पटना, १६ जुलाई। स्मृति शेष कवि घनश्याम छंद पर अधिकार रखने वाले एक गम्भीर और संवेदनशील शायर थे। उनकी शायरी में जमाने का दर्द भी था और उसकी दवा भी थी। उनका भाव-पक्ष भी श्रेष्ठ था और कला-पक्ष भी। उनकी काव्य-प्रतिभा का लाभ हिन्दी जगत को मिलना आरंभ ही हुआ था कि विधाता ने उन्हें हमसे छीन लिया। साहित्य-जगत को उनसे बड़ी उम्मीदें थीं।यह बातें रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष डा जगदीश पाण्डेय की जयंती पर, बिहार के यशस्वी कवि श्री घनश्याम के ग़ज़ल-संग्रह ‘ख़ुशबू-ख़ुशबू रात ग़ज़ल है’ का लोकार्पण करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा जगदीश पाण्डेय को स्मरण करते हुए, उन्होंने कहा कि पराभव के गर्त में जा चुके साहित्य सम्मेलन के उद्धार में उनका बड़ा ही योगदान था। वे साहित्य समेत सभी सारस्वत सरोकारों से गहरे जुड़े हुए एक कोमल भावनाओं से युक्त उदार व्यक्ति थे। साहित्य और साहित्यकारों के पक्ष में सदल-बल खड़े रहने वाले पाण्डेय जी सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे।समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय की अवकाश प्राप्त न्यायाधीश और चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि, साहित्य और साहित्यकारों के प्रोत्साहन के लिए बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के योगदान को कभी भुलाया नही जा सकता। विगत कुछ वर्षों में सम्मेलन ने उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। उन्होंने लोकार्पित पुस्तक के कवि को श्रद्धांजलि देती हुई, पुस्तक के प्रकाशन हेतु उनके पुत्रों को बधाई दी।इस अवसर पर, वरिष्ठ कवि प्रेम किरण को ‘कवि घनश्याम स्मृति सम्मान’ से विभूषित किया गया। सम्मान स्वरूप, न्यायमूर्ति ने उन्हें स्मृति-चिन्ह, सम्मान-पत्र और वंदन-वस्त्र के साथ पाँच हज़ार एक सौ रूपए की राशि प्रदान की।मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति हेमन्त कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि कवि घनश्याम मंचों के अत्यंत महत्वपूर्ण कवि थे। उन्हें सुनने का भी अनेक बार अवसर मिला। उनका असमय चला जाना हम सबके लिए दुखदायी है। यह संतोष की बात है कि उनके निधन के बाद उनके पुत्रों ने उनकी ग़ज़लों का संग्रह प्रकाशित किया।पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि यह संग्रह का एक ऐसा दर्पण है, जिसमें हर पाठक अपना चेहरा देख सकता है। घनश्याम एक ऐसे गजलगो थे, जो हिन्दी के तत्सम-शब्दों और मुहाबरों का विद्वतापूर्ण प्रयोग किया। वो सभी बड़े कवि की भाँति मनुष्यता के पोशाक थे।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने विस्तारपूर्वक सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यदि मुझे सम्मेलन का इतिहास लिखने का अवसर मिल सका तो मैं इसे पाँच काल-खंडों में बाँट कर मूल्यांकन करूँगा, जिनमे एक खंड जगदीश पाण्डेय का अवदान काल होगा और दूसरा वर्तमान का उन्नयन-काल।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, कवि घनश्याम के पुत्र एकलव्य केसरी, उनकी विधवा उषा किरण, आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, आरपी घायल, रमेश कँवल, आराधना प्रसाद, मधुरेश नारायण, शायरा तलत परवीन, शुभ चंद्र सिन्हा, डा सीमा कुमारी, विभा रानी श्रीवास्तव, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा प्रतिभा रानी, डा मीना कुमारी परिहार, कमल किशोर ‘कमल’, डा पूनम सिन्हा श्रेयसी, डा मेहता नगेंद्र सिंह, जय प्रकाश पुजारी, डा अलका कुमारी, प्रकाश पुजारी, डा शालीनी पाण्डेय, ई अशोक कुमार, प्रभात कुमार धवन, लता प्रासर, डा सुषमा कुमारी, मीरा प्रकाश, पूनम कटरियार, अमृता सिन्हा, मो नसीम अख़्तर, सुनील कुमार, अर्जुन प्रसाद सिंह, रामेश्वर द्विवेदी,चितरंजन लाल भारती, सदानंद प्रसाद, सिद्धेश्वर आदि कवियों ने अपनी रचनाओं से उत्सव को रसपूर्ण बना दिया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। डा नागेश्वर प्रसाद यादव, बाँके बिहारी साव, चैतन्य चंदन, रणजीत केसरी, शुभ्रा शिवांगी, डा जनार्दन पाटिल, डा रमेश द्विवेदी समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।