(भारतीय चित्रकला की एक अद्भुत शैली है काजली सीही/पटना कलम, मुगल कलाकारों द्वारा 18 वीं शताब्दी में बनाया गया था और तब इस कलाकृतियों के प्रमुख खरीदार अंग्रेज़ हुआ करते थे जो इसे स्मृति चिन्ह के रूप में पटना से खरीदते थे। यह चित्रकला की दुनिया का पहला स्कूल था जिसने विशेष रूप से आम लोगों की जीवनशैली को परिभाषित किया। यह चित्रकला लगभग 200 वर्षों से अस्तित्व में है और आज भी उतनी ही लोकप्रिय है।) इसी मंशा से, लेख्य-मंजूषा साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव द्वारा सभी अतिथियों का स्वागत पटना कलम चित्रकला प्रशिक्षण कार्यशाला के बच्चों द्वारा बनाए चित्र देकर किया गया। अवसर था त्रैमासिक गद्य कार्यक्रम! पिता दिवस के अवसर पर ‘साहित्यिक स्पंदन’ और डॉ. प्रो. सुधा सिन्हा द्वारा लिखित आलेख की पुस्तक ‘जीवन के रंग’ का लोकार्पण आज दिनांक १६/०६/२०२४ को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के विशाल प्रांगण में किया गया। गद्य विधा को समर्पित यह कार्यक्रम अनेक सत्र में आयोजित किया गया। आगंतुक के लिए स्वागत भाषण संस्था के सचिव रवि भूषण श्रीवास्तव ने दिया।कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए ‘इक्कीसवीं सदी में/ वर्तमान समय में ढीठ/दबंग (बोल्ड) लेखन का साहित्य पर क्या असर है?’ विषय पर परिसंवाद का आयोजन हुआ जिसमें मुख्य वक्ता रहे मशहूर शायर और उपन्यासकार नीलांशु रंजन, वरिष्ठ पत्रकार, अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा के महासचिव और प्रख्याता, डॉ, ध्रुव कुमार और परिसंवाद का संचालन ऋचा वर्मा के द्वारा किया गया। तत्पश्चात एक परिचर्चा भी आयोजित की गयी जिसका विषय था ‘क्या किसी समीक्षक की लिखी समीक्षा उस समीक्षक की रचना कही जा सकती है और अगर समीक्षा, रचना नहीं है तो समीक्षक का सम्मान साहित्य में क्या है?’ इस परिचर्चा में मो. नसीम अख्तर ने इसका संचालन किया। लेख्य-मंजूषा में चित्राधारित लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था जिसके परिणाम पर डॉ. अनीता राकेश एवं डॉ. ध्रुव कुमार ने अपने-अपने विचार रखे। डॉ. मीना कुमारी परिहार ने पिता पर विचार रखा। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में युवा कवि प्रभास सिंह की पुस्तक ‘अंतरंगानूभुति’ का लोकार्पण तथा नीलांशु रंजन, डॉ. मेहता नागेन्द्र सिंह द्वारा पुस्तक पर अपना वक्तव्य रखा गया। शुभकामनाओं के संग पुस्तक के प्रकाशक और संयोजक राहुल शिवाय नोएडा से स्ट्रीमयार्ड के माध्यम से जुड़े तथा दिव्यांग लघुकथाओं का परिणाम बताया, लेख्य-मंजूषा द्वारा आयोजित और विभा रानी श्रीवास्तव द्वारा संयोजित।द्वितीय सत्र के अंत में डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह की पुस्तक पर चर्चा का आयोजन हुआ जिसमें श्री एम के मधु, श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी, डॉ. मधु वर्मा ने अपने विचार रखे। और मंच संचालन अमृता सिन्हा ने किया।इस अवसर पर संस्था के सदस्यगण मधुरेश नारायण, प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, अपराजिता रंजना, डॉ. मीना कुमारी परिहार, गार्गी राय, मीरा श्रीवास्तव, सीमा सिन्हा, मीरा प्रकाश, डॉ. पूनम देवा, मीरा श्रीवास्तव, पूनम कतरियार, रेखा भारती मिश्रा इत्यादि की गरिमामयी उपस्थिति रही।मंच संचालन विभा रानी श्रीवास्तव और धन्यवाद ज्ञापन एकता कुमारी द्वारा किया गया।