पटना, २८ अक्टूबर । नाम-यश की लालसा से सर्वथा दूर, एकांतिक साधना में निमग्न, साहित्य के पर्यावाची शब्द थे, आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव। अपने समय के वे सबसे बड़े साहित्यकार थे। उनके संपूर्ण व्यक्तित्व से ‘साहित्य’ टपकता था। साहित्यकार को लेकर,भारतीय वांगमय में एक जो अनूठी कल्पना है, कि कोई ‘साहित्यकार’ चले, तो लगे कि ‘साहित्य’ चल रहा है। वह कुछ बोले तो लगे कि ‘साहित्य’ ने कुछ कहा है। वह मुस्कुराए तो लगे कि, साहित्य ने आनंद की अभिव्यक्ति की है, उसी आदर्श कल्पना के साकार रूप थे आचार्य जी। जीवन पर्यन्त, अपनी आयु के ९४वें वर्ष में भी, मृत्यु के कुछ दिन पूर्व तक, जबतक कि उन्होंने बिस्तर नहीं पकड़ लिया, अनवरत लिखते रहे। लगभग ७५ साल की उनकी अद्वितीय साहित्यिक साधना रही। इतनी लम्बी अवधि तक साहित्य की सेवा करने वाला संसार में शायद ही कोई दूसरा हो।साहित्य सम्मेलन के लिए यह गौरव का विषय है कि वे सम्मेलंके प्रधानमंत्री थे।यह बातें शनिवार को, संस्कृत, प्राकृत, पाली, अपभ्रंश और हिन्दी समेत अनेक भाषाओं के विश्रुत विद्वान आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव की जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, आचार्य सूरिदेव ने, जो स्वयं ही साहित्य के विशाल कोश थे, कभी विश्राम नही किया। अनवरत पढ़ते लिखते रहे। दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखी। दो खंडों में ‘प्राकृत-हिन्दी शब्द-कोश’ का निर्माण किया। सैकड़ों पुस्तकों पर सम्मतियाँ लिखीं और नवोदित साहित्य-सेवियों को प्रोत्साहन, संवल और मार्ग-दर्शन दिया। साहित्य की लोक-मंगल की भावना के सदृश ही सबके मंगल की कामना की। यश के पीछे नही दौड़े, तो देर से ही सही, किंतु ‘यश’ उन्हें खोजता हुआ उनके घर तक पहुँचा। उन्हें वर्ष २०१६ में, केंद्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा पाँच लाख रूपए का ‘विवेकानन्द सारस्वत सम्मान’ प्राप्त हुआ, जो तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रदान किया गया।अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि सूरिदेव जी का शब्द पर वैसा ही अधिकार था, जैसा आचार्य नलिन विलोचन शर्मा का था। प्राकृत, पालि और अपभ्रंस के एकमात्र अधिकारी विद्वान थे। पं मार्कण्डेय शारदेय, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा सुमेधा पाठक, आचार्य जी के पुत्र संगम कुमार रंजन, पुत्रवधू विभा रंजन तथा डा मेहता नगेंद्र सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि आरपी घायल, रमेश कँवल, शायरा तलत परवीन, कुमार अनुपम, जय प्रकाश पुजारी, डा अर्चना त्रिपाठी, शंकर शरण मधुकर, डा रेखा भारती मिश्र, श्याम बिहारी प्रभाकर, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, ई अशोक कुमार, गोपाल कृष्ण मिश्र, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ आदि कवियों एवं कवयित्रियों ने अपनी मंजुल काव्य-रचनाओं से आचार्य जी को अपनी काव्यांजलि दी। कार्यक्रम का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।डा राकेशदत्त मिश्र, प्रवीर पंकज, उर्मिला रघुवीर नारायण, डा रूपेश कुमार झा, अवध विहारी सिंह, शोभित सुमन, सुधीर कुमार मिश्र, गोविंद प्रसाद जायसवाल, अनिल कुमार, रवींद्र कुमार यादव, कुमार शिवम्, दुःखदमन सिंह आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।