शैलेश तिवारी की रिपोर्ट /श्रावण-पूर्णिमा तथा संस्कृत-दिवस के अवसर पर श्रीसनातन शक्तिपीठ संस्थानम् द्वारा फ्रेंड्स कॉलोनी कार्यालय में संगोष्ठी का आयोजन संपन्न हुआ। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात भागवत-वक्ता आचार्य डॉ भारतभूषण पाण्डेय ने कहा कि चंद्रयान -3 की सफलता ने एक बार पुनः संस्कृत विद्या और वेदों की चमत्कृति की ओर विश्व का ध्यान आकृष्ट किया है। इसरो के प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर संस्कृत भाषा में वर्णित विज्ञान पर प्रकाश डाला गया है।एआई और कंप्यूटर के लिए संस्कृत भाषा और व्याकरण सबसे उपयुक्त है ऐसा न केवल भारतीय बल्कि पश्चिम के वैज्ञानिकों ने भी कहा है किंतु अपने देश के शासक वर्ग में संस्कृत और संस्कृति के प्रति घोर अनास्था और उपेक्षा का भाव दिखाई देता है। आचार्य ने कहा कि संस्कृत भाषा में ही विश्व को पहला ज्ञान-विज्ञान ऋग्वेद के रूप में मिला। अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र संस्कृत ने ही विश्व को सर्वप्रथम प्रदान किया है। इस विद्या की रक्षा और विस्तार तपस्या से ही संभव है। इसके लिए समाज को आगे आना चाहिए और औपचारिक-अनौपचारिक केन्द्रों का संचालन कर इसे जनसुलभ बनाना चाहिए। सीनेटर प्रो बलिराज ठाकुर ने कहा कि संस्कृत और संस्कृति ही भारत की पहचान हैं। उन्होंने कहा कि यह लोकप्रिय भाषा है जिसे राजा भोज के चरवाहे और मंडन मिश्र के तोता-मैना तक बोलते थे। गुलामी के कारण हमारे गुरुकुल नष्ट हो गए और आज हम अपनी भाषा और संस्कृति से विमुख हो गये हैं। आचार्य मोहन चंद्र अवस्थी ने कहा कि वर्ष भर की संपूर्ण भूलों का प्रायश्चित्त करना, ऋषि पूजन तथा यज्ञोपवीत को संस्कृत करना श्रावणी उपाकर्म का मुख्य कार्य है।पं राघवेन्द्र पांडेय ने सभी वेदशाखाओं के अनुसार उपाकर्म की विधि बताई। वक्ताओं में के एन वासुदेवाचार्य,प्रो रामानंद झा,देश कुमार कौशिक, जगदीश शास्त्री, अनिल शर्मा, आचार्य ऋषिकांत ओझा, डॉ सत्यनारायण उपाध्याय, शिवदास सिंह, हरेकृष्ण पाठक आदि प्रमुख लोगों ने संस्कृत भाषा की महिमा का वर्णन किया और श्रावणी उपाकर्म की विधि पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी का संचालन मधेश्वर नाथ पांडेय और धन्यवाद ज्ञापन सत्येन्द्र नारायण सिंह ने किया।