शैलेश तिवारी की विशेष रिपोर्ट /रतिक्रिया के लिए प्रकृति द्वारा निर्धारित समीकरण पर शोध कार्य करने वाली लेखिका दीपिका महेश्वरी ने अपनी पुस्तक स्त्री तंत्र में स्त्री के मासिक चक्र की बड़ी भावपूर्ण व्याख्या की है पुस्तक में लिखती है मानकर चलिए की स्त्री का मासिक काल 34 वर्षों का होता है उसमें यदि मासिक काल 16 से 50 वर्ष के बीच है तब फिर भी सही है यदि यह काल 9 वर्ष से 45 वर्ष के बीच खत्म हो रहा है तो शिशु को जन्म देने और परवरिश काल के निर्धारण को हमें जरूरत से ज्यादा ध्यान देना होगा 9 वर्ष से 18 – 21 वर्ष तक स्त्री मां बनने लायक होती है अब हम उसे 9 वर्ष की आयु में गर्भधारण करने के लिए नहीं कह सकते तब 34 वर्षों के अंतराल में से 9 वर्षों से 21 वर्षों का समय काटकर आप समय को जोड़िए 12 साल तो यहीं खत्म हो गए 34 में से 12 गए 22 साल बच्चे अब वर्तमान स्थिति के हिसाब से 28 से 30 साल मैं बच्चे को जन्म देना चाहती है स्त्री वह स्त्री जो पुरुष सोच से आगे बढ़ रही हैयदि 21 साल की आयु में 22 साल बचते हैं गर्भधारण के लिए तो 28 साल की आयु के हिसाब से 29 साल में गर्भधारण करेगी 34 – 29 = 3 साल अर्थात स्त्री के पास दूसरी बार गर्भधारण करने के लिए या गर्भवती होने के लिए मात्र 3 साल है जो 3 साल पार करते ही तो 45 की हो जाएगी यानी अपने जीवन काल में सिर्फ एक बार गर्भवती होगी जबकि उसे 34 सालों का यह सफर परवरिश काल को निकाल कर गर्भधारण करने में ही बिताना है मादा बंदर का परवरिश काल 3 साल मानते हैं वह 3 साल बाद बच्चे को जन्म देती है अगर हम हम भी अनुमानित तौर के लिए 8 साल का गैप मानकर परवरिश काल रखें क्योंकि गंगा ने 8 वर्ष की आयु में भीष्म को शांतनु को सौंपा था तो 34 सालों के सफर में हर बार नए बीज से स्त्री 4 बार 4 बच्चों को जन्म दे पाएगी एक गर्भ से कम से कम 4 बच्चों की पैदाइश होनी भी चाहिए क्योंकि चयन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए बहुत तादाद में नरों का पैदा होना जरूरी है नर ज्यादा पैदा होंगे तभी उनमें से काबिल नर का चयन किया जाएगा यह साइंस है प्रकृति की समझना प्रत्येक मनुष्य के के लिए बहुत जरूरी है इसे ऐसी भी लिख सकते हैं 21 साल होने पर 22 साल बचते हैं तो 29 साल होने पर 22 – 9 =13, 8 साल परवरिश कॉल निकाल देने पर 4 साल ही शेष बचेंगे जिनमें वो दोबारा गर्भवती हो सकती है परंतु इतना टाइम आते-आते वह 40 वर्ष में पहुंच जाएगी और 40 वर्ष में गर्भवती होना एक स्त्री के लिए जान जोखिम में डालना है.