09 अगस्त ::सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार की जातीय जनगणना से संबंधित मामलों की सुनवाई अब 14 अगस्त को करेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने 7 अगस्त कोसुनवाई के क्रम में कहा है कि अर्जेंसी क्या है, 80% काम हो गया है तो 90 % हो जाएगा, क्या फर्क पड़ेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने यह बात पटना उच्च न्यायालय के बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को मंजूरी दिए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है।पटना उच्च न्यायालय द्वारा जाति आधारित जनगणना की वैधता को चुनौती देनेवाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। याचिका खारिज होने के बाद बिहार सरकार ने फिर से जातीय जनगणना शुरु कर दिया है।बिहार में जातीय जनगणना 07 जनवरी 2023 को शुरु हुआ था। इस जनगणना को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में21 अप्रैल 2023 याचिका दाखिल किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए 27 अप्रैल 2023 को कहा कि पहले उच्च न्यायालय जाय। पटना उच्च न्यायालय ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए 04 मई 2023 अंतरिम रोक लगा दी।पटना उच्च न्यायालय में मामले की जल्द सुनवाई के लिए अनुरोध करने पर पटना उच्च न्यायालय ने 09 मई 2023 जल्द सुनवाई के अनुरोध को खारिज कर दिया। राज्य सरकार ने 11 मई 2023 को सर्वोच्च न्यायालय गई। 18 मई 2023 को फिर सर्वोच्च न्यायालय ने पहले उच्च न्यायालय जाने को कहा। पटना उच्च न्यायालय ने 03 जुलाई 2023 से सुनवाई शुरु की और 07 जुलाई 2023 को सभी बिन्दुओं पर सुनवाई पूरी की और फैसला सुरक्षित रखा। 01 अगस्त को पटना उच्च न्यायालय ने सभी याचिका को खारिज कर दिया और इस प्रकार बिहार सरकार जातीय जनगणना को पूरा करने की कारवाई शुरू की।बिहार सरकार का मानना है कि जाति आधारित सर्वे से प्रामाणिक, विश्वसनीय और वैज्ञानिक आंकड़े प्राप्त होंगे। इससे अतिपिछड़े, पिछड़े और सभी वर्गों के गरीबों को लाभ मिलेगा। सरकार को भी सरकारी योजना बनाने में यह मददगार साबित होगा।पटना उच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकार योजनाएं तैयार करने के लिए सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति को ध्यान में रखकर करा सकती है।बिहार सरकार ने जातिगत पहचान पर आधारित राज्य के मूल निवासियों के व्यक्तिगत समूह जो पिछड़े है उनकी गणना विवरण एकत्र करने के लिए एक सर्वेक्षण शुरू करने का निर्णय लिया था। इसे विधान सभा और विधान परिषद से अनुमति मिली थी और राज्यपाल के भाषण में भी इसका उल्लेख किया गया था। उसके बाद राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे बिहार गजट में प्रकाशित भी किया था।बिहार सरकार के मुख्य सचिव ने जातीय गणना कार्य को अंतिम रूप देने का आदेश दिया है। बिहार सरकार ने लगभग 80 प्रतिशत जातीय जनगणना पूरा कर लिया था और शेष बचे काम को पुनः शुरू कर दिया है।देखा जाय तो बिहार सरकार के बाद देश के अन्य राज्यों में भी जातीय जनगणना कराने की मांग उठेगी और वहां की सरकारों के लिए बाध्यकारी स्थिति पैदा हो जायेगी।ध्यातव्य है कि बिहार में जाति आधारित जनगणना (जातिगत सर्वेक्षण) कराने का फैसला जून, 2022 में लिया गया था। राज्य सरकार ने पहले राज्य में मकान सर्वे की प्रक्रिया की शुरुआत 7 जनवरी से शुरु की थी। इस सर्वे में सबसे पहले मकानों की गिनती। सभी मकानों को एक यूनिट नंबर देना। एक मकान में यदि दो परिवार रहते हैं तो उनका अलग-अलग नंबर देना। एक अपार्टमेंट के सभी फ्लैट का अलग-अलग नंबर देना। जाति गणना फार्म पर परिवार के मुखिया का हस्ताक्षर अनिवार्य रूप से लेना। राज्य के बाहर नौकरी करने गए परिवार के सदस्यों की भी जानकारी लेना। जाति गणना में उपजाति की गिनती नहीं करना। परिवारों की आर्थिक स्थिति की भी जानकारी लेना। प्रखंड में उपलब्ध सुविधाओं की भी जानकारी लेना जैसे – रेललाइन, तालाब, विद्यालय, डिस्पेंसरी आदि। जनगणना कार्य में लगाए गए कर्मियों को आई कार्ड लगाना, जिस पर बिहार जाति आधारित जनगणना –2022 लिखा होना, निर्धारित कर काम शुरू किया था। लेकिन बिहार में किए जा रहे जातिगत सर्वे को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एकजनहित याचिका दायर की गई थी जिस पर 20 जनवरी को सुनवाई हुई थी। इस जनहित याचिका में बिहार में किए जा रहे जातिगत सर्वेक्षण को रद्द करने की मांग की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार में चल रहे जातिगत सर्वे को चुनौती देने वाली किसी भी याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा है कि याचिकाकर्ता को पटना उच्च न्यायालय में अपनी अपील दाखिल करनी चाहिए। याचिकाकर्ता ने पटना उच्य न्यायालय में याचिका दायर की थी जिस पर पटना उच्च न्यायालय से तत्काल प्रभाव से जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।