जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 24 जुलाई ::भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष, हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से इंसान को बचाता है, इसलिए इसका बहुत महत्व है। रुद्राक्ष कवच की तरह नकारात्मक ऊर्जा से, असरदार रूप से, बचाने का काम करता है। इसलिए यह अपने आप में एक अलग विज्ञान है। अर्थव वेद में रुद्राक्ष के संबंध में बताया गया है कि रुद्राक्ष के ऊर्जा को, लोग अपने हित के लिए और दूसरे को अहित करने के लिए कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है।रुद्राक्ष के संबंध में कहा गया है कि खुले में या जंगलों में रहने वाले साधु-संयासी अनजाने स्रोत का पानी नही पीते है, क्योंकि अक्सर किसी जहरीला गैस या किसी वजह से पानी जहरीला भी हो सकता है, रुद्राक्ष की मदद से यह जाना जा सकता है कि वह पानी पीने लायक है या नही। इसके लिए रुद्राक्ष को पानी के ऊपर लटकाना होगा । यदि पानी के ऊपर रुद्राक्ष घड़ी की दिशा में घूमता है तो इसका अर्थ हुआ कि पानी पीने योग्य है और यदि रुद्राक्ष घड़ी के उल्टे दिशा में घूमता है तो इसका अर्थ हुआ कि पानी पीने लायक नहीं है।रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओं से हुई है। रुद्र अर्थात् शिव और अश्र अर्थात् आँसू। तात्पर्य यह है की शिव के आँसू ही रुद्राक्ष है, जो फल के रूप में उत्पन्न हुए है। इस संदर्भ में शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता में उल्लेख मिलता है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी रुद्राक्ष के जन्मदाता भगवान शंकर को माना गया है। शिवपुराण, स्कन्दपुराण, लिंगपुराण आदि में रुद्राक्ष के सम्बंध में आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक प्रकरण मिलते है।भारत में रुद्राक्ष, विशेषकर हिमालय के आंचलिक भागों में पाया जाता है। बिहार की सीमा से जुड़ा नेपाल के भोजपुर जिले में रुद्राक्ष की पैदावार अधिक होती है। इसके अतिरिक्त तिब्बत, इंडोनेशिया, सुमात्रा, चीन, जावा, मलेशिया, मेडागास्कर, पैसिफिक आइलैंड में भी रुद्राक्ष पैदा होती है।पुराणों में रुद्राक्ष एकमुखी से लेकर इक्कीसमुखी तक का उल्लेख है, जबकि सामान्य रूप से चौदहमुखी तक का ही रुद्राक्ष मिलता है।
एकमुखी रुद्राक्ष
एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात शिव स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी दूर हो जाता है। एकमुखी रुद्राक्ष को अद्वितीय परब्रह्म, वृक्ष संभव ब्रह्म और वृक्ष सम्भव महारत्न माना गया है। इसलिए एकमुखी रुद्राक्ष सर्वोत्तम माना गया है। एकमुखी रुद्राक्ष अत्यंत दुर्लभ होता है। नेपाल के असली एकमुखी गोल दाने वाले रुद्राक्ष का दर्शन भी किसी भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है।
द्विमुखी रुद्राक्ष
द्विमुखी रुद्राक्ष शिव और शक्ति का स्वरूप माना गया है।इसके धारण करने से मानव मुक्ति और मुक्ति, दोनों प्राप्त होता है। अनेक पापों के साथ-साथ गोवध जैसे महापाप भी दूर होता है। इसके धारक को मानसिक शांति, बुद्धि-विवेक जागृत, पारिवारिक सौहार्द में वृद्धि और कार्य-व्यापार में सफलता, मिलती है। यह द्विमुखी रुद्राक्ष भी अत्यंत दुर्लभ होता है, नेपाली गोल दाने के रूप में बहुत कम ही प्राप्त होता है।
त्रिमुखी रुद्राक्ष
