शैलेश तिवारी की रिपोर्ट /गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज की 526 वीं जयंती पर आज श्रीसनातन शक्तिपीठ संस्थानम् द्वारा फ्रेंड्स कॉलोनी कार्यालय में कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात भागवत-वक्ता और संस्थान के अध्यक्ष आचार्य डॉ भारतभूषण पाण्डेय ने कहा कि कलिकाल के कुटिल जीवों को अपार संसार सागर से पार करने का नौका श्रीराम चरित मानस तथा द्वादश ग्रंथावली के रूप में प्रकट करनेवाले गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी महाराज अभिनव वाल्मीकि हैं। उन्होंने जीवमात्र के कल्याण और कृतार्थता का मार्ग प्रकट किया और भक्ति सेतु का प्रकाश किया।”कीरति भनिति भूति भलि सोई सुरसरि सम सब कर हित होई” इस वचन के अनुसार सुरसरि गंगा की तरह सर्वहित और सर्वोत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करनेवाली कीर्ति, कविता, विभूति अर्थात् वैभव ही श्रेष्ठ होते हैं। तुलसी साहित्य इस कसौटी पर खरा उतरता है। उनके एक-एक अक्षर परोपकार और परमार्थ में विनियुक्त व प्रयुक्त हैं। आचार्य ने भक्तमाल के रचनाकार नाभा गोस्वामी जी के शिष्य जगन्नाथ स्वामी के दोहा “वाल्मीकि तुलसी भए शुक मुनि भए कबीर।राजा जनक नानक भए उद्धव सूर शरीर।।” की व्याख्या करते हुए कहा कि कलिकाल और मुगल काल में हमारे धर्म तथा संस्कृति के विलोप का खतरा बढ़ गया तब भगवान के साक्षात् अंशों का अवतार हुआ और उन्होंने भक्ति गंगा का प्रवाह कर धर्म, अध्यात्म और संस्कृति को दृढ़ तथा प्राणी मात्र के लिए सुगम कर दिया। समाज को नया उत्साह और उल्लास प्रदान करने तथा समस्त अवसादों-विषादों का शमन करने वाला काव्य है श्रीराम चरित मानस।संपूर्ण वैदिक वाङ्मय तुलसी साहित्य में गुंफित है। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए भोजपुर जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष प्रो बलिराज ठाकुर ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी का अवदान अविस्मरणीय और सार्वदेशिक है।गुलामी के काल में गिरमिटिया मजदूर भारत से श्रीराम चरित मानस तथा हनुमान चालीसा लेकर विदेशों में गये तथा आज उनकी संतानें उन देशों में शासन कर रही हैं और भारतीय संस्कृति का गौरव बढ़ा रही हैं। समाजसेवी शिवदास सिंह ने कहा कि मानस आचार ग्रंथ है जिसका अध्ययन विद्यालय से विश्वविद्यालय स्तर पर अनिवार्य किया जाय। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मधेश्वर नाथ पांडेय ने कहा कि हिन्दी साहित्य में भक्ति काल स्वर्ण काल है जिसका श्रेय गोस्वामी तुलसीदास जी को जाता है। स्वागत भाषण विश्वनाथ दूबे और धन्यवाद ज्ञापन जनार्दन मिश्र ने किया। वक्ताओं में सत्येन्द्र नारायण सिंह, अखिलेश्वर नाथ तिवारी, सियाराम दूबे, सुरेंद्र कुमार मिश्र, उमेश सिंह कुशवाहा आदि प्रमुख थे।