जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 04 जुलाई ::गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मातृ उदबोधन आध्यात्मिक केन्द्र, निकट द्वारिका कॉलेज, अशोक नगर कंकड़बाग, पटना द्वारा “गुरु पूर्णिमा महोत्सव” सोमवार को कंकड़बाग टेम्पू स्टैण्ड स्थित “राजा उत्सव कम्युनिटी हॉल” में आयोजित किया गया। उक्त जानकारी मातृ उद्वोधन आध्यात्मिक केन्द्र के संचालक ठाकुर अरूण कुमार सिंह ने दी।उन्होंने बताया कि प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन “गुरु पूर्णिमा” मनाया जाता है। मानव जीवन में गुरु का स्थान सर्वोपरि है अर्थात् सर्व प्रथम होता है। जब प्रभु शुक्ल पक्ष आषाढ़ मास की एकादशी से कार्तिक माह के जेठाण तक शयन में चले जाते है, तब इस अवधि में कोई शुभ काम नहीं किए जाते है और तब प्रभु के प्रतिनिधि के रूप में “गुरु” नेतृत्व करते है, इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से संबोधित किया गया है।संचालक ठाकुर अरूण कुमार सिंह ने बताया कि “गुरु पूर्णिमा महोत्सव” दो पाली में आयोजित किया गया। पहली पाली में मातृ गुरु पूजनादि, चरणपादुका का मंत्रोक्त पूजनादि, मुख्य अतिथि का स्वागत, स्मारिका एवं कैलेंडर का लोकार्पण हुआ। दूसरी पाली में भजन कीर्तन, आरती, मुख्य अतिथि का स्वागत एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ।उन्होंने बताया कि पहली पाली में समारोह का उद्घाटन मुख्य अतिथि अवकाश प्राप्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के राम उपदेश सिंह ने किया। वहीं, विशिष्ठ अतिथियों में सूचना एवं जन संपर्क विभाग के अवकाश प्राप्त जितेन्द्र कुमार सिन्हा और इंडियन बैंक के अवकाश प्राप्त सुनील कुमार सिन्हा उपस्थित थे। सभी ने “स्मारिका एवं कैलेंडर” का लोकार्पण किया।संचालक ठाकुर अरूण कुमार सिंह ने बताया कि “मातृ उद्वोधन आध्यात्मिक केन्द्र” की ओर से राम उपदेश सिंह, जितेन्द्र कुमार सिन्हा और सुनील कुमार सिन्हा को अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह (मूमेंटो) देकर सम्मानित किया गया।उक्त अवसर पर मुख्य अतिथि राम उपदेश सिंह ने लोगों को संबोधित करते हुए ब्रह्मलीन सदगुरु बलराम जी महाराज की सानिध्य की जानकारी देते हुए अपनी संकलित पुस्तक को संदर्भित करते हुए कई कविताओं को सुनाया। वहीं, विशिष्ठ अतिथि जितेन्द्र कुमार सिन्हा ने ब्रह्मलीन सदगुरु बलराम जी महाराज से हुई मुलाकात और उनके द्वारा सचेत किए गये दिशा निर्देश पर प्रकाश डालते हुए उनके बताये रास्ते पर जिस प्रकार वे अभी भी चल रहे है उसी प्रकार सभी को अनुसरण करने को कहा। विशिष्ठ अतिथि सुनील कुमार सिन्हा ने गुरु के महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला।संचालक ठाकुर अरूण कुमार सिंह ने बताया कि दूसरी पाली (संध्याकाल) में अतिथि के रूप में योग चिकित्सक रविकांत, जागो भारत फाउंडेशन के सचिव जनार्दन पाटिल एवम मेयर सीता साहू कार्यक्रम में शिरकत किया। इन्हें भी मूमेंटम देकर सम्मानित किया गया। इस के बाद स्थानीय कलाकारों द्वारा भजन संध्या का आयोजन किया गया।मातृ उद्वोधन आध्यात्मिक केन्द्र के स्मारिका के संपादक सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि गुरु को विशेष महत्व देने के लिए गुरु पूर्णिमा को गुरु पूजन किया जाता है। गुरु मंत्र प्राप्त करने के लिए भी इस दिन को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने कहा कि साधना मार्ग कोई भी हो, ईश कृपा, संतकृपा, मातृकृपा तथा सदगुरु कृपा का आश्रय ही जीवन के लक्ष्य प्राप्ति तक पहुँचाने में समर्थ होता है। जिस व्यक्ति को ईश्वर, सदगुरु, संतजनों एवं आदिशक्ति के प्रति सच्ची श्रद्धा एवं विश्वास होता है वही व्यक्ति धनी होता है और इसी धन से नित्य सुख, शांति और तृप्ति मिलती है।संचालक ठाकुर अरूण कुमार सिंह ने कहा कि अपने गुरू के प्रति सम्मान व्यक्त करने से, गुरू के ज्ञान के प्रकाश से, मानव जीवन का अंधकार दूर होता है। सच्चे आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से ही पूर्ण ब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति संभव है। शरण में जाने से पूर्ण मोक्ष संभव है।
गुरु की कृपा हमें प्राप्त होती रहे इसके लिए हमें उनकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की जरुरत है।उन्होंने बताया कि गुरु एक तेज है, जिनके आते ही सारे संशय के अंधकार खत्म हो जाते हैं।गुरु वो मृदंग है, जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनना प्रारम्भ हो जाता है। गुरु वो ज्ञान है, जिसके मिलते ही भय समाप्त हो जाता है। गुरु वो दीक्षा है, जो सही मायने में मिलती है तो भव सागर पार हो जाते हैं। गुरु वो नदी है, जो निरन्तर हमारे प्राणों से बहती है। गुरु वह सत् चित् आनन्द है, जो हमें हमारी पहचान देता है। गुरु वो बांसुरी है, जिसके बजते ही मन और शरीर आनन्द अनुभव करता है। गुरु वो अमृत है, जिसे पीकर कोई कभी प्यासा नहीं रहता।गुरु वो कृपा है, जो सिर्फ कुछ सद् शिष्यों को विशेष रूप में मिलती है और कुछ पाकर भी समझ नहीं पाते हैं। गुरु वो खजाना है, जो अनमोल है। गुरु वो प्रसाद है, जिसके भाग्य में हो उसे कभी कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं पड़ती।संचालक ठाकुर अरूण कुमार सिंह ने कहा कि यदि गुरु धारण नहीं किया है तो आप कितना भी विवेक से कार्य करें सब निष्फल हो जाता है। शास्त्रों में भी वर्णन है कि गुरु के बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है और इस बात को सन्तों ने भी अपनी वाणियों में कहा है। सभी कर्मों का फल अवश्य मिलता है।
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