त्रिमुखी रुद्राक्ष सत्व, रज और तम, इन तीनों के त्रिगुणात्मक शक्तियों का स्वरूप माना गया है। यह ब्रह्मा, विष्णु और शिव के स्वरूप का त्रिमूर्तिमय रूप होता है। त्रिमुखी रुद्राक्ष मानव को त्रिकालदर्शी बनाता है अर्थात भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान देने वाला होता है। त्रिमुखी रुद्राक्ष को अग्नि रूप माना गया है, इसलिए इसे धारण करने से मनुष्य की विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का दमन होता है और रचनात्मक प्रवृत्तियों का उदय होता है।
चतुर्मुखी रुद्राक्ष
चतुर्मुखी रुद्राक्ष को चतुर्मुख ब्रह्मा का स्वरूप और चारों वेदों का रूप माना गया है। यह चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र और चारों आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास के द्वारा पूज्य और वंदनीय है। इसे धारण करने से चतुर्वर्ग फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति और सभी तरह के मानसिक रोग ठीक होता है।
पंचमुखी रुद्राक्ष
पंचमुखी रुद्राक्ष को भगवान शिव का पंचानन (पाँच मुखों) और पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का साक्षात स्वरूप बताया गया है। पंचमुखी रुद्राक्ष को कालाग्निरुद्र का प्रतीक भी माना गया है। इसे धारण करने से सब प्रकार के पाप मिट जाता है, इसलिए इसे अत्यंत प्रभावशाली तथा महिमामय माना जाता है।
षष्टमुखी रुद्राक्ष
षष्टमुखी रुद्राक्ष को षडानन कार्तिकेय का स्वरूप माना गया है। शास्त्रों के अनुसार षष्टमुखी रुद्राक्ष को स्वयं कार्तिकेय अपने सिर पर धारण करते थे। इसे धारण करने से शिक्षा, काव्य, व्याकरण, ज्योतिषशास्त्र, चारों वेद, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों का मर्मज्ञ विद्वान हो सकता है। यह काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर को नष्ट करता है और चर्म रोग, हृदय की दुर्बलता तथा नेत्र रोग दूर होते है।
सप्तमुखी रुद्राक्ष
सप्तमुखी रुद्राक्ष मानव शरीर निर्मित होने वाले सप्तावरण यथा- पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, महत्तत्व और अहंकार का रूप माना गया है। सप्तमुखी रुद्राक्ष ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी और चामुण्डा के प्रतीक है, इसलिए यह रुद्राक्ष सप्त ऋषियों को अत्यंत प्रिय रहा है। सप्तमुखी रुद्राक्ष धन-सम्पत्ति, कीर्ति और विजय प्रदान करती है । इसे धारण करने से स्त्री सुख भरपूर मिलता है।
अष्टमुखी रुद्राक्ष
अष्टमुखी रुद्राक्ष पौराणिक ग्रंथों के अनुसार अष्टमूर्ति (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, सूर्य, चन्द्र और यजमान) स्वरूप साक्षात शिव शरीर माना गया है। इसे अष्ट प्रकृति पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, महत्तत्व और अहंकार का भी प्रतीक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करने वाले आठों दिशाओं में विजय प्राप्त करता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष को विनायक देव का स्वरूप भी माना गया है। इसके धारक को अन्न, धन तथा स्वर्ण की वृद्धि होती है और समस्त विघ्न-बाधाएँ मिटती है।
नवमुखी रुद्राक्ष
नवमुखी रुद्राक्ष को नौ शक्ति से संपन्न माना जाता है। नवमुखी रुद्राक्ष को नौ तीर्थों यथा- पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, विश्वनाथ, जगन्नाथ, पारसनाथ, वैधनाथ तथा नाथ सम्प्रदाय के नौ नाथों नागार्जुन नाथ, जड़भरत नाथ, हरिश्चन्द्र नाथ, सत्यनाथ, भीमनाथ, गोरखनाथ, चरपट नाथ, जालंधर नाथ तथा मलय अर्जुन नाथ आदि के स्वरूप और शास्त्रों में इसे नवार्ण मंत्र (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) के ज्ञान स्वरूप शक्ति से युक्त माना गया है। इसे धारण करने वाले तन मन से सदा पवित्र रहता है।
