पटना, २० दिसम्बर। जनवादी-दस्ते के साहित्यकार माने जाते हैं, नचिकेता। किंतु मेरी दृष्टि में वे शुद्ध-चेतना के वाहक एक अत्यंत संवेदनशील और युग-बोध के बड़े कवि थे। वे हिन्दी नवगीत के मनीषी रचनाकार और समालोचक थे। उनके निधन से हिन्दी ने अपना एक बड़ा प्यारा-दुलारा पुत्र खो दिया है। साहित्य-समाज आज अत्यंत मर्माहत है।हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार और समालोचक नचिकेता के निधन पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित शोक-सभा की आध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने भरे कंठ से ये शोकोदगार व्यक्त किए। वे संपूर्ण मानव-जाति के ऐक्य के पक्षधर थे। एक सजग साहित्यकार की भाँति उनके मन में भी पीड़ित समाज प्राथमिकता था और वे उसी के गीत गाते रहे। यों तो वे विज्ञान और अभियंत्रण के विद्यार्थी रहे। यांत्रिक-अभियंत्रण में स्नातक और झारखंड सरकार में अभियन्ता रह चुके थे।
किंतु साहित्य की साधना किसी तपस्वी हिन्दी-सेवी की तरह की। सेवा से अवकाश लेने के पश्चात एकांतिक साहित्य-साधना में लग गए। २० से अधिक मौलिक गीत-संग्रह और ग़ज़ल-संग्रह के अतिरिक्त अपने संपादन में लगभग दर्जन भर पुस्तकों से साहित्य का भंडार भरे। समकालीन नवगीत-कारों पर, हाल ही में प्रकाशित हुई उनकी आलोचना की पुस्तक बड़ी चर्चा में रही।स्मरणीय है कि जहानाबाद के हुलासगंज थानांन्तर्गत केउर ग्राम में २३ अगस्त १९४५ में जन्मे, ७८ वर्षीय साहित्यकार नचिकेता ने विगत दिन,बहादुरपुर, पटना स्थित अपने आवास पर पूर्वाहन ११ बजे अपनी अंतिम साँस ली। विगत कुछ वर्षों से वे अस्वस्थ चल रहे थे। शोक व्यक्त करने वालों में, वरिष्ठ साहित्यकार डा ब्रजेश पाण्डेय, कुमार अनुपम, श्रीकांत व्यास, पारिजात सौरभ, डा शालिनी पाण्डेय, ई अशोक कुमार, डा अर्चना त्रिपाठी, प्रो सुशील कुमार झा, प्रवीर कुमार पंकज, बाँके बिहारी साव, मनोज कुमार मिश्र, के नाम सम्मिलित हैं। सभा के अंत में दो घड़ी का मौन रखकर दिवंगत आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना की गयी।
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