जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 02 जून, 2024 ::किसी भी परिवार के तीन सदस्य परिवार व्यवस्था के लिए एक दूसरे का पूरक होता है। खुशहाल परिवार के लिए सम्पन्नता की सीढ़ी कहलाता है तीन सदस्यों के बीच बेहतर तालमेल। परिवार में सदस्यों का रिश्ता ही नहीं बल्कि स्नेह, करुणा, प्रेम, और अनुभवों से भरा व्यक्तित्व होता है जो एक चुटकी में किसी भी समस्याओं का समाधान ढूंढ लेता है। इसलिए परिवार के तीन सदस्यों यथा दादा, पिता और पोता में मतभेद नहीं होना चाहिए, क्योंकि यदि पिता और पोता में मतभेद होता है तो दोनों के बीच शॉक ऑब्जर्वर (स्थिति संभालने वाले) दादा ही होते है।देखा जाय तो वर्तमान पीढ़ियाँ आर्थिक प्रबंधन, भाषा और व्यवहार, धन संचय के प्रति रवैया, पीढ़ियों की धारणायें, पहनावा में कपड़ों का चयन आदि तीन सदस्यों को स्वीकारने में बाधा उत्पन्न कर रहा है। जबकि सही मायने में पिता का दादा के द्वारा पालन-पोषण कैसे किया गया है, यह कहीं न कहीं पोते की उसके पिता द्वारा की जाने वाली परवरिश पर गहरा असर पड़ता है। इस प्रकार परिवार के तीन सदस्यों में से दो इकाइयाँ काम करती है वह होता है दादा-पिता और पिता-पुत्र।परिवार में पिता और पुत्र रिलेशन मॉडल ही मुख्यतः काम करता है। पुत्र अपने पिता से साफ, सरल और स्पष्ट भाषा मेंआधुनिकता के नाम पर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे बनाये गये पारिवारिक सिद्धांत तार-तार होकर खंडित हो जाए, अपनी बात कहने से न हिचकें, बात में हमेशा लचीलापन रखें। पिता की धारणाएँ पुत्र के लिए सिद्धांत हो सकता है, लेकिन उनकी बातों से अलग राय रखने में विनम्रता और अनुभवों का लाभ उठाने में भी नही हिचकना चाहिए। परिवार में पारिवारिक समस्याओं में भावनात्मक हेराफेरी सीखने से सभी को बचना चाहिए। दादा और पिता से बेहतर और घर में स्थापित मूल्यों के अनुसार बर्ताव करना चाहिए। आधुनिकता के नाम पर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे बनाये गये पारिवारिक सिद्धांत तार-तार होकर खंडित हो जाए, क्योंकि खंडित हो जाने पर घर में स्थापित मूल्यों के सिद्धांत को कायम करने में कई पीढ़ी गुजर जाता है।संयुक्त परिवार में ही आर्थिक प्रगति संभव होता है, क्योंकि संयुक्त परिवार में साथ रहने से एक मनुष्य को उसकी अलग धारणाओं के साथ तीन पीढ़ियों का उनके अलग-अलग सिद्धांतों के साथ एक दूसरों को स्वीकारने की ताकत विकसित होता है। देखा जाय तो वर्तमान समय में पूंजीवाद के चलते संयुक्त परिवार तेजी से समाप्त हो रहा है।पिता में सबसे महत्वपूर्ण गुण होता है की वे सदैव हमेशा धीरज से काम लेते हैं और कभी खुद पर से आपा नहीं खोते है। पिता हर परिस्थिति में शांत भाव से सोच समझ कर गंभीर से गंभीर समस्याओं में भी धैर्य के साथ आगे बढ़ते हैं और संयम के साथ निर्णय करते है। इसलिए पुत्र हमेशा पिता से सीखता है, अपने आप पर से नियंत्रण कभी नहीं खोना, क्योंकि पिता हमेशा संयमित व्यवहार कुशलता से हर कार्य को सफलतापूर्वक समाधान करते हैं। पिता हमेशा परिवार को अनुशासन में रहना सिखाते हैं और वे खुद भी अनुशासित रहते हैं।पिता घर के सभी कार्यों और परिवार के सभी लोगों और उनके स्वास्थ्य के प्रति, पूरी तरह सजग होते हैं। वे कभी भी छोटी-छोटी बातों को नजर अंदाज नहीं करते बल्कि हर बात को गंभीरता से लेकर उसका महत्व समझाते हैं। पिता परिवार के सभी लोगों से बहुत प्रेम करते हैं, और घर में किसी भी प्रकार की कमी नहीं होने देते और परिवार के सदस्यों की जरूरतें और फरमाइशें भी पूरी करते हैं। किसी भी प्रकार की गलती होने पर डांटने के बजाए प्यार से समझाते हैं और दोबारा गलती न करने की सीख भी देते हैं। देखा जाय तो पिता अपनी तकलीफ को किसी से शेयर नही करना चाहते है लेकिन किसी बात पर गुस्सा होने पर हमेशा कुछ देर गुस्सा दिखाने के बाद उसे माफ कर देते हैं और घर के लोगों की हर जरूरत और तकलीफ का पूरा ध्यान रखते हैं। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण पिता की महानता और अधिक बढ़ जाती है और उनकी तुलना दुनिया में किसी से भी नहीं किया जा सकता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पिता प्रत्येक बच्चों और परिवार के सदस्यों के लिए धरती पर ईश्वर का साक्षात रूप होते हैं, क्योंकि वे संतान को सुख देने के लिए अपने सुखों को भुलाकर हर सुविधा देना चाहते है जो उन्हें भी कभी नहीं मिली हो। कई बार छोटी सी तनख्वाह में भी पिता कर्ज में डूब जाता हैं लेकिन बच्चों और परिवार के सामने कभी कोई परेशानी जाहिर नहीं करते हैं, इसीलिए पिता, दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।
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