दशमुखी रुद्राक्ष
दशमुखी रुद्राक्ष को दशावतार – मत्स्य, कच्छप, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कलिक के स्वरूप का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने से दसों दिशाओं और दस दिक्पाल इन्द्र, अग्नि, यम, निऋति, वरुण, वायु, कुवेर, ईशान, अनन्त और ब्रह्मा धारक से संतुष्ट रहते है।
एकादशमुखी रुद्राक्ष
एकादशमुखी रुद्राक्ष को महारुद्र वीरभद्र के स्वरूप का प्रतीक माना गया है। स्वर्ग और पाताल लोक में अनेको रुद्र है और यह मान्यता है कि एकादशमुखी रुद्राक्ष धारण करने वाले से सभी रुद्र प्रसन्न रहते है। इसे धारण करने से एकादशी व्रत के समान फल मिलता है। एकादशमुखी रुद्राक्ष को सिर पर या शिखा पर धारण करने से सहस्र अश्वमेघ यज्ञ और एक लाख गाय दान करने के बराबर फल तथा सभी कष्ट और संकट दूर होते है।
द्वादशमुखी रुद्राक्ष
द्वादशमुखी रुद्राक्ष को द्वादश आदित्य का स्वरूप माना गया है। द्वादशमुखी रुद्राक्ष को साक्षात बारह ज्योतिर्लिंग (सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकाल, ओंकारेश्वर, बैधनाथ, भीमाशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वेश्वर, त्र्यम्केश्वर, केदारेश्वर, धुस्मेश्वर) के स्वरूप का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने वालों से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है और सभी प्रकार की शारीरिक और मानसिक पीड़ा मिट जाता है।
त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष
त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष साक्षात विश्वेश्वर का स्वरूप माना गया है। यह रुद्राक्ष, सभी के अर्थ और सिद्धियों की पूर्ति करता है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति की सभी इच्छाएँ स्वतः ही पूर्ण हो जाती है। यह परम प्रतापी तथा तेजस्वी रुद्राक्ष माना गया है। इसका स्पर्श एवं दर्शन मात्र से ही करोड़ों महापातक नष्ट हो जाते है।
चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष
चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष साक्षात भुवनेश्वर का प्रतीक स्वरूप माना गया है। पुराणों में इसके विषय में कहा गया है कि चौदह विद्या, चौदह लोक, चौदह मनु, चौदह इन्द्र का साक्षात स्वरूप है। इसे ब्रह्म बुद्धि अर्थात वेदांतिक, दार्शनिक, विद्या युक्त विचारधारा प्रदान करने में समर्थ माना गया है। तांत्रिक धारण के अनुसार इसमें हनुमान जी की शक्ति निहित रहती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार स्वयं भगवान शंकर इसे धारण करते थे। इसे धारण करने वाले को शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक सभी प्रकार के कष्टों का निवारण हो जाता है।
गौरीशंकर रुद्राक्ष
प्राकृतिक रूप से परस्पर दो जुड़े हुए रुद्राक्ष को गौरीशंकर रुद्राक्ष कहा जाता है। गौरीशंकर रुद्राक्ष को उभयात्मक शिव और शक्ति का स्वरूप माना गया है। यह कुंडलिनी जागरण में सहायक होती है। जो व्यक्ति एकमुखी रुद्राक्ष प्राप्त करने में असमर्थ होते है उनके लिए गौरीशंकर रुद्राक्ष अति उत्तम होता है। साधक को गौरीशंकर रुद्राक्ष को धारण जरूर करना चाहिए।
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