न्यायालय का फैसला तो सर्वोपरी होता है, इस पर किसी तरह का प्रश्न नही उठाया जा सकता है और न ही मैं कोई प्रश्न उठा रहा हूं। लेकिन यह सच है कि इस जाति आधारित जनगणना में कई तरह की व्यवहारिक, तकनीकी और योजना निष्पादन में कठिनाई है। इस संदर्भ में विश्वेशरैया भवन (सचिवालय) के ठीक पीछे रहने वाले मुकेश कुमार सिन्हा का कहना है कि उनके मकान को जाति आधारित जनगणना के लिए चिन्हित नहीं किया गया है, वहीं अनिसावाद के सुंदरी इंकलेब में रहने वालों का कहना है कि उनके किसी भी फ्लैट को चिन्हित नहीं किया गया है। आशियाना-दीघा रोड के कई अपार्टमेंट के लोगों का कहना है कि हमारे यहां भी फ्लैट को चिन्हित नहीं किया गया है। यह तो एक अलग समस्या है। उसी तरह इसके अतरिक्त जातीय कोड निर्धारण में भी हो रहे विवाद को दुरुस्त नहीं किया गया है। जैसे लोहार जाति, निषाद जाति, कायस्थ जाति…. शामिल हैं। हालांकि सरकार खामियों को सुधार लेने का आश्वासन देती रही है, किन्तु सुधार के बजाय उलझन बढती गयी और विवाद गहराता गया। इसमें कोई संदेह नही कि सरकर अगर तत्परता से सुधार के साथ सम्पूर्ण गणना प्रक्रिया को मूर्तरूप दे पाती तो आने वाले समय में यह एक उपयोगी दस्तावेज सिद्ध हो सकती है।सरकार ने जाति आधारित जनगणना सर्वेक्षण को दो चरणों में पूरा करने का लक्ष्य रखा था। पहला चरण 7 जनवरी, 2023 से शुरू हुआ जिसमें आवासीय मकानों पर नंबर डाले गए। यह काम 15 दिन चला। सर्वेक्षण के दूसरे चरण की शुरूआत 15 अप्रैल से शुरू गया है। इस चरण में जिनके घरों को पहली चरण में चिन्हित किया गया है उस घरों में रहने वाले लोगों की जाति, उपजाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति आदि की सूचना एकत्र किया जा रहा था। इस सर्वेक्षण को पूरा करने का लक्ष्य 31 मई, 2023 तक रखा गया था। इस सर्वेक्षण में जाति की गिनती समेत 26 प्रकार की जानकारियां लोगों से ली जा रही थी।बिहार सरकार ने जातीय गणना के लिए जाति क्रमांक (कोड) बनाया है। पहली जाति गणना के लिए 216 कोड तैयार किया था, जिसपर विवाद होने पर उसे संशोधित कर 215 किया है, जिस पर जाति आधारित जनगणना (सर्वेक्षण) चल रहा था। इस सर्वेक्षण में 22 जनवरी 2023 से लेकर दूसरे चरण की समाप्ति तक जन्म लिए नवजात बच्चों की गणना नहीं करने का प्रावधान किया गया है।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 15 अप्रैल 2023 को बख्तियारपुर स्थित अपने पैतृक घर से जाति आधारित सर्वेक्षण के दूसरे चरण का शुभारंभ किया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया था कि डाटा का यह काम पूरा होने के बाद, जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट, बिहार विधानसभा और बिहार विधान परिषद के पटल पर रखी जाएगी। उसके बाद रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी। जाति आधारित जनगणना का कार्य लक्ष्य से पहले 10 मई तक पूरा होने की संभावना थी। जनगणना पूरा होने के बाद पाँच दिन तक छूटे हुए परिवार या उसमें त्रुटि सुधार का कम किया जाना था।दूसरे चरण में जिन अनिवार्य 17 प्रश्नों को पूछा जा रहा था उसमें, परिवार के सदस्य का पूरा नाम, पिता/पति का नाम, परिवार के प्रधान से संबंध, आयु (वर्ष में), लिंग, वैवाहिक स्थिति, धर्म, जाति का नाम, शैक्षणिक योग्यता (प्री-प्राइमरी से पोस्ट मास्टर डिग्री), कार्यकलाप [संगठित या असंगठित क्षेत्र में सरकारी से लेकर निजी नौकरी, स्वरोजगार, किसान (कृषि भूमि के मालिक), कृषि मजदूर, निर्माण मजदूर, अन्य मजदूर, कुशल मजदूर, भिखारी, चीर-फाड़ करने वाले, छात्र, गृहिणी से लेकर जिनके पास कोई नहीं है काम], आवासीय स्थिति (पक्का/फूस का घर, झोपड़ी या बेघर), अस्थायी प्रवासीय स्थिति (कार्य या अध्ययन का स्थान, चाहे राज्य के भीतर या बाहर, देश या विदेश में), कंप्यूटर / लैपटॉप (इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ या उसके बिना), मोटरयान (दोपहिया, तिपहिया, चौपहिया, छह पहिया या अधिक, ट्रैक्टर), कृषि भूमि (0-50 डिसमिल से 5 एकड़ और उससे अधिक का क्षेत्र), आवासीय भूमि (5 डिसमिल से 20 डिसमिल और उससे अधिक भूमि का क्षेत्रफल; एक बहुमंजिला अपार्टमेंट में फ्लैट का मालिक), सभी श्रोतों से मासिक आय (न्यूनतम 0- ₹ 6,000 से लेकर अधिकतम ₹ 50,000 और अधिक) शामिल था।सरकार ने एप में ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की थी कि अगर कोई व्यक्ति दो बार नाम लिखाने का प्रयास करेगा तो एप ऐसे लोगों को चिन्हित कर लेगा।
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