पटना, ६ सितम्बर। ‘शिक्षक’ होना, संसार में और कुछ भी होने से बहुत बड़ा है। जो सम्मान एक योग्य शिक्षक को प्राप्त होता है, वह किसी भी और को नहीं। एक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी पैर छूकर उनके परिजन अथवा वे ही प्रणाम करते हैं, जो उनसे किसी प्रकार की लाभ की आशा रखते हैं। किंतु एक शिक्षक को किसी देश का राष्ट्रपति भी पैर छूकर प्रणाम करता है और प्रधानमंत्री भी। इसलिए प्रत्येक शिक्षक को अपने गुरुत्तर दायित्व और उसकी महिमा को समझना चाहिए।यह बातें ‘शिक्षक-दिवस’ के अवसर पर मंगलवार की संध्या इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च, बेउर में आयोजित समारोह का उद्घाटन करते हुए, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि आज के शिक्षक अपने महान कर्तव्यों को भूल रहे हैं,जिसके कारण वे उस श्रद्धापूर्ण सम्मान से वंचित हो रहे हैं, जो पूर्व के शिक्षाकों को मिलता रहा है। विद्यार्थियों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वे अपने शिक्षाकों के प्रति श्रद्धा-भाव रखेंगे तो उन्हें अवश्य ही, शिक्षकों के माध्यम से परमात्मा की कृपा प्राप्त होती रहेगी। इस अवसर पर संस्थान के सहस्राब्दी-सभागार में डा सुलभ ने विद्यार्थीयों के आग्रह पर ‘केक’ काटकर उत्सव का उद्घाटन किया तथा भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान दार्शनिक सर्वपल्ली डा राधा कृष्णन, जिनकी जयंती को भारत वर्ष में ‘शिक्षक-दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, के चित्र पर माल्यार्पण कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि डा राधा कृष्णन स्वयं को एक शिक्षक ही मानते थे और उन्हें राष्ट्रपति या पूर्व राष्ट्रपति कहलाने से अधिक ,शिक्षक कहलाना अच्छा लगता था। डा सुलभ ने कहा कि आज भी भारत वर्ष में जो सम्मान एक शिक्षक का है,वह किसी और का नहीं।निदेशक मंडल की सदस्य किरण झा, फ़िज़ियोथेरापी विभाग की अध्यक्ष डा संजीता रंजना, प्रो संजीत कुमार, डा नवनीत झा, प्रो संतोष कुमार सिंह, प्रो जया कुमारी, प्रो प्रिया कुमारी, प्रो मधुमाला कुमारी, प्रो आदित्य ओझा, प्रो चंद्रा आभा, प्रो देवराज कुमार आदि शिक्षकों को विद्यार्थियों ने पुष्पहार एवं उपहार देकर सम्मानित किया।इस अवसर पर संस्थान के प्रशासी अधिकारी सूबेदार संजय कुमार, अभिषेक कुमार झा, प्रिया चंद्रा, आदित्य सिंह, प्रेम कुमार, निखिल सिंह,राजा प्रधान, फ़रहान आदि काफ़ी विद्यार्थी सक्रिए रहे।