पटना: कांग्रेस के ओबीसी प्रेम के दावों की पोल खोलते हुए जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन ने आज कहा है कि चुनाव देख कर रंग बदलने में माहिर राहुल एक बार फिर भेष बदल चुके हैं. पिछले लोकसभा में जहां जनेऊधारी ब्राहण का चोला पहन का बुरी तरह फेल हो गये थे, वहीं अब इस चुनाव में वह पिछड़ा/अतिपिछड़ा समाज का प्रेमी होने का स्वांग रच कर पास होने की जुगत भिड़ा रहे हैं. उन्हें समझना चाहिए कि बहरूपिया बनने और हवाबाजी करने से सत्ता नहीं मिलती. उसके लिए जमीन पर काम करना पड़ता है. जनता जानती है कि कांग्रेस से बड़ी ओबीसी विरोधी पार्टी पूरे देश में कोई नहीं है. लोग भूले नहीं है कि राजीव गाँधी हो या इंदिरा गाँधी इनके हर नेता ने पिछड़ा/अतिपिछड़ा समाज को आरक्षण देने का विरोध करते रहे थे. बाद में इनके इसी पिछड़ा/अतिपिछड़ा विरोधी मानसिकता के कारण ही मंडलवाद का उदय हुआ था.कांग्रेस के दावों की धज्जियां उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि आज राहुल समेत पूरी कांग्रेस केंद्र सरकार में पिछड़ा/अतिपिछड़ा समाज के सचिवों की कम संख्या होने का रोना रो रहे हैं. जबकि हकीकत में इन्होने अपने शासित किसी भी राज्य में पिछड़े/अतिपिछड़े समाज के अफसर को मुख्य सचिव नहीं बनाया है. वहीं, कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाले इंडी गठबंधन वाले राज्यों में भी तमिलनाडू को अलावे किसी भी राज्य में पिछड़े/अतिपिछड़े समाज के व्यक्ति को मुख्य सचिव नहीं बनाया गया है.जदयू प्रवक्ता ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1985 से लेकर 1989 के बीच स्व. राजीव गांधी की सरकार में SC/ST के एक भी सचिव नहीं थे. वहीं एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल में भी सभी प्रधानमंत्रियों के प्रधान सचिव ऊंची जातियों के ही अधिकारी थे. यह आंकडें राहुल की कथनी और करनी के बीच के अंतर का जीवंत प्रमाण है.जातिगत गणना पर कांग्रेस को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा कि सत्ता में आने पर पूरे देश में जातिगत गणना करवाने का झुनझुना बजा रही कांग्रेस को बताना चाहिए उनके और इंडी अलायन्स के उनके सहयोगियों द्वारा शासित राज्यों में वह जातिगत गणना करवाने की हिम्मत क्यों नहीं दिखा रही है? आखिर उन्हें अपने राज्यों में इस निर्णय को लेने से कौन रोक रहा है?