लखनऊ, ८ मार्च । भगवान शिव कल्याणकारी हैं। वे बुरे विचारों का नाश करते हैं। इसीलिए उन्हें संहार का देवता भी कहा जाता है।यह बातें शुक्रवार को स्थानीय अटल बिहारी बाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेटर में, अंतर्राष्ट्रीय इस्सयोग समाज द्वारा आहूत महाशिवरात्रि महोत्सव में अपना आशीर्वचन देती हुईं, संस्था की अध्यक्ष और तत्त्वज्ञानी सद्गुरूमाता माँ विजया जी ने कही। माताजी ने कहा कि सूक्ष्म आंतरिक साधना में एक साधक बाह्य दृष्टि से मृत समान होता है। जिस तरह एक मृत व्यक्ति को कोई अनुभूति नहीं होती, उसी भाँति एक साधक बाहरी दुनिया से अनुभूति रहित हो जाता है। उसकी आंतरिक चेतना जाग उठती है। बाहर से वह मरता है तो अंतर से मुक्त होता है।माताजी ने कहा कि एक साधक को कछुए की भाँति स्वयं को समेटना चाहिए। सभी प्राणी अपने कर्मों का भोग करते हैं। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जिसे परमात्मा ने विवेक प्रदान किया है और कर्म की स्वतंत्रता दी है। एक घंटे के अखंड संकीर्तन और आह्वान की साधना के साथ आरंभ हुए इस महोत्सव में आयोजन के स्थानीय संयोजक नितिन साहू ने माताजी समेत इस्सयोगियों का स्वागत किया। शिव-स्तुति के पश्चात देश-विदेश के विभिन्न स्थानों से आए इस्सयोगियों ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। उनमें संस्था के सचिव कुमार सहाय वर्मा, संयुक्त सचिव छोटे भैया संदीप गुप्ता, ई उमेश कुमार, डा दार्शनिका पटेल, कमला सोलंकी, रानी साहू , योगेन्द्र प्रसाद, पूजा दुष्यंत यादव, स्वाति साहू, मंजु झा, सुनील चन्द्र वर्मा, रुचि झा, शशांक मल्होत्रा, दीनानाथ शास्त्री के नाम शामिल हैं।यह जानकारी देते हुए, संस्था के संयुक्त सचिव डा अनिल सुलभ ने बताया है कि इस अवसर पर “शक्तिपात-दीक्षा” तथा “दिव्य-ऊर्जा” की दीक्षा भी श्रीमाँ द्वारा प्रदान की गई ।बहन संगीता झा, लक्ष्मी प्रसाद साहू, अतुल साहू, शिवम् झा, काव्या सिंह झा, सरोज गुटगुटिया, दुष्यंत यादव, श्रीकान्त साहू, बीरेन्द्र राय, धर्मेश साहू, सत्यम साहू, राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, कपिलेश्वरमण्डल, आनन्द सिंहल, कविता मित्तल, श्रीप्रकाश सिंह, सतीश यादव समेत हज़ारों की संख्या में इस्सयोगी उपस्थित थे ।