पटना, 31 जुलाई। टीपीएस कॉलेज, पटना एवं हाई मीडिया लैबोरेटिज, मुम्बई के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को जीनोमिकस प्रोटिओनिक्स एवं बायोइन्फ्रॉमेटिस विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला के समापन समारोह आयोजित हुआ। इस समापन समारोह के मुख्य अतिथि बिहार के प्रसिद्ध रसायन विज्ञान के प्रोफेसर एवं पूर्व विभागाध्यक्ष पटना विश्वविद्यालय के प्रो० आशीष कुमार घोष एवं विशिष्ट अतिथि गंगा देवी महिला कॉलेज की प्रधानाचार्या प्रो० रिमझिम शील थे। समारोह की अध्यक्षता टी. पी. एस. कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो० उपेन्द्र प्रसाद सिंह ने की जबकि अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत आयोजन सचिव सह वनस्पति विज्ञान विभागाध्यक्ष डा0 विजय भूषण कुमार ने किया ।प्रो० घोष ने जीनोमिक्स की चर्चा करते हुए बताया कि मनुष्यों के जीनोम मेंलगभग बीस हजार कोडिंग जीन होते हैं, जिनमें प्रोटीन बनाने की जानकारी होती है। किसी व्यक्ति की जीनोमिक जानकारी का उपयोग कभी-कभी किसी स्थिति का निदान करने, रोग की भविष्यवाणी करने और उसे रोकने तथा व्यक्तिगत उपचार प्रदान करने के लिए किया जा सकता है।इन्होने यह भी बताया कि प्रत्येक व्यक्ति का जीनोम अन्य सभी लोग के जीनोम से लगभग 99.9 %. समान होता है लेकिन यह 0.1% लगभग 3 मिलियन अंतर के बराबर होता है। जीन से जीनोम की सफर की भी चर्चा की।प्रो० शील ने बताया कि प्रोटिओम का अर्थ उन सभी प्रोटीनों को संदर्भित करता है जिन्हें कोई जीव व्यक्त कर सकता है। प्रत्येक प्रजाति का अपना अनोखा प्रोटिओम होता है। प्रोटिओम का अध्ययन ही प्रोटिओ मिक्स है। इन्होंने यह भी बताया कि प्रोटिओमिक्स शोध प्रोटीन स्तर पर स्वस्थ रोगग्रस्त कोशकीय प्रक्रियों प्रक्रियाओं के अंतर्निहित प्रक्रियाओं का एक वैश्विक दृष्टिकोण प्रदान करता है। प्रो० उपेंद्र प्रसाद सिंह ने अध्यक्षता करते हुए बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में रिसर्च के प्रति रुचि प्रदान करना एवं इन्हें स्किल बनाना है। यह कार्यशाला जीवन विज्ञान के सबसे महत्वपूर्ण विषय पर आधारित था। डा० विनय भूषण ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि जैवसूचनाविज्ञान (Bioinformatics) जीव विज्ञान की एक शाखा है। बायोइंफॉर्मैटिक्स या जैव सूचना विज्ञान, जीव विज्ञान का एक नया क्षेत्र है, जिसके अन्तर्गत जैव सूचना का अर्जन, भंडारण, संसाधन, विश्लेषण, वितरण, व्याख्याआदि कार्य आते हैं। इस कार्य में जीव विज्ञान, सूचना तकनीक तथा गणित की तकनीकें उपयोग में लाई जातीं हैं। हम यहाँ भी कहा सकते है की यह कंप्यूटर और सूचना तकनिकी विज्ञान का मेल है। इसके माध्यम से खासतौर पर किसी पौधे के जीन्स में किस प्रकार के परिवर्तन करना, जानलेवा बीमारी के लिए उत्तरदायी जीन्स समूह का पता करना, औषधि निर्माण में सहायता आदि में किया जाता है। जैव सूचना विज्ञान इस विषय की स्थापना के बारे में पाउलिन होगेवेग और बेन हेस्पर ने वर्ष 1978 को विचार किया और दुनिया के सामने बायोइन्फार्मेटिक्स विषय लाए।उन्होंने बताया कि एक साल में बोटनी विभाग के द्वारा छह कार्यशाला का आयोजन होता है। जिसका विषय-वस्तु अलग-अलग होता है। कार्यकार्यशाला में डा० रामानुज गुप्ता, डा० अनिकेत कुमार, रिसर्च स्कॉलर अभिनव एवं अरविन्द ने भी सहयोग दिया।समापन समारोह में प्रो0 श्यामल किशोर, अबू बकर रिजवी, प्रो० प्रशांत, डा० सनंदा सहित कई शिक्षक मौजूद रहे। कुल तीस प्रतियागियों ने भाग लिया जिसमें शिक्षक, रिसर्च स्कॉलर एवं विद्यार्थी शामिल थे। ए. एन. कॉलेज,गंगा देवी महिला कॉलेज एवं अन्य कॉलेजों के विद्यार्थियों ने भी हिस्सा लिया।