पटना, २६ जनवरी। भारत का ७५वाँ गणतंत्र दिवस, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में समारोहपूर्वक मनाया गया। राष्ट्रीय-ध्वज का आरोहण सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने किया। ध्वजारोहण के पश्चात अपने संबोधन में डा सुलभ ने देश के अमर बलिदानियों के साथ, स्वतंत्रता-संग्राम में योगदान देनेवाले साहित्यकारों और कवियों को भी स्मरण किया और कहा कि स्वतंत्रता-संग्राम में साहित्यकारों का सबसे बड़ा अवदान था। कवियों के प्रेरणादायक गीतों और आग उगलती लेखनी ने ही नहीं उनके त्याग और बलिदान ने भी आंदोलन को बल प्रदान किया। डा सुलभ ने कहा कि संविधान सभा द्वारा १४ सितम्बर, १९४९ को लिए गए उस निर्णय का, कि ‘हिन्दी’ भारत की सरकार के कामकाज की भाषा, अर्थात ‘राज-भाषा’ होगी, अबतक अनुपालन नहीं हो सका, यह संविधान की भावना की उपेक्षा है। उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि अब कोई भी समय गँवाए विना ‘हिन्दी’ को देश की ‘राष्ट्र-भाषा’ घोषित करें !इस अवसर पर एक राष्ट्रीयगीत-गोष्ठी भी आयोजित हुई। चंदा मिश्रा द्वारा वाणी-वंदना से आरम्भ हुई इस गीत-गोष्ठी में सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, बच्चा ठाकुर, शुभचंद्र सिन्हा, डा प्रतिभा रानी, जय प्रकाश पुजारी, डा शालिनी पाण्डेय, इन्दु उपाध्याय, नूतन सिन्हा, सुजाता मिश्र, सिद्धेश्वर, शंकर शरण मधुकर, ई अशोक कुमार, अरविंद अकेला, नरेन्द्र कुमार, पवन कुमार वर्णवाल तथा डा आर प्रवेश ने अपने गीतों से राष्ट्रीय-भाव का प्रसार किया। अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में डा अनिल सुलभ ने कहा कि “नत होगी दुनिया सारी, श्रद्धा,सम्मान प्यार से / ध्वज भारत का लहराएगा, सर्वत्र,समग्र संसार में।”गीत-गोष्ठी का संचालन कवि-पत्रकार डा ध्रुव कुमार ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर अभिजीत काश्यप,बाँके बिहारी साव, नीरव समदर्शी, चितरंजन भारती, डा रेणु काश्यप, संजीव कर्ण, डा चंद्रशेखर आज़ाद, मयंक कुमार मानस, नन्दन कुमार मीत, सदानन्द प्रसाद, डा राकेश दत्त मिश्र, डा आशुतोष कुमार, चंद्र प्रकाश पाण्डेय, रमेश चंद्र झा, उदयचंद्र ठाकुर, माधव अग्रवाल, दिगम्बर जायसवाल आदि बड़ी संख्या में साहित्यकार और हिन्दी प्रेमी उपस्थित थे।