जितेन्द्र कुमार सिन्हा,मुख्य संपादक पटना, 11 अगस्त ::बिहार में सरकारी शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा कई दशकों से यथावत बनी हुई है। लोग इस इंतजार में शुरू से ही हैं कि अब इसकी स्तिथि सुधरेगी। लेकिन कई पीढ़ियां गुजर गयी और दुर्भाग्य है कि आज भी इसकी स्तिथि नहीं सुधरी है बल्कि कहा जाय तो बदतर ही हुई है। समाचारों में अक्सर देखा जाता है कि सरकार शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में पहल कर रही है परंतु आज भी निकट भविष्य में कुछ बेहतर होने की संभावना नहीं है। उदाहरण के रूप में देखा जाय तो नई शिक्षा नीति के तहत बिहार के विश्वविद्यालयों में चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम की शुरुआत की जा रही है, जबकि यह नीति केन्द्र सरकार की है। बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री कहते हैं कि अब बिहार के विद्यार्थियों का स्नातक 6-7 वर्षो में पूरा होगा। अभी तक 3 वर्षीय स्नातक करने में 4-5 साल लग जाता है। इसलिये 4 वर्षीय की जरूरत ही नहीं थी। अब सोंचिये कि जहां राज्य के शिक्षा मंत्री की सोच राज्य के शिक्षा सिस्टम को ठीक करने के बजाय, नये नीति का विरोध करना हो, तो इससे शिक्षा व्यवस्था की स्थिति भला कैसे सुधरेगी?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार वर्ष 2005 में जब बने थे तो लोगों में एक उम्मीद
जगी थी कि बिहार के मुख्यमंत्री एक इंजीनियर हैं तो अब शिक्षा में सुधार होगा। लेकिन जब 2006 में शिक्षक की हुई बहाली ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। क्योंकि इस समय योग्यता पर नहीं बल्कि सर्टिफिकेट पर बहाली हुई और “सर्टिफिकेट लाओ शिक्षक बनो” के तर्ज पर शिक्षकों का चयन हुआ था। ऐसी व्यवस्था में लाखों की संख्या में बहाली तो हुई, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि शिक्षकों की योग्यता पर ही सवाल उठने लगा था। उसके बावजूद भी नियुक्तियों का दौर चलता रहा। संविदा पर शिक्षकों की नियुक्ति होती रही, शिक्षक स्कूलों में योगदान देते रहे, अब संविदा को नियमित करने, वेतनमान देने, सरकारी कर्मियों की तरह नियमित करने, जैसे कई मुद्दों पर आज सरकार और शिक्षकों के बीच संघर्ष चल रहा है।
शिक्षा व्यवस्था में पढ़ाई और संविदा पर नियुक्ति का हाल जो भी हो, लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि बिहार में राजद की सरकार में जो हाल स्कूलों की थी उससे बेहतर जदयू और जदयू भाजपा की सरकार ने बिहार में स्कूल भवनों और उसके ढांचागत विकास पर खूब काम किया है। आज स्कूल भवन, स्कूल में शौचालय, स्कूल में किचन शेड, स्कूल की लड़कियों के लिए साइकिल, पोशाक जैसी योजनाओं से बिहार की बच्चियों का बड़ी संख्या का स्कूल आना शुरू हुआ है। इससे महिलाओं की साक्षरता दर में बढ़ोतरी हुई है।
बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने के लिए उच्चस्तरीय कमिटी बनाने जा रही है, इससे बिहार के लगभग चार लाख नियोजित शिक्षकों को लाभ मिलेगा।
इस उच्चस्तरीय कमिटी में शिक्षा विभाग, पंचायती राज विभाग, वित्त विभाग और सामान्य प्रशासन विभाग के बड़े अधिकारियों को रखा जाएगा। कमिटी इस बात पर विचार करेगी कि शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने के लिए कौन-कौन सी प्रक्रिया अपनाई जाएगी। कमिटी यह भी देखेगी कि इसमें कोई कानूनी अड़चन तो नहीं आ रही है। अभी अनुमान यह लगाया जा रहा है कि इस कमिटी की अध्यक्षता मुख्य सचिव करेंगे।
राज्य सरकार को नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने में दिक्कत हो रही है क्योंकि नियोजित शिक्षकों को अलग-अलग नियोजन इकाइयों के माध्यम से, नियोजित किए गए हैं और नियोजित नियम के अनुसार जिन इकाइयों से वे आए हैं वही नियोजन इकाइयां उनके बारे में निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार है। इसलिए राज्यकर्मी का दर्जा देने को लेकर राज्य सरकार को कानूनी परामर्श लेनी होगी और साथ ही, राज्य मंत्रिमंडल की अनुमति भी जरूरी होगी।
शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षकों की बहाली हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। वर्तमान समय में पूरे बिहार में नियोजित शिक्षक आंदोलन कर रह हैं। शिक्षक अभ्यार्थियों के जुलूस को नियंत्रित करने में पुलिस को लाठियां चलानी पड़ी थी और लाठी चार्य में दर्जनों लोग घायल हुए थे। यह आंदोलन बिहार सरकार द्वारा लिया गया शिक्षक बहाली पर लिए गए निर्णय के विरुद्ध था। सरकार के निर्णय के आलोक में 15-17 साल पूर्व बहाल हुए शिक्षक फिर से अपने ही पद पर बहाल होने के लिए बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में भाग लेना होगा और यह पहली बार होगा जब आवेदन भी डम्मी भरना होगा। जबकि इस परीक्षा मे भाग लेने वाले शिक्षक पूर्व से ही पात्रता और दक्षता परीक्षा उत्तीर्ण है। इतना ही नहीं वैसे बेरोजगार अभ्यर्थी भी इस प्रक्रिया में शामिल होंगे जो रिक्त पद के अनुपात में अपनी पात्रता रखते है और परीक्षा पास कर शिक्षक बन सकते है।
इस प्रक्रिया में शिक्षक बनने के लिए बीएड के साथ पात्रता परीक्षा उत्तीर्णता ही मानक है। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि सरकार द्वारा अलग से विशेष परीक्षा लेने का उद्देश्य क्या है?
जब सरकार ने शिक्षक बनने के लिए जो मानक तय किया था उसी आधार पर ही शिक्षक बहाल हुए थे।
यह विचारणीय विषय है कि राज्य के शिक्षा मंत्री की सोच राज्य के शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने के बजाय नये नीति का विरोध करना हो, तो उस राज्य के शिक्षा व्यवस्था का भला क्या होगा? राज्य के शिक्षा मंत्री का यह कहना हास्यास्पद लगता है कि अंग्रेजी, गणित, फिजिक्स में योग्य शिक्षक नहीं मिलने के कारण बिहार के बाहर के अभ्यर्थियों को बुलाया जा रहा है, इसलिए बिहार लोक सेवा आयोग की आयोजित शिक्षक परीक्षा प्रक्रिया में डोमिसाइल को हटा कर बिहार के बाहर के अभ्यर्थी भी इस परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। जबकि 15 जून को शिक्षक भर्ती विज्ञापन निकाली गई थी तो उसमें बिहार डोमिसाइल की शर्त अनिवार्य रखी गई थी। अब प्रश्न यह उठता है कि नियोजित शिक्षक अयोग्य है तो उन्हे किसने बहाल किया और क्यों किया ? 15-17 साल पूर्व से बहाल शिक्षक अयोग्य है तो इतने वर्ष तक बिहार के बच्चों को उनसे क्यों पढ़वाया गया?
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