पटना, ४ सितम्बर । भागलपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रतिकुलपति और बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष स्मृति-शेष साहित्यकार डा विष्णु किशोर झा ‘बेचन’ आलोचना-साहित्य के प्रतिमान-पुरुष थे। उन्होंने साहित्यालोचन को निरसता से निकालकर सरसता प्रदान की। उनकी आलोचनात्मक टिप्पणी में भी किसी कथा-कहानी और काव्य का लालित्य पाया जाता है। वे एक बड़े कवि, कथाकार और नाटक कार थे।यह बातें, सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आहूत हिन्दी पखवारा-सह-पुस्तक चौदस मेला’ के चौथे दिन आयोजित डा बेचन जयंती की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि डा बेचन बहु-आयामी सारस्वत गुणों से युक्त एक आकर्षक व्यक्तित्व के साधु-पुरुष थे। साहित्य सम्मेलन से उनका गहरा लगाव था। अनेक वर्षों तक वे भागलपुर ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष और १९९६ से २००१ तक बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भी अध्यक्ष रहे।समारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सी पी ठाकुर ने कहा कि बेचन जी जैसे साहित्यकारों ने हिन्दी में बिहार का नाम गौरवान्वित किया। इस अवसर पर डा ठाकुर ने, साहित्यकार ब्रज किशोर प्रसाद द्वारा संपादित पुस्तक ‘डा बेचन समग्र (खंड-१)’ का लोकार्पण किया।समारोह के मुख्य अतिथि और विश्वविद्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष डा राजवर्द्धन आज़ाद ने कहा कि डा बेचन के समग्र साहित्य के प्रकाशन का कार्य आरंभ कर, उनके यशस्वी पुत्र डा मनोज कुमार झा ने, जो बिहार लोक सेवा आयोग में सांयुक्त सचिव भी हैं, सच्चे अर्थों में अपने पिता के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की है। अपने बड़ों की स्मृतियों को संयोजन करना बड़ी बात है।बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य इम्तियाज़ अहमद करीमी ने कहा कि बेचन जी ने अपनी कृतियों के ज़रिए, हिन्दी के ख़ज़ाने को भरा है। साहित्य-जगत उनका सदैव आभारी रहेगा। आयोग के सदस्य डा अरुण भगत ने कहा कि डा बेचन के साहित्य का प्रचूर प्रचार किया जाना चाहिए। उन पर शोध किया जाना चाहिए। वे साहित्यिक-चेतना के समालोचक थे।बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य यशस्पति मिश्र, प्रो रतनेश्वर मिश्र, प्रो कलानाथ झा, डा बेचन के पुत्र डा मनोज कुमार झा, प्रो रमा शंकर मिश्र तथा पुस्तक के संपादक ब्रज किशोर पाठक ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में, डा पूनम आनन्द ने ‘बंदर-बाँट’ शीर्षक से, डा पुष्पा जमुआर ने ‘फ़ैसला’, डा विद्या चौधरी ने ‘लाट साहब’, ई अशोक कुमार ने ‘पत्नी का ग़ुस्सा’, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने ‘अनुचित नसीहत’, विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘अमर धन’, डा पूनम देवा ने ‘क़ीमत या क़ीमती’, प्रेमलता सिंह ने ‘इच्छा के विरुद्ध’, कमल किशोर ‘कमल’ ने ‘पटुआ’, अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘साहित्य समर्थक’ तथा जय प्रकाश पुजारी ने ‘सुहानी रात’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन किया कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने।इस अवसर पर, डा बेचन की विधवा केसर झा, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, कुमार कृष्णन, प्रो सुशील कुमार झा, डा शैलेंद्र कुमार चौधरी, विवेकानंद ठाकुर, प्रो गणेश प्रसाद, चंदा मिश्र, मृणाल कांत पाठक, उमेंद्र प्रसाद सिंह, मीरा श्रीवास्तव, राजेश शुक्ला, डा प्रेम प्रकाश, कमल किशोर वर्मा, सदानंद प्रसाद, प्रो केषकर ठाकुर, उत्तरा सिंह, नूतन झा, मीरा ठाकुर तथा डा अशोक कुमार समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।