पटना, २५ नवम्बर। क़ानून बेकार है, यदि उसका अनुपालन सुनिश्चित न किया जाए। जीवन ‘नेचुरल लौ’ से चलता है और शासन क़ानून से। किंतु यह सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है। भारत की न्यायपालिका से न्याय की जो अपेक्षा की जाती है, उस पर वह खरी नहीं उतर रही। कार्यपालिका ऐसे-ऐसे निर्णय ले रही है, जिससे समाज मज़बूत होने के स्थान पर टूटता जा रहा है।यह बातें शनिवार को विधि-पत्रिका ‘विधि-विमर्श’ के तत्त्वावधान में, सविधान दिवस की पूर्व संध्या पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह में पत्रिका के विशेषांक का लोकार्पण करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कही। उन्होंने कहा कि ‘नेचुरल लौ’ के अनुसार चल कर ही हम मूल्यवान जीवन जी सकते हैं और एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता यदुवंश गिरि ने कहा कि क़ानून संविधान से निकला है। संविधान के आलोक में, समाज की आवश्यकता के अनुसार नए क़ानून बनते हैं। आवश्यकता के अनुसार संविधान में संशोधन भी होते हैं। विधि-विमर्श पत्रिका, जिसका आज तीसरा वार्षिकोत्सव भी मनाया जा रहा है, आम जन को विधि-ज्ञान से अवगत कराने का जनोपयोगी कार्य कर रही है, जो प्रशंसनीय है।बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि भारत की न्यायपालिका पर वाद/ परिवाद और याचिकाओं का इतना बड़ा बोझ है कि नैसर्गिक न्याय असंभव हो रहा है। इनमे अधिकतर झूठे मामले तथा अधिकारियों द्वारा लिए गए ग़लत निर्णयों के विरुद्ध याचिकाएं होती हैं। यदि झूठे मामले दर्ज करने वाले व्यक्तियों को भी वही दंड दिया जाए तथा दोषी अधिकारियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई हो तो न्यायिक व्यवस्था में एक बड़ा गुणात्मक परिवर्तन हो सकता है।बिहार पुलिस मेंस एशोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि क़ानून बनाने और क़ानून का अनुपालन सुनिश्चित करने वाले ही क़ानून तोड़ते नज़र आते हैं। इनमे पुलिस, राजनेता और अधिवक्ता भी सम्मिलित हैं। आज हर थाने में एक-एक अनुसंधान कर्ता के ऊपर सैकड़ों मामलों का बोझ है। ऐसे में समय पर और उचित अनुसंधान कैसे संभव हो सकता है?पत्रिका के संपादक और अधिवक्ता रणविजय सिंह की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह में विशिष्ट अतिथि डा अजय प्रकाश, डा ओम् प्रकाश जमुआर, अधिवक्ता राम संदेश राय, जगदीश्वर प्रसाद सिंह, अलका वर्मा, शिवानन्द गिरि आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर पूर्व सांसद और अधिवक्ता राजनीति प्रसाद, बद्री नारायण, मिथिलेश गुप्ता, विजय कुमार, गुंजन कुमार, सुशील कुमार आदि अधिवक्ताओं को ‘विधि विमर्श सम्मान-२०२३’ से विभूषित किया गया। मंच का संचालन कुलदीप नारायण दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन शिवानन्द गिरि ने किया।
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