पटना, ११ सितम्बर। “बहुत बोलता है मेरे घर का हीरामन/ भिश्ती की सुनकर राजा को गरियाता है/ जिस दिन से बँट गया घर का चौका-चूल्हा/ वह कबीर बाबा की बानी में गाता है”—– “जिस दिन हम गाँव से मुलुक हुए/ उस दिन से रूठ गया मुँह बोला भाई”—- “इस दंगे में पहली बार दोस्तों ने कटवा दी मेरी दाढ़ी कि मैं एक आज़ाद मुल्क का नागरिक हूँ।”इन पंक्तियों के साथ नगर के कवियों से मुख़ातिब थे, लखनऊ के वरिष्ठ कवि और दूरदर्शन, दिल्ली में निदेशक रहे डा शैलेश पण्डित। मंगलवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में उनके सम्मान में एक काव्य-संध्या का आयोजन किया गया था। सम्मेलन की ओर से सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने उन्हें ‘फणीश्वरनाथ रेणु’ सम्मान से विभूषित किया। ग्राम्य जीवन की सुषमा और पीड़ा को रेखांकित करने वाली अपनी कविताओं से काव्यपाठ आरंभ करते हुए, डा पंडित ने आज के अनेक ज्वलंत मुद्दों पर भी रचनाएँ पढ़ीं। अपनी कविता ‘सूर्योदय’ पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि “कहीं आग तो कही धुआँ है/ कहीं हथगोलों की पुरवाई है/ बागों और बहारों में चम्पे सी फूली महंगाई है/ घर में राशन नहीं तो क्या! लोकतंत्र सोने के गेहूं बो रहा है/ उठ-उठ मेरी बुलबुल/ इस देश का सूर्योदय हो रहा है।”अपने बुजुर्गों से मुँह मोड़ रही नयी पीढ़ी को सचेत करते हुए, उन्होंने कहा कि “दादा तुम पारस थे/ तुमने मुझे बनाया सोना/ सोने की क़िस्मत में है/ आख़िर तो बाज़ारू होना!”डा पंडित ने अपनी १० प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया, जिनका तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कवि-श्रोताओं द्वारा स्वागत किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि-कथाकार चितरंजन लाल भारती, डा शालिनी पाण्डेय, सम्मेलन के अर्थ मंत्री प्रो सुशील कुमार झा, प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह, नन्दन कुमार मीत, अमरेन्द्र कुमार, दिगम्बर जायसवाल, डौली कुमारी, कुमारी मेनका आदि प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।