मुझे भी कहने दो’ तथा ‘तरल तरल ही मन रहे’ के लोकार्पण के पश्चात कवि कमला प्रसाद, अपने काव्य-पाठ में, इन पंक्तियों के साथ श्रोताओं से मुख़ातिब थे। काव्य-पाठ की उनकी विशिष्ट शैली ने भी श्रोताओं पर गहरा प्रभाव छोड़ा। प्रत्येक पंक्ति पर श्रोताओं ने तालियों से उनका उत्साह वर्द्धन किया।समारोह का उद्घाटन करते हुए, हिन्दी प्रगति समिति, बिहार के अध्यक्ष कवि सत्य नारायण ने कहा कि एक कवि के रूप में कमला प्रसाद किसी परिचय के मुहताज नहीं है। इनकी रचनाओं में कहीं भी अनास्था और अविश्वास का स्थान नहीं है। वे आशा, आस्था और विश्वास के कवि हैं। इनकी रचनाएँ उत्साह और प्रेरणा देती हैं। मेरे छोटे भाई हैं किंतु मुझे भी प्रेरणा देते हैं। यह कवि कहता है कि कविता जीवन से अलग नहीं है।पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए, ‘साहित्य-यात्रा’ के संपादक और अनुग्रह नारायण महाविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डा कलानाथ मिश्र ने कहा कि लोकार्पित पुस्तकों के कवि छंदों के लोकप्रिय शिल्पकार हैं। ‘तरल तरल ही मन रहे’ शीर्षक ही सबकुछ व्यक्त कर देता है। कवि का भाव पक्ष और शिल्प-पक्ष, दोनों ही संपन्न है। उनकी चेतना जाग्रत है। अनुभूति के स्तर पर कमला जी ने समाज का सूक्ष्म अन्वेषण किया है।सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि कवि कमला जी ने अपनी पुस्तक ‘मुझे भी कहने दो’ के ब्याज से अपने मन की ख़ूब कही है, पर उनका काव्य-व्यक्तित्व और उनकी कवित्त-शक्ति का परिचय उनके दोहा-संग्रह ‘तरल-तरल ही मन रहे’ में प्राप्त होता है। इन दोहों से होकर गुजरते हुए, मन अनेको बार, उनके काव्य-कौशल और उनकी काव्य-प्रतिभा पर मोहित होता है। १५६० दोहों का यह संकलन, हिन्दी काव्य से किनारे हो रहे, ‘दोहा-छंद’ को नूतन प्राण दिया है। इस छंद पर, कवि ने ठीक ही कहा है कि “मर्यादा में है बंधा, कहता अपनी बात / दिखता है छोटा बहुत, इसकी बड़ी बिसात।”वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि कमला जी की कविताएँ जितनी पठनीय है, उतनी ही श्रवणीय भी है। ये मंचों के भी लोकप्रिय कवि हैं। इन्हें मंचों पर सुनना एक सुखद अनुभूति की तरह है। इनकी रचनाएँ हताश-निराश मन को उत्साह प्रदान करती हैं।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, पुस्तकों के प्रकाशक राजेश शुक्ल, कवयित्री आराधना प्रसाद, कुमार अनुपम, डा मेहता नगेंद्र सिंह, बच्चा ठाकुर, ब्रह्मानन्द पाण्डेय, डा डा सुषमा कुमारी, डा पंकज वासिनी, डा ओम् प्रकाश जमुआर, सुनील कुमार उपाध्याय, सिद्धेश्वर प्रसाद, प्रो सुशील कुमार झा, ई अशोक कुमार, चित रंजन लाल भारती, बाँके बिहारी साव, शंकर शरण मधुकर, श्रीकांत व्यास, अर्जुन प्रसाद सिंह, वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज आदि ने भी अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त की।इस अवसर पर, वरिष्ठ पत्रकार मदन मोहन ठाकुर, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, अमरेन्द्र कुमार, डा रणजीत कुमार, वंदना राज, नरेंद्र देव, नवनीत नन्दन सहाय, वीरेश कुमार सिंह, हिमांशु दूबे समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।मंच का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार और कौलेज ऑफ कौमर्स में प्राध्यापक डा विनोद कुमार मंगलम ने किया। धनयवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।