पटना, ११ जून। नवोदित लेखकों को भाषा के प्रति सचेत रहना चाहिए। शब्दों के प्रयोग के पूर्व उन्हें चाहिए कि वे उनका अर्थ और लिंग को अवश्य जान लें। यही शब्द की साधना है। कोई लेखक केवल अनुमान के आधार पर शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकता। भाषा भले सरल और सबके लिए सुबोध हो, किंतु वह दोष-मुक्त होनी चाहिए।यह बातें, रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन की स्थापना के सूत्र-धार रहे मनीषी हिन्दीसेवी रामधारी प्रसाद ‘विशारद’ की १२३वीं जयंती पर आयोजित ‘कथा-कार्यशाला’ की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि सृजन के विविध आयामों को जानना प्रत्येक साहित्यकार का अभीष्ट होना चाहिए। किंतु प्राथमिकता में भाषा ही होनी चाहिए। आपके पास भाषा है,शब्द-सामर्थ्य है, तो शिल्प और शैली आपकी अनुग़ामिनी हो जाएगी।कथा के रूप, भेद, शिल्प-शैली और रचना-विधान का प्रशिक्षण देते हुए, वरिष्ठ कथा-लेखक भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि बाज़ारवाद के इस युग में रचनात्मक कथाओं की व्यापक भूमिका हो सकती है। मन पर गहरा प्रभाव डालने वाली मूल्यपरक कथाएँ समाज की मानसिकता बदल सकती हैं। उन्होंने कथा-साहित्य के विविध अवयवों, कथानक, शिल्प, शैली, परिवेश, पात्रों का चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, कथारंभ और कथा के अंत के सृजन के संबंध में विस्तारपूर्वक चर्चा की।चर्चित उपन्यासकार और पत्रकार विकास कुमार झा ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए, इस बात पर बल दिया कि आज के रचनाकारों को वर्तमान की चुनौतियों को गम्भीरता से लेना होगा। आज की चुनौती यह है कि आज के सच को कल्पना के आधार पर लिखना है। कथा-सम्राट प्रेमचंद ने आज से सात दशक पहले अपने एक संपादकीय में लिखा था कि, “आज हम कल्पनाओं को सच के रुप में लिखते हैं। कल के कथाकारों को, सच को कल्पनाओं का रूप देकर लिखना होगा।”भोपाल से पधारी वरिष्ठ लेखिका डा प्रीति प्रवीण खरे तथा डा ध्रुव कुमार ने भी कथा-साहित्य पर अपने विचार व्यक्त किए।जयंती पर श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए, डा सुलभ ने कहा कि विशारद जी बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना के मुख्य सूत्रधार थे। सबसे पहले इनके ही मन में प्रांतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना का विचार आया और उनके ही प्रयास और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण वर्ष १९१९ में सम्मेलन की स्थापना हुई। विशारद जी हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार और उन्नयन में अपने तपो प्रसूत संकल्प के लिए सदा स्मरण किए जाते रहेंगे। वे, बौंसी, भागलपुर में आहूत हुए, सम्मेलन के १९वें अधिवेशन के सभापति चुने गए थे। इसके पूर्व वे सम्मेलन के उपसभापति और प्रधानमंत्री भी रह चुके थे।इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, भगवती प्रसाद द्विवेदी ने ‘गुंडे’ शीर्षक से, विभारानी श्रीवास्तव ने ‘जाल से फिसली’, डा पुष्पा जमुआर ने ‘जुगाड़ू’, मधुरेश नारायण ने ‘आग्रह’, कृष्णा मणिश्री श्याम बिहारी प्रभाकर ने ‘वाह री मित्रता’, जय प्रकाश पुजारी ने ‘पेड़ की आत्मा’डा नीतू चौहान ने ‘मित्र’, अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘मज़हब’, पुनीता कुमारी श्रीवास्तव ने ‘कथा का प्रभाव’ तथा पंकज प्रियम ने ‘पहले’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया।अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रचारमंत्री डा ध्रुव कुमार तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया।सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा, शंकर शरण मधुकर, बाँके विहारी साव, डा सुनील कुमार उपाध्याय, ई आनन्द किशोर मिश्र, सदानन्द प्रसाद, चंदा मिश्र, डा सुषमा कुमारी, डा कुंदन लोहानी, कमल किशोर ‘कमल’, सत्य प्रकाश पाण्डेय, शंकर शरण मधुकर, नीता श्रीवास्तव, अशोक कुमार, डा नागेंद्र कुमार शर्मा , नीतू चौहान, अनु गुप्ता, डा सुषमा कुमारी समेत बड़ी संख्या में साहित्यकार, प्रतिभागी और प्रबुद्धजन उपस्थित थे।