जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 16 जुलाई ::महाराष्ट्र की ताजा राजनीतिक घटनाक्रम ने देश के राजनीति में खल वली मचा दिया है।विपक्षी महागठबंधन के एक बड़े दल का इस तरह से टूटना समूचे विपक्ष को प्रभावित करेगा।बिहार में विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को परास्त करने के लिए महागठबंधन में शामिल होने वाले दलों की बैठक 23 जून को पटना में बुलाई थी, जिसमें 15 राजनीतिक पार्टियां शामिल हुए थे। इन पार्टियों में महाराष्ट्र की एनसीपी पार्टी भी शामिल थी। आश्चर्य तो तब हुआ, जब महाराष्ट्र की एनसीपी पार्टी जो महाराष्ट्र की सत्ता पक्ष को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ती है, उनके नेता अजित पवार अपनी एनसीपी पार्टी से बगावत कर महाराष्ट्र की भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) की सरकार में शामिल होकर उप मुख्यमंत्री (डिप्टी सीएम) बन गए है। अजीत पवार राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार के भतीजा है। महाराष्ट्र की घटना क्रम से एनसीपी पार्टी का जो हश्र हुआ है वह आश्चर्य चकित ही नहीं, बल्कि एक बड़ा विरोधाभास के साथ ही विपक्षी एकता का संकट है। इसका बौखलाहट महागठबंधन के सूत्रधार के साथ अन्य विपक्षी पार्टियों में स्पष्ट दिखाई दे रहा है।वर्तमान समय में सम्पूर्ण भारत में आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक सियासत तेज हो गई है। बिहार में भी कई छोटी छोटी पार्टियां निरंतर अपना कद बढ़ा रहा है और खुद को एक बड़े बैनर के साथ आने की कोशिश कर रहा है। इसमें भी मुद्दों के साथ जाति को बाटने की कोशिश की जा रही है।बिहार में महागठबंधन की हुई बैठक में जदयू, राजद, कांग्रेस, भाकपा, माकपा, भाकपा माले, एनसीपी, झामुमो, टीएमसी, डीएमके, शिवसेना(बाला साहेब ठाकरे गुट), समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी के कुल 27 नेता शामिल हुए थे। इन पार्टियों में से आम आदमी पार्टी अपना स्वार्थ सिद्ध पूरा नहीं होने के कारण महागठबंधन से लगभग अपने को अलग कर लिया है। वहीं, एनसीपी जो अपने आप में एक मजबूत स्तंभ था वह भी अपने आप में बिखर गई है। इससे दो तीन महीनों में कुछ और राजनीति में उथल पुथल होने की संभावना दिख रही है। जहां तक सवाल है महागठबंधन में विपक्ष की सभी पार्टियों को साथ लाने की। यह एक बड़ी चुनौती होगा, क्योंकि ऐसा लग रहा है कि टीएमसी, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस और अन्य पार्टियों का तालमेल होना मुश्किल होगा।महाराष्ट्र के एनसीपी घटना को पटना में हुई महागठबंधन की बैठक से जोड़ कर देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को घेरने के मकसद से हुई बैठक में ऐसी संभावनाएं बन रही थी की एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार महागठबंधन में सूत्रधार की भूमिका निभायेंगे। क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के 2024 लोकसभा चुनाव से बाहर रहने पर महागठबंधन में शरद पवार ही एक ऐसे नेता दिखते हैं जो विपक्षी पार्टियों में तेलंगाना के केसीआर, आंध्रप्रदेश के जगमोहन रेड्डी, ओडिशा के नवीन पटनायक जैसे नेताओं से तालमेल बनाकर आसानी से वार्ता कर सकते हैं। ऐसे में महागठबंधन के संयोजक बनाए गए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्थिति तत्काल मूक दर्शक का हो गया है। अब देखना होगा की महागठबंधन की 17 और 18 जुलाई को बेंगलुरू में होने वाली दूसरी बैठक की क्या स्थिति रहती है। बैठक का मुद्दा क्या होगा ? किस एजेंडे पर विपक्षी पार्टियां एक होगी ?शांति मन से अगर मनन किया जाय तो यह स्पष्ट दिखेगा कि राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी पार्टियों के भ्रष्टाचार, सत्ता और आंतरिक असंतोष के बावजूद ऐसे समझौते, दलवदल करना, उनके लिए आम बात हो गयी हैं। देखा जाए तो धनबल के सहारे सत्ता और सत्ता के सहारे धनबल आज की राजनीति की विकृति एवं विसंगति बन गया है। इसी का परिणाम है कि महाराष्ट्र में एनसीपी में आई भूचाल, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में, बिहार में जदयू और झारखंड में झामुमो पार्टी में टूट का खतरा सुर्खियों में है। ऐसा ही डर कुछ अन्य छोटी छोटी पार्टियों में भी दिखता है।राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने अब भी कहा है कि हमलोग एकजुट हैं और रहेंगे। हम सब एक होकर लड़ेंगे और भाजपा को हरायेगें। लेकिन महाराष्ट्र में जो हुआ हैं उससे विपक्ष में खलबली है, घबराहट है एवं बेचैनी है, जो स्पष्ट देखी रही है। सुर्खियों में अक्सर देखा जा रहा कि जो पटकथा महाराष्ट्र में लिखी गयी है, वहीं बिहार सहित अन्य राज्यों में भी लिखी जा सकती है।अब अगर महागठबंधन की पार्टियों पर गौर किया जाय तो वर्तमान घटना इस ओर इशारा करती है कि केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने राजद नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री को जमीन के बदले रेलवे में नौकरी दिलाने के कथित घोटाले में आरोपी बना दिया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष में जम कर जुबानी जंग हुई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तेलंगाना के खम्मम में रैली की और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव पर हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस उनके साथ कभी तालमेल नहीं करेगी। वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने हैदराबाद जाकर चंद्रशेखर राव से मुलाकात की। अध्यादेश के मसले पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच लड़ाई तेज हो गई है और आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता की खुल कर वकालत की है। ये सारी घटनाएं से स्पष्ट होता है कि विपक्षी पार्टियों की चुनौतियां बेतहाशा बढ़ रही हैं।
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