Kaushlendra Pandey : भाजपा पर बरसते हुए जदयू के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता राजीव रंजन ने आज कहा है कि अंतिम जातीय जनगणना को अगर ठीक से पढ़ा जाए तो उस समय देश में अतिपिछड़ों की संख्या 31% थी लेकिन बिहार और ओड़िसा में हालिया हुए जातिगत गणनाओं के आधार पर आकलन करें तो पता चलता है कि अतिपिछड़ा समाज देश भर में बहुसंख्यक है. यदि राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत गणना हो अतिपिछड़ों की संख्या आधी आबादी से भी अधिक निकलेगी. इसलिए राष्ट्रीय स्तर जातिगत गणना करवाना मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है.उन्होंने कहा कि आज भाजपा के अलावे हर राजनीतिक दल और अतिपिछड़ा समाज का एक-एक आदमी देशव्यापी जातिगत गणना करवाने का पक्षधर है. लेकिन भाजपा के नेताओं को अतिपिछड़ा समाज की इस वाजिब मांग को सुनते ही सांप सूंघ जाता है. उन्हें पता है कि जातिगत गणना के बाद उन्हें अपनी अतिपिछड़ा विरोधी मानसिकता त्यागने और इस समाज का विकास करने पर बाध्य होना पड़ेगा. उन्हें पता है कि जिन अतिपिछड़ों को वह अपना बंधुआ मजदूर समझते आये हैं, वह जातिगत गणना के बाद अपने हक की मांग बुलंद करने लगेगा. इसीलिए इतने दिनों से इस विषय में लगातार की जा रही मांग के बावजूद भाजपा के किसी बड़े नेता अपना मुंह तक नहीं खोला है. इनकी चुप्पी यह साफ़ दिखलाती है केवल अतिपिछड़े समाज को दबाये रखने के लिए यह लोग जातिगत गणना नहीं करवाना चाहते.उन्होंने कहा कि वास्तव में अतिपिछड़ा विरोध भाजपा की रग-रग में बसा है. इनके ओबीसी मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष खुद स्वीकार कर चुके हैं कि उन्हें अतिपिछड़ा होने के कारण भाजपा में कैसी प्रताड़ना झेलनी पड़ती थी. अतिपिछड़ा समाज के लिए काम करने की अनुमति देना तो दूर, उन्हें कर्पूरी ठाकुर जैसे महामानव की जयंती मनाने से भी रोका जाता था. हकीकत में भाजपा की निगाह में अतिपिछड़ा समाज के लोगों का महत्व गुलामों से अधिक नहीं है. पार्टी में उनका वजूद केवल झंडा ढ़ोने और नेताओं की पालकी उठाने तक ही सीमित है.जदयू महासचिव ने कहा कि भाजपा को बताना चाहिए कि बिना अतिपिछड़ों का विकास किये वह देश के विकास का अपना वादा कैसे पूरा करने वाले हैं? भाजपा बताये कि जिस देश की आधी आबादी पर अतिपिछड़ा होने का ठप्पा लगा हो, उसे आगे बढ़ाये बिना वह देश को विश्वगुरु कैसे बनायेंगे? वह बताये कि यदि आजादी के अमृत काल में अतिपिछड़ों को उनका हक़ नहीं मिलेगा तो फिर कब मिलेगा? भाजपा यह जान ले कि उनके अतिपिछड़ा विरोधी रवैए से समाज में आक्रोश पनप रहा है, जिसका खामियाजा उन्हें आगामी चुनाव में भोगना ही पड़ेगा.