शिप्रा की रिपोर्ट : भाजपा को देश की सबसे बड़ी परिवारवादी पार्टी बताते हुए के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता राजीव रंजन ने आज कहा है कि दूसरों पर परिवारवाद के आरोप लगाने वाले भाजपा के नेताओं को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. उन्हें पता चल जाएगा कि परिवार के जितने दाग उनके दामन पर लगे हैं उतनी किसी पार्टी पर नहीं हैं. हकीकत में भाजपा खुद परिवारवाद की सबसे बड़ी पोषक है.इस मसले पर जदयू महासचिव ने भाजपा से कई सवाल पूछे,उन्होंने पूछा कि
- क्या भाजपा की निगाह में अपने नेताओं के पुत्र-पुत्रियों को ऊँचे पदों पर रखना परिवारवाद की श्रेणी में नहीं आता?
- वह बताएं कि एक ख़ास परिवार से ताल्लुक रखने के अलावा इन नेताओं की योग्यता क्या है?
- वह बताएं कि केंद्र व राज्य में मंत्री बने उनके नेताओं के बाल-बच्चों का पार्टी के लिए योगदान सामान्य कार्यकर्ताओं से अधिक कैसे है?
- क्या बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि से आये आम कार्यकर्ताओं की हकमारी नहीं है?
- क्या भाजपा मानती है कि उसके सामान्य कार्यकर्ता सिर्फ झंडा ढ़ोने के लिए हैं और नेताओं के बच्चे राज करने के लिए?
- भाजपा यदि खुद को परिवारवाद का पोषक नहीं मानती है तो वह बताएं कि क्या बिहार मेंइनके प्रदेश अध्यक्ष परिवारवाद से राजनीति में नहीं आये हैं?
- वह बताएं कि क्या यशवंत सिन्हा के पुत्र जयंत सिन्हा, पूर्व मंत्री ठाकुर प्रसाद के पुत्र रविशंकर प्रसाद केंद्र सरकार के मंत्री तक बने. इनके अलावा देश के अन्य हिस्सों में देखें तो वेप्रकाश गोयल के पुत्र पियूष गोयल, प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर, वसुंधरा राजे सिंधिया के पुत्र दुष्यंत सिंह, राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया, राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह, प्रमोद महाजन की पुत्री पूनम महाजन, कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह जैसे नेताओं व नेत्रियों का मंत्रीपद और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर होना भाजपा की परिवारवादी परंपरा का प्रमाण नहीं है?
उन्होंने कहा कि वास्तव में ऐसे 100 नाम हैं जो दर्शाते हैं कि भाजपा से बड़ा परिवारवादी दल कोई और नहीं है. भाजपा चाहे जितने भी बहाने बना ले हकीकत में बिहार से लेकर केंद्र तक ‘ख़ास परिवारों के चिराग’ आज भाजपा की आंख के तारे बने हुए हैं, वहीं सामान्य परिवारों से आने वाले कार्यकर्ता उन ‘खानदानी चिरागों’ की पालकी उठाने से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं. दिखावे के लिए यह कई जगह आम कार्यकर्ताओं को आगे जरुर बढ़ाते हैं, लेकिन पर्दे के पीछे उन्हें बड़े नेताओं और उनके बाल बच्चों का हुक्म मानने के लिए विवश किया जाता है. यह दिखाता है कि भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी नहीं बल्कि कुछ ख़ास राजनीतिक परिवारों की जागीर बन कर रह गयी है.