पटना, १३ मई । पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक रहे प्रो नन्द किशोर ‘नवल’ हिन्दी और अंग्रेज़ी के ख्यातिनाम विद्वान ही नहीं एक विलक्षण समालोचक और अद्भुत अध्येता थे। हिन्दी साहित्य को अपनी तीक्ष्ण प्रतिभा और व्यापक अनुशीलन से समृद्ध करने वाले नवल जी ने ‘हिन्दी आलोचना का इतिहास’, ‘आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास’, ‘बिम्ब प्रतिबिम्ब’, ‘पुनर्मूल्यांकन’ जैसे गुरु-गंभीर मौलिक ग्रंथों का सृजन कर हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में ऐतिहासिक अवदान दिया। उनके निजी पुस्तकालय में पाँच हज़ार से अधिक पुस्तकें थीं, जिनमे से साढ़े चार हज़ार पुस्तकें उनके यशस्वी पुत्र चिन्तन भारद्वाज ने बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पुस्तकालय को दान स्वरूप प्रदान की है। नवल जी ने यह सिद्ध किया कि साहित्यकारों और विशेषकर समालोचकों के लिए पुस्तकों का कितना बड़ा महत्त्व है।यह बातें प्रो नन्द किशोर ‘नवल’ की पुण्य-स्मृति में, ‘लेखकों के जीवन में पुस्तक का महत्त्व’ विषय पर आयोजित परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि नवल जी की हिन्दी-सेवाओं का उचित मूल्यांकन नहीं हो सका है। उन्होंने देश की अनेक महान साहित्यिक विभूतियों पर प्रचूरता से लिखा, जिनमें निराला, मैथिली शरण गुप्त, मुक्तिबोध, राम गोपाल शर्मा ‘रुद्र’और डा नामवर सिंह जैसे मनीषी सम्मिलित हैं। अब समय आ गया है कि नवल जी पर भी लिखा जाए।समारोह के मुख्य अतिथि और सुप्रसिद्ध कवि प्रो अरुण कमल ने कहा कि डा नन्द किशोर नवल की पुस्तकों का साहित्य सम्मेलन में आना एक बड़ा पावन कार्य है। नवल जी की आदत थी कि वे किताबों के हाशिए पर टिप्पणियाँ करते चलते थे। पुस्तकों में उनकी आत्मा बस्ती थी। उन्होंने कहा कि कोई कवि या लेखक केवल अपने अनुभव और अनुभूतियों से ही नहीं अपने अध्ययन द्वारा अर्जित ज्ञान से भी लिखता है। लेखक की संपत्ति पुस्तक ही होती है। मुख्य वक्ता के रूप में अपना व्याख्यान देते हुए, पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो तरुण कुमार ने कहा कि लेखकों के जीवन में पुस्तक का वही महत्त्व है, जो ‘मछली’ के लिए ‘पानी’ का है। आदिकाल में जब पुस्तकें उपलब्ध नहीं थी, तब संतों के साथ सत्संग ज्ञान का मार्ग था। भक्तिकाल के साहित्यकारों ने गुरुजनों के साथ बैठकर सीखा और रचनाएँ की। तंगहाली में मिर्ज़ा ग़ालिब भी किराए की किताब पढ़ते थे, पर अवश्य पढ़ते थे। नवल जी के लिए पुस्तकें उनके प्राणों से भी प्रिय रहीं।भारतीय स्टेट बैंक में सहायक महाप्रबंधक और नवल जी के पुत्र चिन्तन भारद्वाज, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, वरिष्ठ साहित्यकार बच्चा ठाकुर, सुनीता राय, डा शालिनी पाण्डेय ने तथा चंदा मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, डा पूनम आनन्द ने ‘तीसरी आँख’ शीर्षक से, डा पुष्पा जमुआर ने ‘ममता का खून’, डा विद्या चौधरी ने ‘बबलू के बाबू जी’, विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘छतरी की चलनी’, ‘डा पूनम देवा ने ‘वक्त’, डा रमाकान्त पाण्डेय ने ‘देखते रह गए’, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने ‘हालचाल’, श्याम बिहारी प्रभाकर ने ‘मकान ख़ाली रह गया’, जय प्रकाश पुजारी ने ‘ईमान’, ई अशोक कुमार ने ‘जले पे नमक’, अरविन्द अकेला ने ‘कुत्तों का बॉस’ तथा बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता ने ‘माँ’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन डा अर्चना त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।ई आनन्द किशोर मिश्र, भास्कर त्रिपाठी, मो अरशद, डा चंद्र्शेखर आज़ाद, विजयश्री डांगी, दिनेश वर्मा, अरविन्द ओझा, प्रियंका कुमारी, अमन वर्मा आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।