सियाराम मिश्रा की रिपोर्ट , २२ अगस्त-वाराणसी ब्यूरो । काशी हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस में, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ के सम्मान और उनके द्वारा ‘एक राष्ट्रभाषा की अनिवार्यता’ पर दिए गए व्याख्यान की चतुर्दिक प्रशंसा से बिहार के साहित्य सेवियों में भारी उत्साह है। सोमवार को बी एच यू के सरदार वल्लभ भाई पटेल छात्रावास स्थित वाग्देवी सभागार में ‘महामनामृत व्याख्यान ऋंखला’ के अंतर्गत ‘राष्ट्रभाषा का वर्तमान परिप्रेक्ष्य’ विषय पर डा सुलभ ने मुख्य-वक्ता के रूप में अत्यंत सारगर्भित और ज्ञानोपयोगी व्याख्यान दिए, जिससे बड़ी संख्या में भाषा के विद्यार्थी और शोधार्थीगण लाभान्वित हुए। डा सुलभ ने कहा कि ‘राष्ट्रीयता’, ‘राष्ट्रीय-चेतना’ और ‘देश की एक सूत्रबद्धता’ के लिए देश की ‘एक राष्ट्रभाषा’ का होना अनिवार्य है। ‘हिन्दी’ ने देश को अंगरजों के विरुद्ध एक सूत्र में बांधा था अब उसकी आवश्यकता भारत की अखंडता और ‘विविधता में एकता’ के सूत्र-वाक्य की सिद्धि में है। इसमें देश की राष्ट्रभाषा बनने की श्रेष्ठतम योग्यता है।उन्होंने कहा कि हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने से क्षेत्रीय भाषाओं को कोई हानि नहीं होगी। यह मात्र एक भ्रान्ति है। जैसे हिन्दी के साथ हिन्दीपट्टी की भाषाएँ हमजोली बनकर चलती हैं, वैसे ही हिन्दीतर भाषी क्षेत्रों की भाषाएँ भी चलेंगी और उनकी गरिमा तथा महत्ता कभी कम नहीं होगी। डा सुलभ ने कहा किउन्होंने देश के अनेक हिस्सों का भ्रमण किया है और पाया कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के विरोध की बातें मात्र राजनीतिक हैं।उन्होंने कहा कि स्वतन्त्रता से पूर्व हिन्दी के समर्थन में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य हुए। दुर्भाग्य है कि स्वतन्त्रता के पश्चात् वह सब कुछ नही हो पाया, जिसके लिए हमारे बलिदानी स्वतंत्रता-सेनानियों और साहित्यसेवियों ने सोचा था।उन्होंने कहा कि यदि भारत में हिन्दी को ‘राष्ट्रभाषा’ बना दिया गया होता तो आज हिन्दी, संख्या की दृष्टि से, विश्व की सबसे बड़ी भाषा होती। चीन के ‘मंदारिन’ को यह स्थान केवल इसलिए प्राप्त है कि, वह वहाँ की ‘राष्ट्र-भाषा’ है। इसलिए वह संपूर्ण चीन में बोली और लिखी जाती है। चीन का प्रत्येक नागरिक इसे जानता है। इसलिए ‘मनदारिन’ विश्व की सबसे बड़ी भाषा है।यह भी स्मरणीय है कि चीन में भी इसके अतिरिक्त अनेक अन्य भाषाएं हैं, जिनके स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता। सबसे अधिक संख्या वाला देश होने के कारण, भारत की भाषा हिन्दी को यह स्थान मिला सकता था। दुर्भाग्य तो यह है कि भारत को अपने ही देश में न तो ‘राष्ट्रभाषा’ का स्थान है और न भारत की सरकार की ‘राजभाषा’ (कामकाज की भाषा) का। यह भारतीयों के लिए चिंता और वैश्विक लोक-लज्जा का विषय है।व्याख्यान के पूर्व डा सुलभ का अंग-वस्त्रम और स्मृति-चिन्ह देकर, विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी और कवि डा रमेश कुमार ‘निर्मेष’, विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक और सभा के अध्यक्ष प्रो अशोक कुमार ज्योति तथा विश्वविद्यालय के पत्रकारिता और जैनसंप्रेषण विभाग में प्राध्यापक और छात्रावास के संरक्षक डा धीरेंद्र कुमार राय ने सम्मानित किया।सभा की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के गौरवशाली अतीत की चर्चा करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष के कार्यों की भूरी भूरी प्रशंसा की। उन्होंने महामना मदन मोहन मालवीय द्वारा हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने की प्रतिबद्धता के साथ सन् 1884 में स्थापित हिन्दी उद्धारिणी प्रतिनिधि मध्य सभा, काशी नागरीप्रचारिणी सभा और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग तथा उनके द्वारा सम्पादित पत्रों ‘हिन्दोस्थान’ एवं ‘अभ्युदय’ के माध्यम से किए गए कार्यों को रेखांकित किया। उन्होंने महात्मा गांधी और एनी बेसेंट द्वारा सन् 1918 में स्थापित दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के योगदानों का भी उल्लेख किया। विश्वभर के 200 विश्वविद्यालयों में अध्यापन की भाषा होने और करोड़ों लोगों के द्वारा बोले और व्यवहार में लाए जाने के पश्चात् भी भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी की प्रतिष्ठा नहीं होने पर उन्होंने चिन्ता व्यक्त की।आयोजन के मुख्य अतिथि और बी.एच.यू. के वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी डॉ. रमेश कुमार ‘निर्मेष’ ने अपनी काव्य-पंक्तियों ‘केवल भाषा नहीं है हिन्दी, ये मेरी अभिलाषा है’ के माध्यम से हिन्दी की महत्ता बताई। उन्होंने कहा कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए देश के नीति-निर्माताओं को दृढ़ संकल्पित होकर कार्य करना होगा। सभा का संचालन करते हुए, छात्रावास के प्रशासनिक संरक्षक एवं पत्रकारिता और जनसम्प्रेषण विभाग, बी.एच.यू. के प्राध्यापक डॉ. धीरेन्द्र राय ने कहा कि भाषायी धरातल पर हमारा देश आज भी ठगा हुआ महसूस कर रहा है। प्रोफेशनलिज्म के इस दौर में हिन्दी की भूमिका का पुनर्मूल्यांकन करना एवं इसकी महत्ता को समझना आवश्यक है। धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी के शोधार्थी सुशान्त कुमार पाण्डेय ने किया। इस अवसर पर डाॅ. राजकुमार मीणा सहित विभिन्न विषयों के प्राध्यापक एवं शोधार्थी उपस्थित थे।इसके पूर्व सोमवार की सुबह, काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के अध्यक्ष प्रो नागेंद्र पाण्डेय के सौजन्य से डा सुलभ अपने परिवार सहित भगवान विश्वनाथ की मंगला-आरती में सम्मिलित हुए और बाबा का पूजन अर्चन किया।