पटना, १३ अगस्त। विदुषी कवयित्री श्रीमती मधु रानी लाल ने अपनी अनवरत जारी शब्द-साधना से ‘दोहा-छंद’ पर सिद्धि प्राप्त करने में सफल हुईं हैं। उन्होंने अपने बहु-प्रतीक्षित दोहा-संकलन ‘अंतस की आवाज़’ के माध्यम से यह विनम्र पुष्टि भी की है कि, यदि गृहिणियाँ भी चाहें तो एक समर्थ कवयित्री या लेखिका के रुप में साहित्य-जगत में अपना मूल्यवान स्थान बना सकती हैं। आवश्यक इतना भर है कि आपके हृदय में काव्य के बीज तत्त्व हों और कोई रस-गंगा प्रवाहित हो रही हो। किंचित श्रम और मार्गदर्शन,उस पीयूष-वाहिनी रस-गंगा के गात्र को पुण्य-सलीला भगवती गंगा के विशाल गात्र की भाँति महान बना दे सकता है।यह बातें, रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में पं हंस कुमार तिवारी की जयंती पर आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि मधुजी को काव्य का संस्कार, कुछ वर्ष पूर्व ही, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सारस्वत उत्सवों के माध्यम से प्राप्त हुआ है। सम्मेलन के कवि-सम्मेलनों, कवयित्री-सम्मेलनों तथा प्रशिक्षण-शालाओं ने इनके अंतस में प्रच्छन्न काव्य-प्रतिभा को परिष्कार देकर मनोहारी रूप में प्रस्फुटित किया है। मधु जी, अपनी गहन रुचि, शब्द-साधना और अकुँठ भाव-सामर्थ्य से, वाणी की अधिष्ठात्री भगवती सरस्वती का अक्षय आशीर्वाद प्राप्त करने में सफल हुई हैं। आप अपने नाम को सार्थक करती हुईं, अपनी कृति-वाटिका में माधुर्य का अमृत-कलश उड़ेल रही हैं। उन्होंने स्त्री-मन के विविध भावों की अभिव्यक्ति के साथ प्रकृति, प्रेम और ऋंगार को भी मधुर शब्द दिए हैं। एक निपुण कवयित्री की भाँति इनके छ्न्दों में समाज की पीड़ा भी है,क्षोभ,रोष, उलाहना भी है और प्रतिकार भी।प्रणम्य कवि पं हंस कुमार तिवारी को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि तिवारी जी उत्तर छायावाद काल के गीत-चेतना के अग्रणी कवियों में एक थे। उन्होंने बंगला साहित्य के अनुवाद के साथ ही कई अनेक मौलिक साहित्य का सृजन कर हिन्दी साहित्य में एक बड़ा अवदान दिया। दुर्भाग्य से साहित्य के इतिहास में उन्हें वह स्थान नहीं मिला,जिसके वे सर्वथा योग्य पात्र थे। उन्होंने गद्य और पद्य में समान अधिकार से लिखा। उनकी भाषा सरल किंतु आकर्षक थी। वे एक सुकुमार कवि, सुयोग्य संपादक, सफल नाटक-कार और अनुवाद-साहित्य के सिद्ध साहित्य मनीषी थे। बंगला साहित्य को हिन्दी-भाषियों के बीच लोकप्रिय बनाने में उनका अद्भुत योगदान रहा। उन्होंने विश्वकवि रवींद्र नाथ ठाकुर, शरतचंद्र, विमल मित्र, शंकर समेत अनेक बंगला-साहित्यकारों की लोकप्रिय रचनाओं का हिन्दी अनुवाद किया।समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एवं उपभोक्ता-संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि ‘दोहा’ एक बहुत सरस छंद है। इसमें हृदय को स्पर्श कारने की अद्भुत क्षमता है। मधु रानी लाल की यह पुस्तक दोहा साहित्य में अपना विशेष स्थान बनाएगी, ऐसा विश्व किया जाना चाहिए।सुप्रसिद्ध साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि जो प्रभाव कथा-साहित्य में लघुकथा का है, वही प्रभाव काव्य में ‘दोहा’ छंद का है। यह ग़ज़ल से भी अधिक प्रभावी है। कवयित्री मधुरानी लाल एक संवेदनशील कवयित्री हैं, जो अपने दोहों से न केवल अपने मन की अभिव्यक्ति करती हैं, बल्कि अपनी सरस शब्द-योजना के साथ उपदेश भी देती चलती हैं।गीत के चर्चित कवि आचार्य विजय गुंजन, केंद्रीय सुरक्षा बल, राँची में उप महानिरीक्षक धर्मेंद्र नारायण लाल, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा विजय प्रकाश, जय प्रकाश पुजारी, डा पुष्पा जमुआर, शुभ चंद्र सिन्हा, डौली बगड़िया, डा शालिनी पाण्डेय, डा रेखा भारती, सागरिका राय, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, अभिलाषा कुमारी, डा सुषमा कुमारी, आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का सुमधुर पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानंद पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।