पटना, २४ अगस्त। प्रज्ञ-चिंतक हृदय नारायण हिन्दी-साहित्य के साधु-पुरुष थे। लेखन की दृष्टि से भी और आचरण-व्यवहार और व्यक्तित्व से भी। उनकी आध्यात्मिक और साहित्यिक साधना साथ-साथ चली। संसार में रहते हुए भी उन्होंने अपनी तपस्या की और सिद्धि भी प्राप्त की। वे एक महान आध्यात्मिक-चिंतक और भारतीय दर्शन के व्याख्याता थे। यह बातें शनिवार को साहित्य सम्मेलन में, कल्याणोदय के सौजन्य से आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि हज़ारों वर्ष के तप पर आधारित चिंतन के गर्भ से भारतीय-दर्शन का प्रस्फुटन हुआ। हमारा चिंतन ‘सादा-जीवन और उच्च विचार’ का है। हमारे महान ऋषियों के मुख से निकला हमारा दर्शन मानव जीवन को विलासिता-पूर्ण नहीं, अपितु ‘आनंद-प्रद’ बनाने की शिक्षा देता है। पुण्य-श्लोक हृदय जी ने अपने साहित्य में इन्हीं विचारों को अभिव्यक्ति दी है।समारोह का उद्घाटन करते हुए, राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि हृदय नारायण जी पर महात्मा गाँधी का गहरा प्रभाव था। वे जीवन पर्यंत गीता और गाँधी का अनुसरण करते रहे। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में भी भाग लिया। समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि, हृदय नारायण जी एक शरीर नही दिव्य आत्मा थे। वे एक महान दार्शनिक-साहित्यकार थे। इनके जैसे महापुरुषों का अनुकरण किया जाना चाहिए।अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने हृदय नारायण जी के आध्यात्मिक और साहित्यिक व्यक्तित्व की विस्तारपूर्वक चर्चा की और कहा कि,उनकी ४० से अधिक पुस्तकों में उनका व्यापक दार्शनिक-चिंतन प्रकट हुआ है। ‘गीता’, ‘गांधी’ और’विवेकानंद’ पर उनके विशेष कार्य आज भी प्रेरणा देते हैं। उन्होंने अपने साहित्य और आचरण से सिखाया कि हमें निरन्तर कर्म करना चाहिए।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, स्वर्गीय हृदय नारायण के चिकित्सक पुत्रों डा निगम प्रकाश नारायण, डा निकुँज नारायण, डा निर्मल प्रकाश नारायण, पुत्र वधु डा संगीता नारायण तथा पत्रकार अजय झा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर, लगातार २० दिनों तक निराहार रहकर विश्व-कीर्तिमान स्थापित करने वाले काठमांडू, नेपाल के संत राजेंद्र रेग्मी उर्फ़ निराहारी बाबा तथा विदुषी कवयित्री सुजाता मिश्र को ‘प्रज्ञ चिंतक हृदय नारायण कल्याणी स्मृति-सम्मान’ से विभूषित किया गया। अध्यक्ष और मंचस्थ अतिथियों ने उन्हें सम्मान-स्वरूप वंदन-वस्त्र, प्रशस्ति-पत्र के साथ दो हज़ार एक सौ रूपए की राशि प्रदान की। डा सुलभ ने भारत सरकार से आग्रह किया कि निराहारी बाबा के शरीर पर सुरक्षा शोध और विकास संगठन से वैज्ञानिक शोध कराए। इस अवसर पर, एक कवि-सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसका आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। सिद्धेश्वर, डा ओम् प्रकाश पाण्डेय, डा प्रतिभा रानी, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, शंकर शरण मधुकर, ई अशोक कुमार, डा पूनम सिन्हा श्रेयसी, डा एम के मधु, इंदु उपाध्याय, सरिता कुमारी, सुनिता रंजन, राजप्रिया रानी, प्रभात वर्मा, शंकर शरण आर्य, सूर्य प्रकाश उपाध्याय आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी सुमधुर रचनाओं से काव्यांजलि अर्पित की। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। सम्मेलन के अर्थमंत्री प्रो सुशील कुमार झा, डा किरण नारायण, डा विनीता नारायण, दा सुनील कुमार, डा नीता नारायण, सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, डा अशोक प्रियदर्शी, अवकाश प्राप्त प्रशासनिक अधिकारी शंभुनाथ पाण्डेय, वीणा प्रसाद समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।