पटना, १२ अप्रैल। विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों और विशेष बच्चों के पुनर्वास और प्रशिक्षण के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि उपलब्ध संसाधनों का समुचित और सम्यक् उपयोग और संचालन किया जाए। संसाधनों के समुचित प्रयोग से ही लक्ष्य की प्राप्ति संभव है। यह सिद्धांत केवल विशेष आवश्यकता वाले लोगों पर ही नहीं आम जीवन में भी लागू होता है।इस तरह के विचार, भारतीय पुनर्वास परिषद, भारत सरकार के सौजन्य से बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च, में’विकलांगता-पुनर्वास में संशाधनों के उपयोग’ विषय पर आयोजित राष्ट्र-स्तरीय तीन दिवसीय सतत पुनर्वास शिक्षा कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने व्यक्त किए। संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में सपन्न हुए अंतिम सत्र में सुप्रसिद्ध नैदानिक मनोवैज्ञानिक डा नीरज कुमार वेदपुरिया, वाक् श्रवण-विशेषज्ञ डा धनंजय कुमार, डा ज्ञानेंदु कुमार और विशेष-शिक्षा विशेषज्ञा कल्पना झा ने अपने वैज्ञानिक-पत्र प्रस्तुत किए।कार्यशाला में, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, उत्तरप्रदेश तथा पश्चिम बंगाल से आए सैकड़ों पुनर्वास-कर्मियों और विशेष-शिक्षकों ने प्रतिभागिता की, जिन्हें प्रशिक्षण का प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया। मंच का संचालन प्रो संतोष कुमार सिंह ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन संस्थान के विशेष शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो कपिल मुनि दूबे नेकिया।इस अवसर पर संस्थान के प्रशासी अधिकारी सूबेदार संजय कुमार, विशेष शिक्षक रजनी कांत, प्रो प्रिया तिवारी, प्रो जया कुमारी, प्रो चंद्राआभा, डा वंदना, डा आदित्य ओझा, प्रो मधुमाला कुमारी तथा देवराज कुमार समेत बड़ी संख्या में संस्थान के कर्मी एवं छात्रगण भी उपस्थित थे।