पटना, १४ सितम्बर। हिन्दी भारत की सबसे लोकप्रिय भाषा है। वह दिन दूर नहीं जब यह अपनी वैज्ञानिकता और सरसता के कारण हर जिह्वा पर छा जाएगी। पूरी दुनिया में इसकी गूंज होगी, जिस पर प्रत्येक भारत-वासी को गौरव होगा। शीघ्र ही यह देश की ‘राष्ट्र-भाषा’ भी बनेगी, क्योंकि यह सबके दिल में उतर जाएगी, ख़ुशबू बनकर महकेगी और धड़कन-धड़कन बन जाएगी।यह बातें गुरुवार को हिन्दी साहित्य सम्मेलन में ‘हिन्दी-दिवस’ के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि वर्ष २०२५ से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ‘हिन्दी दिवस’ पर उत्सव मनाना छोड़ देगा, क्योंकि जिस लिए यह दिवस मनाया जाता है, संविधान-सभा के उस निर्णय का तो अनुपालन आज तक हुआ ही नहीं। अगले १४ सितम्बर को भारत की सरकार औपचारिक रूप से हिन्दी को देश की ‘राष्ट्र-भाषा’ घोषित कर दे, तभी आगे से इस उत्साव का कोई महत्त्व है, अन्यथा यह तो भारत के लोगों का उपहास ही माना जाएगा।इसके पूर्व समारोह का उद्घाटन करते हुए, बिहार विधान परिषद के सभापति देवेशचंद्र ठाकुर ने कहा कि यह आश्चर्य और चिंता का विषय है कि अभी तक हिन्दी को वह स्थान नहीं मिल सका है, जो इसे संविधान-सभा ने देना चाहा था। यह शुद्ध वैज्ञानिक भाषा है, संस्कृत पर आधारित है। श्री ठाकुर ने इस अवसर पर, वरिष्ठ साहित्यकार एम के मधु की पुस्तक ‘रानी रूपमती की चाय दुकान’ का लोकार्पण भी किया।समारोह के मुख्य अतिथि और उपभोक्ता संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि हिन्दी दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि जब तक हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा नही बनायी जाती हमें संघर्ष जारी रखना होगा। हिन्दी भाषा का भविष्य उज्ज्वल है, क्योंकि यह बाज़ार की भाषा बन चुकी है।दूर दर्शन के कार्यक्रम प्रमुख डा राज कुमार नाहर, सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, आकाशवाणी के समाचार एकांश के उप निदेशक अजय कुमार, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर हिन्दी भाषा के उन्नायन में मूल्यवान योगदान देने वाले १४ हिन्दी-सेवियों, डा प्रतिभा रानी, दिवेश प्रसाद पाठक, चंद्र शेखर प्रसाद साहू, सुजाता मिश्र, मीरा श्रीवास्तव, डा राज कुमार नाहर, अजय कुमार, लवकुश प्रसाद सिंह, पूनम देवा, विनीता शर्मा, चन्दन द्विवेदी,शंकर कैमूरी, प्रो समरेंद्र नारायण तथा शंभुनाथ पाण्डेय को ‘साहित्य सम्मेलन ‘हिन्दी-सेवी सम्मान’ से अलंकृत किया गया।आरंभ में डा शालिनी पाण्डेय के नेतृत्व में स्वागत समिति की महिला सदस्यों ने सभी आगत अतिथियों का रोड़ी-तिलक, अंग-वस्त्रम और आरती कर अभिनन्दन किया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा मधु वर्मा ने किया। मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने किया।इस अवसर पर, वरिष्ठ साहित्यकार डा बच्चा ठाकुर, डा पुष्पा जमुआर, विभा रानी श्रीवास्तव, तलत परवीन, रमेश कँवल, इन्दु उपाध्याय,अप्सरा रणधीर, महेश्वर ओझा ‘महेश’, शमा कौसर ‘शमा’, चंदा मिश्र, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा मेहता नगेंद्र सिंह, नीरव समदर्शी, कृष्ण रंजन सिंह, ई अशोक कुमार, सदानन्द प्रसाद, डा नवल किशोर शर्मा, सागरिका राय, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा रेखा भारती, विंदेश्वर प्रसाद गुप्त, कैलाश ठाकुर, प्रो सुशील कुमार, मधुर रानी लाल, प्रो डा पंकज वासिनी, प्रेमलता सिंह राजपुत, अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, शंकर शरण मधुकर, कमलकिशोर ‘कमल’डा मुकेश कुमार ओझा, आदि सम्मेलन के अधिकारी, सदस्यगण एवं बड़ी-संख्या में साहित्यकार उपस्थित थे।