पटना, २९ नवम्बर। गद्य और पद्य में समान अधिकार से लिख रहे वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य के साहित्य में काव्य-आदर्श के समान लोक-मंगल के भाव हैं। उत्पीड़न के विरुद्ध इनके प्रतिकार के स्वर भी कठोर नहीं, अपितु प्रियकर और प्रभावकारी हैं। इनमे विध्वंस का आक्रोश नहीं, उद्धार का आह्वान है। बिहार के गृह-सचिव रह चुके श्री आर्य मौलिक रूप से कवि और अहंकार से शून्य एक विनम्र मानव हैं, जो इनके साहित्य में भी लक्षित होता है।यह बातें बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में श्री आर्य की नवीनतम काव्य-कृति ‘दो भिक्षुणियाँ’ के लोकार्पण हेतु आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि ‘दो भिक्षुणियाँ’, मथुरा की विश्रुत सुंदरी ‘वासवदत्ता’ और मगध की राजनर्तकी ‘शालवती’ के बौद्धधर्म में दीक्षित होने और उनके आध्यात्मिक रूपांतरण की मर्मस्पर्शी काव्य-कथा है। दोनों ही अपने समय के भिक्षुओं से प्रभावित हुईं तथा उनसे आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर मानवता के त्राण हेतु अपना संपूर्ण जीवन अर्पित कर दिया।समारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री और दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डा सी पी ठाकुर ने कहा कि आर्य जी साहित्य की बड़ी सेवा कर रहे हैं। लोकार्पित पुस्तक से पाठकगण अवश्य ही लाभान्वित होंगे।अपने कृतज्ञता-ज्ञापन के क्रम में श्री आर्य ने पुस्तक के संबंध विस्तार पूर्वक चर्चा की तथा कहा कि इसकी रचना की प्रेरणा दोनों कथा-नायिकाओं वासवदत्ता और शालवती की रहस्यमयी और रोचक कथाओं से मिली, जिन्होंने अपने जीवन के अंतिम काल में सांसारिक सुखों को दुःख का कारण मानती हुई, लोक-सेवा को अपना व्रत बना लिया। दूरदर्शन,बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख डा राज कुमार नाहर ने पुस्तक की काव्य-पंक्तियों को गाकर प्रस्तुत किया,