पटना, २० जुलाई। बहु-आयामी व्यक्तित्व और प्रतिभा के धनी आचार्य फ़ज़लुर्रहमान हाशमी न केवल मैथिली, हिन्दी और ऊर्दू के मनीषी विद्वान और समर्थ साहित्यकार थे, अपितु भारतीय दर्शन से अनुप्राणित एक राष्ट्रवादी मुसलमान थे। उन्हें पाली और संस्कृत का भी गहन ज्ञान था। भारतीय-दर्शन और वैदिक-साहित्य का भी उन्होंने गहरा अध्ययन किया था। इसीलिए उनकी काव्य-रचनाओं में अनेक पौराणिक-प्रसंग प्रमुखता से आए हैं। साहित्यिक मंचों के भी वे कुशल और लोकप्रिय संचालक थे। उन्हें न केवल साहित्य अकादमी पुरस्कार से विभूषित किया गया था, बल्कि उन्हें अकादमी का सदस्य भी बनाया गया था। तीनों भाषाओं में उनके द्वारा रचित १७ ग्रंथ उनके महान साहित्यिक अवदान के परिचायक हैं। वे मैथिली, हिन्दी और ऊर्दू के मनीषियों के बीच समान रूप से आदर पाते रहे।यह बातें गुरुवार को, आचार्य हाशमी सांप्रदायिक सौहार्द मंच के सौजन्य से, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, आचार्य हाशमी की १२वीं पुण्यतिथि पर आयोजित स्मृति-सह-सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि आज जब संपूर्ण वसुधा में सांप्रदायिक सौहार्द पर ग्रहण लगा हुआ है, आचार्य हाशमी अत्यंत प्रासंगिक हैं और बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन को उनको स्मरण करते हुए, गौरव की अनुभूति हो रही है।इस अवसर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी और साहित्यकार पं मंत्रेश्वर झा को उनकी मैथिली सेवा के लिए, बेगूसराय के वयोवृद्ध साहित्यकार अशांत भोला को उनकी हिन्दी-सेवा के लिए, वरिष्ठ साहित्यकार और पूर्व प्रधानाचार्य कस्तूरी झा ‘कोकिल’को शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यवान योगदान के लिए, कोलकाता के मशहूर शायर अशरफ़ याक़ूबी को उनकी ऊर्दू सेवा के लिए, समाज सेवी सैयद अकील अख़्तर को सांप्रदायिक-सौहार्द में उल्लेखनीय कार्यों के लिए तथा किशोर साहित्यकार सैयद असद आज़ाद को बाल-साहित्य में योगदान के लिए, आचार्य फ़ज़लुर्रहमान हाशमी स्मृति-सम्मान से विभूषित किया गया। इस अवसर पर असद आज़ाद की पुस्तक ‘मेघ-देवता’का लोकार्पण भी किया गया। समारोह के उद्घाटन-कर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने सभी मनीषियों को, वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह,प्रशस्ति-पत्र तथा २१ सौ रूपए की सम्मान-राशि देकर सम्मानित किया।
अपने उद्गार में डा ठाकुर ने कहा कि साहित्य में, विशेष कर मैथिली साहित्य में आचार्य हाशमी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे सांप्रदायिक सौहार्द के मिसाल थे।समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य इम्तियाज़ अहमद करीमी ने कहा कि एक साहित्यकार का काम पथ-प्रदर्शक का है। आचार्य हाशमी ऐसे ही एक पथ-प्रदर्शक थे, जिन्होंने भटके हुए लोगों का अपने साहित्य से मार्ग-दर्शन किया।मौलाना मज़हरूल हक़ अरबी फ़ारसी विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो तौकीर आलम, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, सुप्रसिद्ध उपन्यासकार प्रो अली इमाम तथा बच्चा ठाकुर ने भी अपने विचार रखे।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन में सम्मनित कविगण बेगूसराय के अशांत भोला तथा कोलकाता के वरिष्ठ शायर अशरफ़ याक़ूबी सहित शहंशाह आलम, प्रफुल्ल मिश्र, एहसान शाम, आरपी घायल, शमा कौसर ‘शमा’, डा शालिनी पाण्डेय, तलत परवीन, शुभ चंद्र सिन्हा, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, जय प्रकाश पुजारी, ई अशोक कुमार, अर्जुन प्रसाद सिंह, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी काव्य-रचनाओं से समारोह को यादगार बना दिया।अतिथियों का स्वागत मंच के अध्यक्ष और पत्रिका दूसरा मत के संपादक ए आर आज़ाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया।सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील झा, परवेज़ आलम, बाँके बिहारी साव, चंदा मिश्र, प्रवीर पंकज, डा चंद्रशेखर आज़ाद, मनोज कुमार उपाध्याय, जनार्दन पाटिल, दिलीप गायकवाड़, मो शादाब मंजर, उर्मिला सिंह, दुःख दमन सिंह आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।