पटना, ५ नवम्बर। महाकवि पं मोहनलाल महतो’वियोगी’ आधुनिक हिन्दी साहित्य के निर्माताओं में से एक और बीसवीं शताब्दी के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों में अग्र-पांक्तेय थे। उनकी साहित्यिक-प्रतिभा, काव्य-कल्पनाएँ और विपुल-लेखन अचंभित करते हैं। गद्य और पद्य पर समान अधिकार से लिखने वाले और साहित्य की सभी विधाओं को समृद्ध करने वाले वे हिन्दी के अतुल्य साहित्यकार हैं। उन पर वैदिक-साहित्य का गहरा प्रभाव था।यह बातें रविवार को हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, आयोजित जयंती-समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। सम्मेलन में तीन अन्य साहित्यकारों पं राम गोपाल शर्मा ‘रुद्र’, उदय राज सिंह और प्रो सीता राम ‘दीन’ की भी जयंती मनायी गयी। डा सुलभ ने कहा कि, जब पं राम गोपाल शर्मा ‘रुद्र’ को स्मरण करते हैं तो उनका अमर गीत ‘जल रहा दिया मज़ार पर’ का बरवश स्मरण हो आता है। हिन्दी काव्य के उत्तर-छायावाद काल के अत्यंत महत्त्वपूर्ण कवि और मार्मिक छंदों के गीतकार थे रुद्र जी। उनके स्मरण-मात्र से नयन आर्द्र हो जाते हैं। उदय राज सिंह ‘शैली-सम्राट’ के नाम से सुविख्यात साहित्यकार राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह के सुपुत्र और यशस्वी हिन्दी-सेवी थे। उन्होंने अपने साहित्य से पिता की कीर्ति को और उज्ज्वल किया। प्रो सीताराम ‘दीन’ को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि ‘दीन’ जी पर ‘कबीर’ का गहरा प्रभाव था। वो उनके समान ही अक्खड़ और फक्कड़ कवि थे। उतने ही स्वाभिमानी भी थे। बालपन और किशोर का जीवन घोर अभावों में गुज़ारा पर उन्होंने किसी का दान स्वीकार नहीं किया। ‘स्वयं’ का स्वयं ही निर्माण किया। भले ही अपना उपनाम ‘दीन’ रखा था पर किसी की दया स्वीकार नहीं की। समर्थ हुए तो ‘दाता’ की तरह रहे।